मध्यप्रदेश सरकार के राज्य मंत्री एवं भिंड जिले के कोरोना प्रभारी मंत्री ओपीएस भदौरिया कोविड 19 संक्रमण से जिले के बचाव को लेकर लगातार दावे कर रहे है। जिले को कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर स्वास्थ्य सेवा के पुख्ता इंतजाम होने की घोषणा करते आ रहे है। स्वास्थ्य सेवा की हकीकत क्या है? असली तस्वीर उनके गांव अकलौनी में देखने को मिलती है। मंत्री के गांव का अस्पताल भैंसों के तबेला में तब्दील हो चुका है। आस पास कंडे बनाए जा रहे है। अस्पताल का ताला हर वक्त बंद रहता है। गांव में घर-घर लोग, सर्दी, खांसी, जुखाम, बुखार से पीड़ित है किसी की कोई जांच नहीं हो रही है और ना ही इलाज मिल रहा है।
दैनिक भास्कर की टीम भिंड जिले के गोरमी क्षेत्र में स्थित अकलौनी गांव पहुंची। यह मंत्री भदौरिया का पैतृक गांव है। गांव पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक पक्की सड़क का है। वहीं दूसरा कच्चा रास्ता आज भी है। कच्चा रास्ते पर गिट्टी बिछी हुई है। लोगों काे आश है कि अब हमारे गांव के राज्य मंत्री है। प्रदेश सरकार में अच्छी पकड़ा है। यह दूसरा रास्ता भी जल्द पक्का होगा। लेकिन यह कब तक होगा यह बड़ा सवाल है? देखने पर पता चला कि गांव में घर-घर लोग बीमार हैं। इसके अलावा एक युवक कोविड पॉजिटिव है जो कि भिंड में भर्ती है। इसके बावजूद गांव के घरों पर सैनिटाइजर का छिड़काव नहीं कराया गया। बाहर से आने वाले के लिए क्वारैंटाइन सेंटर में नहीं रखा जााता। क्वारैंटाइन सेंटर पर एक ठेकेदार का कब्जा है, जिसने अपनी लेबर को ठहराया है।
गांव की हकीकत जानने के लिए दैनिक भास्कर टीम दोपहर के करीब दो बजे से शाम साढ़े चार बजे तक अकलौनी में मौजूद रही। गांव में अधिकांश लोग अपने घरों में थे। यहां लोगों से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि अन्य गांव की तरह यहां भी बीमारी फैली है, लेकिन कोविड की जांच कोई नहीं करा रहा है। ना ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जांच के लिए आए। बीमारी के समय मरीज, अपना उपचार गांव के उप स्वास्थ्य केंद्र पर नहीं ले पाए इन्हें उपचार के लिए झोलाछाप डॉक्टर पास जाना पड़ा या फिर पंद्रह किलोमीटर दूर जाकर गोरमी में उपचार लेना पड़ा। गांव के अन्य लोगों की भांति सरपंच भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं।
क्वारैंटाइन सेंटर में आराम करते ठेकेदार के मजदूर।
अस्पताल परिसर में बनते कंडे, भैंसों का तबेला में बदला परिसर
गांव में वर्ष 2013 में उप स्वास्थ्य केंद्र तैयार कराया गया था। यह उप स्वास्थ्य केंद्र आधुनिक पद्धति से तैयार है। इस उप स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव कराए जाने तक की सुविधा है। परंतु यह अस्पताल नियमित नहीं खुलता है। यहां पदस्थ डॉक्टर आशीष कुमार को दूसरे जिला अस्पताल में तैनात किया गया है। स्टाफ में पदस्थ एएनएम रमा ग्वालियर से अप डाउन करती है। एएनएम रमा, उसी दिन आती है जिस दिन टीकाकरण होता है। शेष दिन अस्पताल पर ताला लगा रहता है। ऐसे में गांव के कुछ लोगों ने अस्पताल के पक्के फर्श पर कंडे बनाना शुरु कर दिया। वहीं भैंस बांधने से पूरा परिसर तबेला की तरह नजर आता है।
स्वास्थ्य केंद्र के बाहर बंधी भैंस।
सरकारी अस्पताल में गए तो मर कर आएंगे, निजी अस्पताल में भर्ती होने पर जमीन बिकेगी
गांव के सरपंच सत्यप्रकाश श्रीवास का कहना है कि गांव में बीमार सभी है। मेरे परिवार के सभी सदस्य बीमार चल रहे है। उन्होंने बताया कि अस्पताल पर डॉक्टर पदस्थ थे उन्हें कोविड ड्यूटी में भिंड लगा दी है। अब ताला ही लगा रहता है। गांव में घर-घर लोग बीमार होने पर घरेलु उपचार ले रहे हैं। कुछ लाेग गोरमी या भिंड उपचार करने जा रहे हैं। कोरोना की जांच कराने कोई नहीं जाता है। सब को डर है कि कोरोना निकल आया तो सरकारी अस्पताल में भर्ती हुए तो मरकर आएंगे। निजी अस्पताल में जमीन बिक जाएगी।
स्वास्थ्य केंद्र पर लगा ताला।
गांव के भूरे सिंह भदौरिया का कहना कि मैं फौज से रिटायर्ड हूं। उन्होंने बताया कि गांव में सैनिटाइजर अस्पताल पर हुआ था और एक मरीज कोविड पॉजिटिव आया था उसके घर पर सैनिटाइज किया गया। पूरे गांव में सैनिटाइजर नहीं हुआ। उनका कहना कि यह अस्पताल वैक्सीन लगती तब खुलता है। नियमित नहीं।
गांव में अस्पताल परिसर के नजदीक रहने वाले रामकुमार सिंह भदौरिया का कहना है कि गांव में कोराेना का सर्वे हुआ था। किसी ने यह नहीं बताया कि घर में कोई बीमार है। गांव में टीकाकारण किया गया। मैंने कोरोना की दोनों वैक्सीन लगवा ली है।