गुना। गुना में जवानी में जुर्म करने वाले दो भाइयों को बुढ़ापे में जेल जाना पड़ा है। दोनों ने 22 साल पहले रास्ता रोक कर एक व्यक्ति से मारपीट की थी। पुलिस के रिकॉर्ड में दोनों तब से फरार थे। 10-10 हजार रुपए का इनाम घोषित हुआ था। पुलिस ने बुधवार को उन्हें गिरफ्तार किया और कोर्ट में पेश किया। वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। जब अपराध किया था उस समय बड़े भाई की उम्र 38 साल थी और छोटे की 23 वर्ष। पुलिस का तर्क है के ये घुमंतू जाति से संबंध रखते हैं, इसलिए इनके ठिकाने बदलते रहे और ये हाथ नहीं लगे।
मामला साल 1998 में धरनावदा के ग्राम धाननखेड़ी का है। यहां सपेरा जाति के दो भाइयों रमेश सपेरा (अब उम्र 60) और बृजेश सपेरा (अब उम्र 45) पुत्र छुट्टीलाल उर्फ छुट्टीनाथ ने एक व्यक्ति से मारपीट की थी। इस मामले में दोनों के खिलाफ थाना धरनावदा में मारपीट का मामला दर्ज हुआ था। इन पर IPC की धारा 341, 323 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
इस मामले में दोनों आरोपी भाइयों के कोर्ट से लगातार फरार होने पर साल 2001 में स्थाई वारंट जारी हुए थे। पुलिस कहना है कि आरोपी सपेरा जाति से हैं, जो एक घुमंतू प्रवृत्ति की जाति होने पर यह लोग अपने ठिकाने बदल-बदल कर अपना काम धंधा करते रहते हैं। इस कारण वह पुलिस को नहीं मिल पा रहे थे।
बुधवार को रुठियाई के पास सपेरा जाति का एक डेरा दिखाई दिया। इस डेरे में मिले व्यक्ति से पुलिस ने फरार भाइयों की जानकारी ली। उसने अपना नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि वे दोनों भाई वर्ष 1998 में धाननखेड़ी से लटेरी तरफ चले गए थे। इसके बाद बैरसिया तरफ और अभी वर्तमान में अपने मूल गांव बूड़ी बरसत, थाना जामनेर में रह रहे हैं। इसके बाद टीम ने तत्काल वहां दबिश देकर दोनों को गिरफ्तार कर लिया। कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।
क्या कहती हैं कानून की धाराएं
भारतीय दंड संहिता की धारा 341 के अनुसार
अपराध- किसी व्यक्ति को गलत तरीके से रोकना
सजा - एक महीने का साधारण कारावास या पांच सौ रुपए का आर्थिक दंड, या दोनों ।
यह एक जमानती, संज्ञेय अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध पीड़ित व्यक्ति द्वारा समझौता करने योग्य नहीं है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के अनुसार
अपराध- जानबूझ कर स्वेच्छा से किसी को चोट पहुंचाना
सजा - 1 वर्ष कारावास या एक हजार रुपए जुर्माना या दोनों
यह एक जमानती, गैर-संज्ञेय अपराध है और किसी भी न्यायाधीश द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध पीड़ित / चोटिल व्यक्ति द्वारा समझौता करने योग्य है।