भोपाल. कोरोना प्रभावित इंदौर के एक थाना प्रभारी निर्मल श्रीवास को घर के बाहर उल्टी बाल्टी पर थाली रख भोजन करते हुए, दरवाजे की आड़ से देखती उनकी छोटी सी बच्ची की छवि सभी के हृदय को एक साथ व्यथित और गर्वित कर रही है। वर्तमान समय में पुलिस के बहुआयामी संघर्ष का यह सर्वाधिक मर्मस्पर्शी प्रतिनिधि चित्र है। बच्ची की भावपूर्ण आंखें, जो अपने पिता को कई दिनों तक देख भी नहीं पा रही है, देशभर के पुलिस परिवारों की कहानी दर्शाती है।
कॉन्स्टेबल दिग्विजय शर्मा स्नातक की परीक्षा देने अपने गृह नगर बलिया (उप्र) गए थे। लॉकडाउन के कारण परीक्षा स्थगित हुई तो उन्होंने जिला राजगढ़ में पुलिस स्टेशन पचोर तक पहुंचने के लिए 440 किमी की दूरी पैदल और जहां संभव हो, ट्रकों से लिफ्ट लेकर पूरी की। सूजे पैरों के बाद भी पहुंचते ही वह बुलंद इरादों के साथ कर्तव्य निभाने में जुट गए।
इंदौर में तैनात एसआई अशरफ अली मां की मृत्यु पर उप्र गए थे। लॉकडाउन के कारण वापस नहीं आ पा रहे थे। इसलिए प्रदेश के सीमावर्ती जिले सीधी पहुंच गए। पीएचक्यू के निर्देशानुसार वहीं सेवा देने लगे। वे पुलिस स्टेशन मझौली में काम कर रहे हैं, जहां थाना प्रभारी और कोई नहीं बल्कि उनकी बेटी शबेरा है, जो परिवीक्षाधीन उप पुलिस अधीक्षक है। गर्वित पिता और कृतज्ञ बेटी की जोड़ी लोगों की मन से सेवा कर रही है ।
इस कठिन समय में मप्र पुलिस में ऐसे कई साहसिक एवं मार्मिक वृत्तांत रोज देखने को मिल रहे हैं। पुलिस के कई अधिकारी एवं कर्मचारी अपने कर्तव्य निभाने के साथ गरीबों को खाना खिला रहे हैं, बीमार लोगों की मदद कर रहे हैं। उन्हें मास्क और सैनिटाइजर प्रदान कर रहे हैंं। निराश्रितों के अंतिम संस्कार में भी मदद कर रहे हैं।
फिर भी पुलिस की आलोचना करती कई खबरें मीडिया में वायरल हैं। मेरे एक सोशल मीडिया सक्रिय मित्र ने कल एक वॉट्सएप स्टेटस डाला, जिसमें कई ऐसे वीडियो क्लिप्स शामिल थे, जिनमें पुलिस अधिकारियों को लॉकडाउन के उल्लंघनकर्ताओं की पिटाई करते दिखाया गया था। उन्होंने मुझे गर्व से बताया कि इस पर बहुत सारी टिप्पणियां मिली। कुछ क्लिप ताजे थे, लेकिन कुछ पुराने थे। कई अन्य देशों के वीडियो दिखाकर भारतीय पुलिस द्वारा की गई मारपीट की तुलना करते हुए प्रदर्शित किए जा रहे हैं ।
कोरोना वायरस का खतरा वर्तमान में प्रदेश में फैल चुका है। इस युद्ध में सर्वाधिक अग्रणी मोर्चे पर पुलिस तथा डॉक्टर हैं। पुलिसकर्मी उन लोगों में से हैं, जिनके संक्रमित होने का खतरा सर्वाधिक है। अस्पतालों, क्वारेंटाइन सेंटर, कंटेनमेंट क्षेत्र में तैनात पुलिसकर्मियों में यह डर कहीं ज्यादा है। यह वास्तव में अत्यधिक बहादुरी की बात है कि एक सामान्य रूप से शिक्षित व्यक्ति, जो कोरोना के वैज्ञानिक तथ्यों से अनभिज्ञ है, एक खाली सड़क पर कड़ी धूप में घंटों खड़ा रहता है और लोगों को रोकता है। यह जानते हुए भी कि उन व्यक्तियों से उसे गुस्साईं निगाहें, गालियों के अलावा बहुत बुरी बीमारी भी प्राप्त हो सकती है। दूसरा विचारणीय प्रमुख मुद्दा उस पुलिसकर्मी की मानसिक स्थिति है, जो लॉकडॉउन में लगातार अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहा है, परन्तु साथ ही अपने परिवार की स्थिति के बारे में चिंतित तथा असहाय महसूस करता है, क्योंकि वे उसके कर्तव्य की जगह से बहुत दूर हैं। बड़ी चुनौती बल के लिए सुरक्षा संसाधन, बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता तथा क्वॉरेंटाइन केंद्र की स्थापना भी है। इसके लिए पुलिस मुख्यालय एवं फील्ड इकाइयां लागातार काम कर रहे हैं। इसके बाद भी कुछ पुलिसकर्मी वायरस के संक्रमण से बच नहीं पाए। पुलिस और स्वास्थ्य सेवाओं की टीमों को कई स्थानों पर पथराव, हमले और प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है। ये घटनाएं पुलिस के मनोबल तथा मानसिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव डालने वाली है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के लिए भी बल के साथ निरंतर संपर्क, उनकी और उनके परिवारों की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति तथा लगातार काम करने के लिए प्रेरित करना, उनकी नेतृत्व क्षमता का अब तक का सबसे कड़ा परीक्षण है।
इस समय सबसे जरूरी है कि मानवता के समक्ष प्रस्तुत इस अभूतपूर्व संकट में हम सभी को एकजुट होना होगा। कुछ लोगों की लापरवाही, गैरजिम्मेदाराना कृत्य, मौकापरस्त लाेगों के साथ अपनी जिम्मेदारी से भागने वाले या वर्दी में होकर आवश्यकता से अधिक बल प्रयोग करने वाले राह में बाधा भी बनेंगे, लेकिन हमें इन सब से पार पाकर विजय प्राप्त करनी है। इस युद्ध में अधिकांश लोगों को अपना योगदान कुछ दिनों तक केवल घरों में रह कर ही देना पर्याप्त है।