भोपाल। पारेमा 2 साल की है। उसे थैलेसीमिया है। हर महीने उसे ए पॉजिटिव ब्लड की जरूरत पड़ती है, लेकिन डेढ़ माह से पारेमा के माता-पिता एक डोनर के लिए भटक रहे हैं। मां अर्शी हर दिन हमीदिया अस्पताल के ब्लड बैंक में ब्लड का चक्कर काटती है कि उसे ब्लड मिल जाए। वहां से उसे कहा जाता है कि डोनर लाए। पर दिक्कत यह है कि कोरोना की वजह से कोई ब्लड डोनर नहीं मिल रहा है। भोपाल के अर्जुन नगर निवासी पारेमा का परिवार काम-धंधा छोड़कर ब्लड डोनर तलाश रहे हैं।
यह सिर्फ पारेमा के परिवार की दिक्कत नहीं है। थैलेसीमिया से पीड़ित ऐसे करीब 300 बच्चे भोपाल और इसके आसपास जिले में हैं, जिनके परिवार वाले ब्लड के लिए परेशान हो रहे हैं। कोरोना में परिवार वालों खुद और रिश्तेदारों से ब्लड का इंतजाम किया। अब ऐसा कोई बचा ही नहीं है, जिससे ब्लड ले सकेंगे।
कोरोना में लोग ब्लड देने से बच रहे
पिपलानी बालाजी नगर निवासी मचल सिंह ने बताया कि उनके 10 वर्षीय बेटे हर्षित को 15 दिन में ब्लड चढ़ाना पड़ता है, लेकिन कोरोना काल में डोनर ही नहीं मिल रहे। यहां पर डोनर के बगैर ब्लड नहीं देते। लोग वैक्सीन लगाने के कारण ब्लड नहीं देने का बहाना बनाते हैं। यह समस्या हर बार गंभीर होती जा रही है।
अभी डोनर ढूंढ रहे हैं
मंडीदीप निवासी गजराज नागर ने बताया कि उनके 11 साल के बेटे को ब्लड चढ़ता है। डोनर ढूंढने में मुश्किल जाती है। अब ब्लड लगने का समय भी ऊपर हो गया है। अभी डोनर ढूंढ रहे है, जिसके बाद ब्लड चढ़ाने जाएंगे।
गांव से आने वाले ज्यादा परेशान होते हैं
थैलेसीमिया बच्चों के लिए काम करने वाले राकेश कुकरेजा ने बताया कि भोपाल और आसपास के जिलों के 300 से ज्यादा बच्चों को ब्लड की जरूरत पड़ती है। बच्चों की उम्र के अनुसार 15 से एक महीन में ब्लड देना होता है। घर के सदस्य 3 महीने तक खून नहीं दे सकते। अब लोग कोरोना संक्रमित होने और वैक्सीन लगाने के लिए ब्लड देने से मना कर देते हैं। हम लोगों ने ग्रुप बनाया है, जिससे बच्चों को ब्लड उपलब्ध कराने में मदद करते हैं। लेकिन गांव से आने वाले लोगों को डोनर ढूंढने में सबसे ज्यादा दिक्कत होती है।
क्या होता है थैलसीमिया
थैलेसीमिया रोग एक तरह का रक्त विकार है। इसमें बच्चे के शरीर में रेड ब्लड सेल का प्रोडक्शन सही तरीके से नहीं हो पाता है और इन कोशिकाओं की आयु भी बहुत कम हो जाती है। इसकी वजह से बच्चों को एक महीने या उससे कम समय में एक यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है।
यह भी दिक्कत है अस्पताल में
हद तो यह है कि डोनर लाने के बाद हमीदिया अस्पताल में ब्लड चढ़ाने के लिए BT सेट भी परिजनों से ही मंगाया जा रहा है। इस मामले में जिम्मेदारों का कहना है कि ब्लड डोनेशन के लिए प्रेरित किया जाता है। यह अनिवार्य नहीं है।
प्रेरित किया जाता है, अनिवार्यता नहीं है
कोविड की बीमारी से ठीक होने वाला व्यक्ति भी 15 दिन बाद ब्लड डोनेट कर सकता है। ब्लड डोनर लाने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाता है। इसके लिए कोई अनिवार्यता नहीं है। हमें भी कोविड कॉल में डोनर नहीं मिल रहे है। इसलिए डोनर लाने के लिए प्रेरित किया जाता है।
-डॉ.लोकेन्द्र दवे, अधीक्षक, हमीदिया अस्पताल