भोपाल। कोरोना की संभावित तीसरी लहर में सबसे ज्यादा खतरा बच्चों पर बताया जा रहा है। लेकिन सरकारी सिस्टम इससे मुकाबला कैसे कर पाएगा, ये सबसे बड़ा सवाल है? सरकार ने हाईकोर्ट में दिए हलफनामे में जो आंकड़े पेश किए हैं उसके मुताबिक प्रदेश में कोरोना की पहली और दूसरी लहर में 18 साल से कम उम्र के 54 हजार बच्चे संक्रमित हुए हैं। बच्चों में संक्रमण दर 6.9% रही। इनमें से 12 हजार से ज्यादा 22% को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा।
प्रदेश में 18 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या 3 करोड़ 19 लाख है। लेकिन 52 में से सिर्फ 20 जिला अस्पतालों में ही बच्चों का आईसीयू है। यही नहीं इन अस्पतालों में बच्चों के लिए सिर्फ 2418 बेड ही हैं। वहीं एनएचएम की कोविड पॉजिटिव पेशेंट लाइन लिस्ट रिपोर्ट की मानें तो दूसरी लहर में भोपाल में 2699 बच्चे संक्रमित हुए। अच्छी बात ये है कि इनमें से 58% घर पर रहकर ही स्वस्थ हुए हैं। 32% ही अस्पताल गए। अभी 660 बच्चे होम आइसोलेशन में हैं। 72% स्वस्थ हो चुके हैं।
पूरे राज्य में नवजातों के लिए सिर्फ एक एंबुलेंस, वाे भोपाल के सुल्तानिया अस्पताल में ही
हैरानी वाली बात है कि प्रदेश में नवजात बच्चों के लिए सिर्फ एक ही एंबुलेंस है। वो है भोपाल के सुल्तानिया में। यहां से नवजातों को हमीदिया अस्पताल में शिफ्ट कराने की जिम्मेदारी इसी एंबुलेंस के हवाले है। इसमें नवजात के शरीर के तापमान को मेंटेन रखने के लिए इनक्यूबेटर लगा हुआ है। जो राज्य की किसी सरकारी एंबुलेंस में नहीं है। सरकार ने प्रदेश भर में एंबुलेंस बढ़ाने के लिए 1200 करोड़ रु. का नया टेंडर निकाला है। लेकिन इसमें बच्चों की एंबुलेंस बढ़ाने को लेकर कुछ भी नहीं है और न ही एंबुलेंस के टेंडर में नए इनक्यूबेटर लगाने की बात कही है। नए टेंडर में एंबुलेंस की संख्या 606 से बढ़ाकर 1002 हो जाएगी। वहीं जननी एक्सप्रेस की संख्या 800 से बढ़ाकर 1050 कर रहे हैं।
ऐसी कैसी तैयारी; बच्चों को भर्ती करने के लिए सिर्फ 2418 बेड
प्रदेश में बच्चों के लिए सरकारी अस्पतालों में बेड और आईसीयू की हालत नाकाफी है। इन अस्पतालों में बच्चों के लिए 2418 बेड हैं। इनमें 1020 स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू), 100 नियोनेटल हाई डिपेंडेंसी (एनएचडीयू), 220 पीडियाट्रिक आईसीयू और 1078 पीडियाट्रिक वार्ड के बेड शामिल हैं। हैरानी वाली बात ये भी है कि प्रदेश के 52 में से सिर्फ 20 जिला अस्पतालों में ही बच्चों के लिए आईसीयू हैं। वहीं स्वास्थ्य केंद्रों पर फिलहाल इलाज के नाम पर सिर्फ चेकअप ही हो सकता है। ये तब जब मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर पूरे देश में सबसे ज्यादा है। यहां जन्म लेने वाले 1000 में से 48 बच्चों की मौत हो जाती है।
आशंका; भोपाल में हर दिन पॉजिटिव केस के 50% बच्चे होंगे
अनुमान के मुताबिक तीसरी लहर में भोपाल में हर दिन जितने नए केस मिलेंगे, उनमें 50% बच्चे 14 साल तक के होंगे। इनमें भी 200 बच्चे भर्ती होंगे। तीसरी लहर शुरू होने के छह दिन बाद ही नो-बेड के हालात बन सकते हैं, अभी भोपाल में सरकारी-प्राइवेट अस्पतालों में बच्चों के लिए सिर्फ 1300 बेड ही हैं। इनमें 500 बेड एनआईसीयू हैं।
सरकारी दावे में 700 पीडियाट्रिशियन और नर्सों को ट्रेंड कर रहे हैं
- मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में 700 पीडियाट्रिशियन और नर्सों को ट्रेंड किया जा रहा है।
- एसएनसीयू में 200 बेड, पीडियाट्रिक आईसीयू में 375 और पीडियाट्रिक हाई डिपेंडेंसी यूनिट में 144 नए बेड की मंजूरी दे दी गई है।
- तीसरी लहर से निपटने के लिए सभी 51 जिला अस्पतालों में पीआईसीयू और एसएनसीयू बेड की व्यवस्था की जा रही है।
- जिला अस्पतालों के 1078 पीडियाट्रिक बेड को ऑक्सीजन बेड बनाया जा रहा है।
- बच्चों के लिए सीएचसी में 3745 बेड को कोविड केयर सेंटर बनाया जाएगा।
संभल जाएं... क्योंकि सबसे छोटे शव, सबसे भारी होते हैं
ये हैं वे मासूम जिन्हें कोरोना संक्रमण ने हमेशा के लिए छीन लिया
ये तस्वीरें हैं प्रदेश के उन मासूमों की जिनकी मौत कोरोना संक्रमण के चलते हुई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 18 साल तक की उम्र के 27 बच्चों को हमने कोरोना के चलते खोया है। सबसे ज्यादा 4 बच्चों की मौत भोपाल में हुई है। राज्य में 12 हजार यानी 22% संक्रमित बच्चों को भर्ती कराने की जरूरत भी पड़ी।