सेंटर पॉइंट करौंदी को दूसरी लहर में भी छू नहीं पाया कोरोना; पहाड़ियों से घिरे गांव के लोगों को नमक खरीदने के लिए भी 7 किमी दूर जाना पड़ता है

Posted By: Himmat Jaithwar
6/25/2021

देश में कोरोना महामारी का डेढ़ साल पूरा हो गया और संक्रमितों की संख्या 3 करोड़ पार कर गई है। गांव भी इससे अछूते नहीं रहे। मौतें भी हुईं, लेकिन देश के दिल (भौगोलिक केंद्र बिंदू) करौंदी से सुखद खबर आई है। इसे दूसरी लहर में भी कोरोना नहीं छू पाया है। जबलपुर से 70 किलोमीटर दूर सात गांवों में फैली ग्राम पंचायत की आबादी 2 हजार 500 है। अधिकतर की जिंदगी खेती और मजदूरी पर निर्भर है। नमक भी खरीदने सात किमी की दूर उमरियापान जाना पड़ता है। चारों तरफ घने जंगल और पहाड़ से घिरे इस गांव में कोरोना न पहुंचने की एक बड़ी वजह भी यही है। हालांकि, देश के सेंटर प्वाइंट होने को बावजूद विकास की राह आज भी ये गांव देख रहा है।

भौगोलिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मध्यप्रदेश के कटनी जिले के ढीमरखेड़ा तहसील के मनोहर ग्राम पंचायत के करौंदी गांव के हाल बदहाल हैं। करीब 60 घराें वाले इस गांव को भारत का भौगोलिक केंद्र बिंदु माना जाता है। भारत के आठ राज्यों से गुजरने वाली कर्क रेखा पर यह गांव स्थित है। इस गांव को इसी खासियत की वजह से देश का दिल (Heart of country) भी कहते हैं।

वैक्सीनेशन को लेकर जागरूकता का अभाव
करौंदी गांव के राजेश सिंह बताते हैं कि एक दिन वैक्सीनेशन टीम आई थी, लेकिन किसी ने टीका नहीं लगवाया। कारण पूछने पर बोलते हैं कि टीके से डर लगता है, वैसे भी हमारे गांव में कोरोना नहीं है। जंगल के बीच बसे गांव में पहुंचने का संपर्क मार्ग चकाचक है। गांव में 8वीं तक स्कूल भी है। थोड़ी दूरी पर महर्षि वैदिक विश्वविद्यालय व ध्यान केंद्र भी है, पर इससे उनकी जिंदगी नहीं बदली। आज भी मजदूरी से ही दो जून की रोटी का गुजारा हो पाता है।

करौंदी गांव के राजेश सिंह और सुलोचना बाई।
करौंदी गांव के राजेश सिंह और सुलोचना बाई।

गांव की सुलोचना बाई ने बताया कि सेंटर प्वाइंट पर घूमने तो लोग आते रहते हैं। पर इसका फायदा हमारे गांव को कुछ नहीं मिला सिवाय रोड के। कहने को गांव में वैदिक विश्वविद्यायल है, लेकिन हमारे बच्चे 8वीं के बाद 7 किमी दूर उमरिया पान में ही पढ़ने जाते हैं। यहां हमारे बच्चों को नहीं पढ़ाया जाता। इस गांव में कोई भी मास्क में नहीं दिखा।

बाहरी दुनिया से हमारा अधिक नाता नहीं, इस कारण कोरोना भी नहीं
गांव में कोरोना का कोई केस न मिलने की वजह सरपंच राजाराम काछी ने बताया। बोले- बाहरी दुनिया से हमारा अधिक नाता नहीं, इस कारण कोरोना भी नहीं आया। ये तो शहरी बीमारी है। हम पहाड़-जंगल वालों को छू भी नहीं सकता। हालांकि, वे खुद वैक्सीन लगवा चुके हैं। बताया कि उनके ग्राम पंचायत में 300 से अधिक लोगों ने वैक्सीन लगवाई है। दूसरे को भी हम समझा रहे हैं।

संदीप असाटी की इस बाइक वाली दुकान का ग्रामीणों को रहता है इंतजार।
संदीप असाटी की इस बाइक वाली दुकान का ग्रामीणों को रहता है इंतजार।

