बालाघाट में 15 दिन में एक परिवार में 5 की मौत, घर में सिर्फ बच्चे और विधवा महिला ही बची है

Posted By: Himmat Jaithwar
5/25/2021

बालाघाट। ओम, आयुष, खुशी, मानसी, और अमृता यह सिर्फ नाम नहीं है यह वे मासूम हैं जिनके पिता और परिवार को इस क्रूर संक्रमण काल ने इनसे छीन लिया। दो सगे भाइयों का यह परिवार 15 दिन में घर से 5 लोगों के शव का अंतिम संस्कार कर चुका है। परिवार में पांच मासूमों के अलावा इनकी देखरेख करने के लिए एक भाई की पत्नी ही बची है। बालाघाट के बोनकट्टा गांव के इसी घर से परिवार के मुखिया गोविंद राम उनकी पत्नी सुशीला और परिवार चलाने वाले दोनों बेटे महेंद्र और संतोष के साथ-साथ संतोष की पत्नी नीलू की मौत कोरोना संक्रमण से हुई है। अप्रैल के अंत से लेकर मई के पहले सप्ताह तक परिवार में पांच जिंदगी कोरोना ने लील ली। संतोष शिक्षक थे तो महेंद्र खेती के काम करता था। पूरे परिवार का दारोमदार इन्हीं दो भाई पर था।

बच्चों के सामने खाने-पीने का संकट

बच्चों के पिता चले गए मां चली गई। हंसते खेलते परिवार का जीने और कमाने का सहारा चला गया। परिवार के बचे सदस्यों का पेट पालने के लिए संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है। घर में दो भाइयों के परिवार के पांच बच्चे हैं और एक भाई की विधवा। तकलीफ के दौर में शासन-प्रशासन तो दूर अपनों ने भी मुंह मोड़ लिया है।

उम्मीद है सरकार मदद करेगी

मृतक महेंद्र की पत्नी ललिता किरनापुरे ने बताया 15 दिन के अंदर मेरे साथ ससुर पति और देवर देवरानी की मौत हो गई। अब मेरे देवर और मेरे मिलाकर 5 बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी मेरी है। हमारे पास इसके लिए कुछ भी नहीं है। सरकार से उम्मीद है कि वह हमारी मदद करेगी। जिस उम्र में पिता का सिर पर हाथ होना चाहिए उस उम्र में पिता का दाह संस्कार करके आए बेटों और बेटियों की हिम्मत जवाब दे रही है। जो चले गए उनकी यादें तो है ही जो बचे हैं उनके गुजर-बसर की चिंता भी अब इन मासूमों को सताने लगी है।

अब तक कोई मदद नहीं

मृतक महेंद्र के बेटे ओम प्रकाश ने बताया की मेरे पिता, चाचा, दादा, दादी सब की मौत हो गई। चाची भी नहीं रही। हमारे पास कुछ भी नहीं है। हालत खराब होती जा रही है। सरकार को हमारी कुछ मदद करनी चाहिए। किसी ने कहा था कि सरकार कुछ करने वाली है लेकिन अब तक कुछ नहीं मिला है।



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