रतलाम। रतलाम की एक डॉक्टर सेवानिवृत्त होने के बाद भी पिछले 23 सालों से एनीमिया मुक्त सोसाइटी बनाने के मिशन पर जुटी हुई है। रतलाम की रहने वाली डॉ लीला जोशी पिछले 23 वर्षों से महिलाओं में खून की कमी को लेकर आदिवासी अंचलों में कैंप लगाकर मुफ्त इलाज कर रहे हैं। डॉ लीला जोशी अपनी टीम के साथ आदिवासी अंचलों और पिछड़े इलाकों में पहुंच कर एनीमिया से ग्रस्त महिलाओं और युवतियों को पोषण आहार और उपचार उपलब्ध करवाती हैं। इसी पुनीत कार्य के लिए डॉक्टर लीला जोशी को पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा गया है।
दरअसल डॉ लीला जोशी रेलवे के चीफ मेडिकल डायरेक्टर के पद से रिटायर्ड हुई थी । लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने सेवा का कार्य जारी रखते हुए वर्ष 1997 से रतलाम के आदिवासी अंचलों में एनीमिया के लिए अवेयरनेस कैंपेन चलाकर महिलाओं और किशोरियों का मुफ्त इलाज करना शुरू किया।इस अतुलनीय योगदान के चलते उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है।
मालवा की मदर टेरेसा भी कहा जाता है डॉक्टर लीला जोशी को
डॉ लीला जोशी की की मुलाकात 1997 में डॉ. लीला जोशी की मदर टेरेसा से हुई थी। मदर टेरेसा ने उन्हें आदिवासी क्षेत्र की महिलाओं के लिए कुछ करने के लिए कहा था । जिसके बाद मदर टेरेसा से प्रभावित होकर डॉ लीला जोशी ने रतलाम के आदिवासी अंचलों में एनीमिया के लिए जागरुकता अभियान शुरू किया। वे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की एक मात्र ऐसी महिला चिकित्सक हैं जो आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जाकर महिलाओं का मुफ्त इलाज कर उनकी सेवा करती हैं। इसी वजह से उन्हें मालवा की मदर टेरेसा भी कहा जाता है। वर्ष 2015 में महिला और बाल विकास विभाग ने डॉ. लीला जोशी का चयन देश की 100 प्रभावी महिलाओं में किया था।
डॉक्टर्स डे के मौके पर डॉ लीला जोशी ने कहा कि समाज में डॉक्टरों को लेकर गलतफहमियां पैदा होती जा रही हैं। डॉक्टर हमेशा अपने मरीज को बेहतर उपचार देने का प्रयास करते हैं। नई पीढ़ी के डॉक्टरों के लिए डॉ लीला जोशी ने कहा कि खुद को इतना काबिल बनाना है कि आप पैसो के पीछे नहीं भागो, पैसे को आपके पीछे भागने दो ।
बहरहाल आदिवासी अंचलों में एनीमिया से मुक्ति दिलाने के इस मिशन में कोरोना काल की वजह से स्थिरता आ गई है। लेकिन डॉक्टर लीला जोशी इस उम्र में भी अपने मिशन को पूरा करने में जुटी हुई है।