जयपुर। राजस्थान में सचिन पायलट के कट्टर समर्थक रहे विश्वेंद्र सिंह के पाला बदलकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे में जाने की चर्चाओं से सियासत गरमा गई है। विश्वेंद्र सिंह के कल के बयान को उनके खेमा बदलने से जोड़कर देखा गया है। विश्वेंद्र सिंह के बेटे अनिरुद्ध सिंह ने इस बार नाम लिए बिना पिता पर निशाना साधा है। अनिरुद्ध ने देर रात ट्वीट किया- विश्वासघात, आज यह नया शब्द सीखा। नाम भले न लिया हो, लेकिन माना जा रहा है कि इशारा पिता की ही तरफ है।
यह भी कहा जा रहा है कि आने वाले वक्त में पूर्व राजपरिवार के मतभेद इस मुद्दे पर और गहरा सकते हैं। भरतपुर की सियासत पर इस पूरे घटनाक्रम का असर होना तय है।
विश्वेंद्र सिंह ने कल कहा था मैं अशोक गहलोत के साथ हूं, क्योंकि उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री बनाया है। मैं सचिन पायलट के भी साथ हूंं। मैं गहलोत और पायलट दोनों के बीच सेतु का काम कर रहा हूं ताकि कांग्रेस बच सके। आज ही मैंने सचिन पायलट से बात की है, कल भी मैं उनसे मिलने जाउंगा। मैं दोनों से ही मिलता रहता हूं।
खेमा बदलने की वजह से ही पूर्व राजपरिवार में झगड़ा
पिछले दिनों अनिरुद्ध सिंह ने पिता विश्वेंद्र सिंह के खिलाफ ट्विटर पर मोर्चा खोल दिया था, उन पर प्रॉपर्टी बेचने, हिंसक बर्ताव करने, दोस्तों का कारोबार बर्बाद करने सहित कई आरोप लगाए थे। बताया जाता है कि झगड़े की असली जड़ विश्वेंद्र सिंह का गहलोत खेमे में जाना ही था। विश्वेंद्र सिंह की पत्नी दिव्या सिंह और बेटे अनिरुद्ध सिंह विश्वेंद्र सिंह के पायलट खेमा छोड़कर गहलोत खेमे में जाने के खिलाफ हैं। इसी बात को लेकर पारिवारिक मतभेद खुलकर सामने आए थे।
अनिरुद्ध सिंह ने सौम्या गुर्जर का पक्ष लिया
अनिरुद्ध सिंह ने जयपुर ग्रेटर की मेयर सौम्या गुर्जर को सस्पेंड करने पर भी सवाल उठाते हुए लिखा, ‘मुझे लगता है वह गुर्जर हैं इसलिए उन्हें निशाना बनाया गया। दरअसल, विश्वेंद्र सिंह की पत्नी दिव्या सिंह गुर्जर हैं, यह फैक्टर उनकी राजनीतिक ताकत को बढ़ता रहा है।’
- अनिरुद्ध का विश्वेंद्र सिंह की बदलती निष्ठाओं पर पर तंज
विश्वेंद्र सिंह के बयान के बाद अनिरुद्ध सिंह ने उन पर तंज कसा, ‘राजेश पायलट जी से भैरोंसिंह जी, वहां से वसुंधरा जी, वसुंधरा जी से गहलोत साहिब, गहलोत साहिब से पायलट साहिब, पायलट साहिब से गहलोत साहिब।’ इसके जरिए अब तक विश्वेंद्र सिंह की बदलती राजनीतिक निष्ठाओं पर तंज कसा है कि कैसे वे अलग-अलग नेताओं के खेमे में जाते रहे और फिर उन्हें छोड़कर नए खेमे पकड़ते रहे।