बीकानेर। पश्चिमी राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में पीने के लिए घी तो आसानी से मिल सकता है, लेकिन पर्याप्त पानी मिलना मुश्किल है। रेगिस्तान के लोग सैकड़ों सालों से पानी की कीमत समझते हैं। यहां पानी की सुरक्षा ‘अमृत’ की तरह की जाती है। सैंकड़ों साल पहले बनी कुईयों (छोटे कुएं) पर तो मई-जून के महीनों में बाकायदा ताले लगा दिए जाते हैं। ताकि कोई पानी की चोरी नहीं कर सके।
राजस्थान के बीकानेर इलाके में हुई नहरबंदी के चलते गांवों में पानी की किल्लत बढ़ गई है। इसलिए गांवों में कुईंयों पर ताले लटकाए जा रहे हैं। लूणकरनसर तहसील के भंडाण इलाके में करीब 40 गांवों में यही व्यवस्था है। तहसील के हंसेरा, सोडवाली, भिखनेरा, खोखराणा, खिलेरिया, खियेरां, लालेरा, उचाईया उद्देशिया, मोराणा और साधेरा समेत सभी गांवों में कुईं बनी हुई हैं। इसके अलावा खाजूवाला, पूगल, श्रीकोलायत समेत कई तहसीलों के गांवों में भी इसी तरह की व्यवस्था है।
बीकानेर के गांवों में इस तरह की कुईंयां बनी हुई हैं। इनमें 20-30 बाल्टी पानी जमा हो सकता है।
क्या होती है कुईं?
ये कुईंयां कुएं का ही छोटा रूप हैं। रेगिस्तान में पानी अंदर ही अंदर रिसता हुआ आगे बढ़ता है। किसी जोहड़, तालाब या फिर इंदिरा गांधी नहर से भी पानी रिसता हुआ जमीन में आगे का रास्ता बना लेता है। इलाके के लोगों को पता होता है कि पानी अंदर ही अंदर कहां से जा रहा है। ऐसे में एक जगह की खुदाई कर रिसते हुए पानी को इकट्ठा किया जाता है। इन कुईयों में इतना पानी जमा हो जाता है कि जरूरत के समय 20 से 30 बाल्टी पानी मिल जाता है।
ऊंट की मदद से कुईं से पानी निकाला जाता है।
ऐसे निकालते हैं कुईं से पानी
कुईं से पानी निकालने के लिए ऊंट को एक तरफ खड़ा किया जाता है। दूसरी तरफ चमड़े से बना एक बर्तन कुईं में डाला जाता है। जैसे-जैसे ऊंट आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे बर्तन भी बाहर निकलता जाता है। जब पानी से भरा यह बर्तन ऊपर आ आता है तो इसके पानी को लोहे की टंकी में डाल दिया जाता है। कई बार ऊंट नहीं होने पर गांव के लोग ही मिलकर पानी खींचने का काम करते हैं।
कुई पर इसलिए ताला लगाते हैं
लूणकरनसर के रुघाराम का कहना है कि कुईं हर परिवार की अपनी निजी संपत्ति है। इनमें आम दिनों में तो ताला नहीं लगता, लेकिन इन दिनों पानी का भारी संकट चल रहा है। नहर में भी पानी नहीं है। जलदाय विभाग भी आपूर्ति नहीं कर रहा। ऐसे में कुईं से लोग चोरी-छिपे पानी निकाल लेते हैं। इससे बचने के लिए ज्यादातर किसानों ने ताले लगा दिए हैं।
कुईं की गहराई ज्यादा होती है। इसलिए पानी निकालने में ऊंट की मदद ली जाती है।
पानी का संकट इसलिए
रेगिस्तान में एक ढाणी से दूसरी ढाणी के बीच 10 से 15 किलोमीटर तक का फासला है। इन ढाणियों में पानी के कनेक्शन नहीं हैं। कुछ ढाणियों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था भी बनाई गई है। इसके बावजूद वहां जलदाय विभाग पानी नहीं दे पा रहा। इंदिरा गांधी नहर में पानी आने पर लोग नहर से पानी ले आते हैं। लेकिन इन दिनों नहरबंदी के चलते संकट बढ़ गया है।
हर साल की समस्या
इंदिरा गांधी नहर पहली बार बंद नहीं हुई है, बल्कि हर बार मरम्मत के लिए इसे बंद किया जाता है। इस बार नहर बंदी 29 अप्रैल से 2 जून तक के लिए हुई है। पिछले सालों में भी नहर बंदी इसी दौरान होती रही है। मई के महीने में जहां गर्मी प्यास बढ़ाती है, उसी महीने में नहर बंदी से शहर से गांव तक पेयजल संकट खड़ा हो जाता है।
करीब एक महीने तक पानी नहीं आने से इंदिरा गांधी नहर के बीकानेर, लूणकरनसर, खाजूवाला और पूगल की ओर आने वाली डिस्ट्रीब्यूटरीज में भी पानी नहीं होता। ऐसे में ग्रामीण एक-एक बूंद पानी बचाने की काेशिश में जुटे रहते हैं।
जरूरतमंद को मना नहीं करते
कुईं पर ताला लगा होने के बाद भी स्थानीय लोग जरूरतमंद को पानी देने से मना नहीं करते। कुईं के मालिक से गुजारिश कर लोग आसानी से पानी ले लेते हैं, लेकिन चोरी करने पर पूरा गांव विरोध में खड़ा हो जाता है।