बाइक पर चलती-फिरती दुकान से गांव वालों की जरूरतें पूरी होती है
सेंटर प्वाइंट के सामने ही हमें इसी ग्राम पंचायत के रहने वाले संदीप असाटी मिले। उन्होंने बाइक को ही चलती-फिरती दुकान में बना लिया है। इस गांव में सभी के घर कच्चे है। बारिश के दिनों में पानी के रिसाव से बचने के लिए पन्नी की डिमांड रहती है, जो उनकी बाइक पर दिखी। अन्य घरेलू सामान भी वे बाइक पर रखकर बेचते हैं। पूछते ही बोले कि पांच-छह गांव में इसी तरह घूमकर बेचते हैं। सेंटर प्वाइंट होने का फायदा हमें नहीं मिला। पर्यटक आते हैं, लेकिन उनके लिए भी कोई सुविधा नहीं है।

पानी की बड़ी समस्या
ग्राम पंचायत में 1500 के लगभग वोटर हैं। तीन करोड़ की लागत से यहां पानी टंकी का प्रस्ताव पास हुआ था। चार महीने बाद भी निर्माण शुरू नहीं हो पाया। गर्मी में यहां पानी की समस्या से लोगों को दो-चार होना पड़ता है। गांव में एक-दो स्थानों पर सरकारी हैंडपंप लगा है। उसी से काम चलाना पड़ता है। करौंदी को आदर्श गांव बनाने का सपना दशकों पहले देखा गया, लेकिन आज भी यह साधारण सा गांव है। विकास के नाम पर सेंटर प्वाइंट पर कुछ सजावटी पत्थर जरूर दिखते हैं, लेकिन वे भी समय के साथ उपेक्षित हैं या टूट रहे हैं। इसे टूरिस्ट मेगा सर्किट में भी शामिल किया गया था।

सेंटर प्वाइंट पर पत्थर लगा दिए गए, लेकिन पर्यटन सुविधाएं गायब हैं।
सेंटर प्वाइंट पर पत्थर लगा दिए गए, लेकिन पर्यटन सुविधाएं गायब हैं।

1956 में सेंटर प्वाइंट की हुई थी खोज
इंजीनियरिंग कॉलेज जबलपुर के संस्थापक प्राचार्य एसपी चक्रवर्ती की अगुवाई में 1956 में इस स्थान की खोज की गई और इसे भौगोलिक रूप से देश के केंद्र बिंदु के रूप में मान्यता मिली। दिसंबर 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर करौंदी पहुंचे और उसी साल यहां एक स्मारक बनना शुरू हुआ। यहां अशोक स्तम्भ और उसके चारों ओर शेर की आकृति बनी है। सेंटर प्वाइंट पर एक पेड़ है। इतिहास बताने के लिए बोर्ड लगा है, लेकिन इस पर अंकित अक्षर मिट चुके हैं। 15 दिसंबर 1987 को स्मारक तैयार हुआ। स्व. चंद्रशेखर फिर यहां आए और उन्होंने यहां अंतरराष्ट्रीय कृषि नगर बनाने की घोषणा की। यहां उन्होंने एक आश्रम भी बनाया, लेकिन अब यह भी बदहाल है।

सेंटर प्वाइंट से कुछ दूरी पर स्थित है महर्षि विश्वविद्यालय।
सेंटर प्वाइंट से कुछ दूरी पर स्थित है महर्षि विश्वविद्यालय।

विदेशों से भी वेदों का अध्ययन करने आते हैं बटुक
अंतरराष्ट्रीय आदर्श कृषि नगर बनाने की योजना जमीन नहीं मिल पाने से अधूरी रह गई। इस जगह के महत्व को देखते हुए आध्यात्मिक गुरु महर्षि महेश योगी ने 29 नवंबर 1995 को यहां से कुछ दूरी पर महर्षि विश्वविद्यालय की स्थापना की। यहां पर विदेशों से भी वेदों का अध्ययन करने बटुक आते हैं। महर्षि महेश योगी ने यहां पर 124 मंजिला इमारत बनाने की योजना बनाई थी। 2002 में इसकी आधारशिला भी रख दी गई थी, लेकिन रक्षा मंत्रालय से अनुमति न मिलने और क्षेत्र के भूकंप संवेदी होने की वजह से यह योजना भी धरी रह गई।

