भोपाल के लगभग 23 हजार बच्चे ऐसे हैं जिनकी उम्र तीन साल है और कोरोना संक्रमण के कारण अब तक उन्होंने अपने स्कूल का मुंह भी नहीं देखा और टीचर्स से भी ऑनलाइन ही जुड़े। टीचर्स और मनोचिकित्सक का कहना है कि बच्चा जब पहली बार स्कूल जाता है तो स्कूल का माहौल और दूसरे बच्चों से बहुत कुछ सीखता है। अनुशासन में रहना, समय से काम करना और दोस्तों से चीजें शेयर करने जैसी तमाम बातों को स्कूल में रहकर की ठीक ढंग से सीख पाता है। ऐसे में जिन बच्चों को शुरुआत से ही स्कूल का माहौल नहीं मिला है, उनमें सोचने-समझने की क्षमता कम पर भी बुरा असर पड़ा है।
- 99,638 बच्चों का जन्म शहर में 2016-17 और 2017-18 में हुआ
- 2016-17 में 49026 और 17-18 में 50612 बच्चों का जन्म हुआ
- 23,000 बच्चों ने 2020-21 में सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में लिया एडमिशन
बैठो और सुनो वाला एटीट्यूड ठीक नहीं
पैरेंट्स बच्चों को यू-ट्यूब और गैजेट से जल्दी इंट्रोड्यूज करवा देते हैं। ऐसे में यदि टीचर्स बच्चों के साथ एक्टिविटी बेस्ड लर्निंग करवाते हैं तो वे जल्दी कनेक्ट होंगे। अभी बच्चे इस लेवल पर नहीं आए हैं कि पैरेंट्स उन्हें जबरदस्ती क्लास अटेंड करने और बैठो-सुनो वाली बात कहें। यह एटीट्यूड ठीक नहीं। यदि बच्चे को क्लास अटेंड करना पसंद नहीं है तो पैरेंट्स साथ में बैठकर अटेंड करवाएं। -रीना राजपूत, चाइल्ड सायकोलॉजिस्ट
टीचिंग लर्निंग के गैप को भरना मुश्किल
- नर्सरी और केजी के बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास का कॉन्सेप्ट बिल्कुल नया है और इस बारे में किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी, लेकिन मजबूरी में इसे अपनाया गया। कुछ समय बाद समझ आया कि यह सक्सेसफुल हो सकता है, लेकिन एक बात यह माननी होगी कि आई-टू-आई कॉन्टेक्ट में टीचिंग लर्निंग का जो गैप है, वो बढ़ा है और उसे अभी नहीं भरा जा सकेगा। - डॉ. एसएन राय, वरिष्ठ शिक्षाविद्
ऑनलाइन में दिक्कत
1. स्क्रीन से पढ़ना मुश्किल होता है, बच्चे ज्यादा समय तक एक जगह नहीं बैठते।
2. ऑनलाइन पढ़ाई में केवल बुक्स को फॉलो करते हैं। बच्चों को स्कूल का माहौल नहीं दिया जा सकता।
3. बच्चे का मूल्यांकन संभव नहीं है। बच्चों को दिया जाने वाला होमवर्क चैक करने में दिक्कत होती है।
4. टीचर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते। बच्चे भी पढ़ाई को गंभीरता से नहीं लेते।
5. स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों को आंखों से जुड़ी समस्याएं भी होती हैं।