भोपाल। भोपाल की रहने वाली नौ साल की मुक्ति। बेरहम कोरोना ने 3 दिन के अंतराल में ही माता और पिता दोनों का साया उसके ऊपर से छीन लिया। मुक्ति के पिता बृजकिशोर मालवीय ने दो शादियां की थीं। पहली पत्नी से दो बच्चे हैं। दूसरी से इकलौती बेटी मुक्ति है। पहली पत्नी मायके होशंगाबाद में रहती है, जबकि दोनों बच्चे पहले से ही दादा-दादी के पास भोपाल में रहते हैं।
छत्तीसगढ़ में फ्रिज रिपेयर करने वाले बृजकिशोर कोरोना काल के कारण काम छोड़कर पत्नी और बच्ची के साथ फरवरी में भोपाल आ गए थे। यहीं पति-पत्नी को संक्रमण ने घेर लिया और जान चली गई। इसके बाद परिवार को लगा कि दोनों की मौत के बाद दादा-दादी सहारा बनेंगे, लेकिन काल को यह भी मंजूर नहीं था। कुछ ही दिन में 74 वर्षीय दादा वीरणलाल भी कैंसर से चल बसे। अब मुक्ति का एकमात्र सहारा 70 साल की दादी रामकुंवरबाई है। जिस उम्र में दादी को बुढ़ापे की लाठी की जरूरत है, वे खुद अपने हौसले से मुक्ति समेत तीनों बच्चों का सहारा बनी हुई हैं। आने वाले दिन क्या मुश्किल दिखाएंगे, यह तो वे भी नहीं जानती। लेकिन वे चाहती हैं कि सरकार ऐसे मासूमों पर ध्यान दे, ताकि उनके सपने दफन न हों।
रूही और माही की नाना कर रहे देखभाल
रूही और माही 5 साल की हैं। दोनों जुड़वां हैं। दोनों अभी अपने छोटे नाना सुभाष रैकवार के पास बुधवारा बोही पूरा में रहती हैं। बच्चियों के पिता मोहनलाल बरवे और रीता बरवे बरखेड़ा पठानी में रहते थे। लघु वनोपज संघ कार्यालय में कार्यरत मोहनलाल अप्रैल में संक्रमित हो गए। उनके साथ परिवार भी संक्रमित हो गया। तबीयत बिगड़ने पर मोहनलाल को अस्पताल में भर्ती कराया, जहां इलाज के दौरान 30 अप्रैल को मौत हो गई। उनकी संक्रमित पत्नी रीता भी खबर सुनकर 3 मई को दुनिया छोड़ कर चली गई। रूही और माही का जन्म मोहन और रीता की शादी के 6 साल बाद हुआ था। रूही पुलिस ऑफिसर और माही डॉक्टर बनना चाहती हैं।
6 दिन में माता-पिता दोनों छोड़ गए
14 वर्षीय अक्षिता दुबे और 20 वर्षीय इशिका ऐशबाग स्टेडियम इलाके में बुआ कल्पना शुक्ला के पास रह रही हैं। अक्षिता के पिता हिरेश दुबे कोरियर का काम करते थे। 10 अप्रैल को उन्हें कोविड के लक्षण दिखने पर एडमिट किया। 12 अप्रैल को उनकी पत्नी प्रीति में भी लक्षण दिखने पर एडमिट कर दिया गया। बच्चों की जांच रिपोर्ट निगेटिव आई। इलाज के दौरान हिरेश की 16 अप्रैल और प्रीति की 22 अप्रैल को मौत हो गई। अक्षिता 9वीं कक्षा और इशिका BBA सेकेंड ईयर की पढ़ाई कर रही है।
पांच बहनों के सिर से मां का भी साया छूटा
17 वर्षीय सलोनी भारतीय पांच बहनों में सबसे छोटी है। आनंद नगर निवासी सलोनी के पिता की 2012 में कार दुर्घटना में मौत हो गई। पिता काॅन्ट्रैक्टर थे। मां के हाउस वाइफ होने से पिता की मौत के बाद घर की जिम्मेदारी बड़ी बहनों पर आ गई। बड़ी बहन अनीता ने प्राइवेट जॉब करके घर को संभाला। इस बीच अप्रैल में मां भी कोरोना संक्रमित हो गई। तबीयत बिगड़ने पर उनको अस्पताल में भर्ती कराया, जहां 5 अप्रैल को अस्पताल में दम तोड़ दिया। अब पांचों बहनें एक-दूसरे का सहारा हैं। सलोनी CA की तैयारी कर रही है।
भाई और बहन दाेनों हो गए अकेले