पूर्व पीएम चंद्रशेखर सिंह का आश्रम।
पूर्व पीएम चंद्रशेखर सिंह का आश्रम।

टूरिस्ट मेगा सर्किट में शामिल, आठ सालों में भी कुछ नहीं बदला
करौंदी गांव को टूरिस्ट मेगा सर्किट में शामिल कर इसका विकास करने 17 अगस्त 2013 को तत्कालीन क्षेत्रीय विधायक और पूर्व मंत्री मोती कश्यप ने पर्यटन विकास निगम के अधिकारियों की मौजूदगी में विकास कार्यों की आधारशिला रखी थी। 8 साल में यहां करीब 66 लाख रुपए खर्च भी हुए, लेकिन गांव में विकास के नाम पर कुछ नहीं दिखता। गांव के रामलाल कहते हैं कि विकास योजनाओं से पर्यटन बढ़ने की उम्मीद थी, उससे रोजगार मिलता, लेकिन कुछ भी नहीं हो पाया।

इस गांव में ऐसी कई पुरातत्व की मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं।
इस गांव में ऐसी कई पुरातत्व की मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं।

यह देश का सेंटर प्वाइंट है, पहुंचने के लिए पूछना पड़ता है
देश का केंद्र बिंदु करौंदी जबलपुर से 70 किमी दूर तो कटनी से 45 किलोमीटर दूर ढीमरखेड़ा तहसील में स्थित है। इस स्थान पर ऐसी कई निशानियां बिखरी हैं, जो इतिहास को बयां करने के साथ दार्शनिक भी हैं। पूर्व पीएम स्व. चंद्रशेखर सिंह के आश्रम में एक शिवलिंग और नंदी खुदाई में मिले थे। शिवलिंग पर भगवान शंकर के चेहरा बना है। इसकी कारीगरी मंत्रमुग्ध करने वाली है। पर रख-रखाव के अभाव में ये बदहाल पड़ा है।

करौंदी गांव में आठवीं तक है विद्यालय।
करौंदी गांव में आठवीं तक है विद्यालय।

देश के सेंटर प्वाइंट को ऐसे जाने-

  • 7 गांवों को मिलाकर बना है मनोहर गांव पंचायत
  • 2500 है इस गांव की आबादी, 1500 हैं वोटर
  • 1956 में हुई थी सेंटर प्वाइंट की खोज
  • 15 दिसम्बर 1987 को बनाया गया स्मारक
  • ये केंद्र बिंदू 23.30.48 अक्षांश और 80.19.53 देशांश पर स्थित है।
  • समुद्र तल से 389.31 मीटर की ऊंचाई पर ये करौंदी गांव बसा है।
  • चारों तरफ घने जंगल और विंध्य पर्वतमाला से घिरा है।
  • यहां साल में औसत वर्षा 45.50 इंच होती है।
करौंदी तक पहुंचने के लिए ये बनी है निशानी, जो वाहनों से निकलने पर दिखती ही नहीं।
करौंदी तक पहुंचने के लिए ये बनी है निशानी, जो वाहनों से निकलने पर दिखती ही नहीं।

इस गांव तक पहुंचने का ये है रास्ता, पर बताने का कोई बोर्ड तक नहीं
जबलपुर से 70 किमी दूर कटनी रोड स्थित एनएच 7 स्लीमनाबाद जाने के बाद उमरिया पान के लिए सड़क मुड़ी है। उमरियापान से 5 किलोमीटर ढीमरखेड़ा मार्ग पर चलने के बाद मोड़ है। जंगल में 2 किलोमीटर अंदर की चलने के बाद केंद्र बिंदु तक पहुंचा जा सकता है। पर आप ने किसी से रास्ता नहीं पूछा तो भटक सकते हैं। देश का सेंटर प्वाइंट है, इसे बताने का एक बोर्ड तक नहीं लगा है। करौंदी गांव को मुड़ने वाली सड़क के दोनों ओर सीमेंट की छोटी सी दीवार बनाकर यह लिखा हुआ है, लेकिन रोड चलते यह दिखता ही नहीं।

ढीमरखेड़ा-उमरिया पान मार्ग से करौंदी के लिए सड़क मुड़ती है, लेकिन यहां देश के सेंटर प्वाइंट के बारे में बताने का बोर्ड तक नहीं लगा है।
ढीमरखेड़ा-उमरिया पान मार्ग से करौंदी के लिए सड़क मुड़ती है, लेकिन यहां देश के सेंटर प्वाइंट के बारे में बताने का बोर्ड तक नहीं लगा है।
सेंटर पॉइंट पर ये बना है स्मारक।
सेंटर पॉइंट पर ये बना है स्मारक।



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