जिद थी इंजेक्शन ब्लैक में नहीं लूंगा; दुकान सील कराई, फिर सिस्टम से चला पर इंजेक्शन नहीं मिला, पिता की आंख चली गई

Posted By: Himmat Jaithwar
5/23/2021

भोपाल। मप्र में ब्लैक फंगस अब महामारी है। लेकिन इलाज के लिए इंजेक्शन जुटाना बड़ी चुनौती है। ऐसे में एक कहानी उस शख्स की जिसने इंजेक्शन के लिए भटकते हुए सिस्टम में लगी फफूंद का सामना किया। मेरा नाम सुदर्शन राय है। मेरे पिता को एक महीने पहले कोरोना हुआ था। अस्पताल में इलाज चल रहा था। वीडियो कॉल में वो आंख में दर्द होने की बात बताते थे। हमने डॉक्टर्स को बताया, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। कोरोना ठीक होने के बाद मैं उनको इलाज के लिए आंखों के डॉक्टर्स के पास ले गया।

एमआरआई कराई तो पता चला कि उनको ब्लैक फंगस हो गया है। निजी अस्पताल में उनका ऑपरेशन किया गया। उन्होंने इंजेक्शन की जरूरत बताई। लेकिन बाजार में इंजेक्शन नहीं मिल रहा था। सोचा ब्लैक में खरीद लूंगा। 1 लाख रुपए लेकर इंजेक्शन लेने गया। एक मेडिकल स्टोर्स वाले से बात हुई। उसने कहा कि 10 इंजेक्शन हैं। मैंने सोचा, मेरी तरह और भी लोग ऐसा करते रहे तो ब्लैक मार्केटिंग कैसे रुकेगी? कालाबाजारी रुक गई तो शायद पिता और बाकी मरीजों को इंजेक्शन मिल जाएगा। मैंने ड्रग डिपार्टमेंट से शिकायत कर दी। मेडिकल स्टोर पर छापा मारा गया। उसके पास से 6 इंजेक्शन जब्त किए गए।

सोचा था शायद अब इंजेक्शन मिल जाएगा। अगले दिन सरकारी सिस्टम और नियमों के मुताबिक इंजेक्शन ढूंढने लगा। लेकिन खिड़कियों के सामने कतारों में खड़े होकर कोई फायदा नहीं हुआ। सिर्फ इंतजार। फिर डॉक्टर से पता चला कि पिता की एक आंख की रोशनी चली गई। मजबूरी में पिता की आंख निकलवाना पड़ी। अब पिता को घर पर शिफ्ट कर दिया है। आज भी उनको ये नहीं बताया है कि वो अब उस आंख से कभी नहीं देख पाएंगे। सोचा था सरकारी सिस्टम की मदद करने के बाद सब अच्छा होगा। लेकिन सब उल्टा हुआ। पिछले चार दिन से लगातार सुबह से शाम तक यहां पर आ रहा हूं। फिर भी इंजेक्शन का इंतजाम नहीं हो पाया है। अच्छा होता है कि ब्लैक में ही खरीद लेता। इतनी परेशानी तो नहीं होती।

^सरकार कोशिश कर रही है। रोज स्टॉकिस्ट और मेडिकल कॉलेज को इंजेक्शन दे रहे हैं। बहुत ही रेयर बीमारी थी तो कंपनियों ने बनाना बंद कर दिया था। इसलिए थोड़ा समय लग रहा है। -आकाश त्रिपाठी, आयुक्त स्वास्थ्य विभाग



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