19 साल की यासिर ऐशबाग में बड़ी बहन के साथ रहता है। वह 12वीं पास है। यासिर के पिता यूसुफ खान दिसंबर 2020 में तीसरा अटैक आया था, जिससे उनकी मौत हो गई। इसके बाद एक कमरा किराए पर दिया। रिश्तेदारों की मदद से घर का गुजारा चला। तीन महीने भी नहीं हुए थे कि 8 मार्च 2021 को मां की भी हार्ट अटैक से मौत हो गई। यूसुफ अब अपनी 24 वर्षीय बहन के साथ रहता है। यासिर मैकेनिक की दुकान पर काम करता है।
मां की मौत के 7 दिन बाद पिता भी चले गए
14 वर्षीय यश वर्मा कैलाश नगर बैरागढ़ में दादा-दादी के साथ रहता है। 10वीं की पढ़ाई कर रहा यश इंजीनियर बनना चाहता है। यश के पिता विनोद कुमार वर्मा फायर ब्रिगेड में फायर मैन थे। मां नीलू वर्मा हाउस वाइफ थी। उनकी 20 अप्रैल को अचानक तबीयत खराब हुई। इलाज के दौरान मौत हो गई। अंतिम संस्कार करके आने के बाद यश और उनके पिता दोनों ने कोविड जांच कराई। यश की रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन पिता विनोद की रिपोर्ट पाॅजिटिव थी। ज्यादा तबीयत खराब होने पर विनोद को चिरायु अस्पताल में भर्ती कराया। जहां 4 मई को उनकी मौत हो गई।
अब भाई-बहन को एक-दूसरे का सहारा
21 साल का जयंत पठारिया इंजीनियरिंग कर रहा है। अयोध्या नगर में अपनी बड़ी बहन स्वाति के साथ रहता है। जयंत के पिता नरेश पठारिया सिविल कॉन्ट्रैक्टर थे। अप्रैल माह में उनको बुखार आया। डॉक्टर को बता कर दवा लेना शुरू किया, लेकिन तबीयत में सुधार नहीं हुआ। इस बीच मां की भी तबीयत बिगड़ने लगी। रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया। 27 अप्रैल को मां की इलाज के दौरान मौत हो गई। 3 मई को पिता की भी इलाज के दौरान मौत हो गई।
मां के बाद अब पिता भी छोड़ गए
17 वर्षीय हर्षल सैनी करोंद में रहती है। कॉमर्स से 12वीं की पढ़ाई कर रही है। हर्षल मीडिया में करियर बनाना चाहती है। हर्षल का एक बड़ा भाई जयेश है। हर्षल की मां की 2012 में कैंसर से मौत हो गई थी। पिता अनिल सैनी का बिजनेस करते थे। उन्होंने पहली पत्नी की मौत के बाद दूसरी शादी कर ली। अप्रैल में अनिल सैनी कोरोना संक्रमित हो गए। तबीयत बिगड़ी तो अस्पताल में भर्ती कराया। यहां इलाज के दौरान 23 अप्रैल को अनिल की मौत हो गई। अब हर्षल अपने भाई, दूसरी मां और दादी के साथ रहती है।
भाई के कंधों पर बहन की जिम्मेदारी
18 वर्षीय अर्पणा सोनी अपने बड़े भाई दर्पण सोनी के साथ भेल संगम कॉलोनी में रहती है। पिता दीपक सोनी एक प्राइवेट फर्म में काम करते थे। मां जयश्री सोनी हाउस वाइफ थी। अप्रैल में मां कोरोना संक्रमित हुई। उनके साथ पिता भी संक्रमित हो गए। दोनों की तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती कराया। 26 अप्रैल को मां की मौत हो गई। पिता भी 1 मई को छोड़ कर चले गए। दर्पण अभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है।
भोपाल में अब तक 16 बच्चे चिन्हित
राजधानी भोपाल में कोरोना के संक्रमण ने 13 परिवार के 16 बच्चों से मां-बाप का साया छीन लिया। इनमें तीन परिवार से दो-दो बच्चे हैं। इनमें से 12 बच्चों के आवेदन मुख्यमंत्री कोविड-19 बाल कल्याण योजना में स्वीकृत भी हो गई। वहीं, चार बच्चों के आवेदन अभी प्रक्रिया में है। ऐसे में इनकी जिम्मेदारी भाई-बहन, दादा-दादी और बुआ के कंधों पर आ गई है। सरकार इनकी देखभाल से लेकर बेहतर भविष्य गढ़ने की योजना बना चुकी है, लेकिन इनकी आंखों के सामने अब माता-पिता ने जो करियर सोचा था। वह अब दिख रहा है।