सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह अगले 10-15 दिनों तक कोरोना को लेकर सरकार की तरफ से उठाए जा रहे कदमों में कोई दखल नहीं देना चाहता है. कोर्ट ने यह टिप्पणी लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को आमदनी मुहैया कराए जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की. सरकार ने कोर्ट को बताया था कि उसकी पहली प्राथमिकता मजदूरों को आवास, भोजन और दूसरी जरूरी चीजें देना है.सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और स्वामी अग्निवेश की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि लॉकडाउन के दौरान मजदूर और रेहड़ी-पटरी पर छोटा रोजगार करने वाले लोग बेरोजगार हो गए हैं. सरकार को इनकी आमदनी सुनिश्चित करनी चाहिए. उन्हें पैसे देने चाहिए. कोर्ट ने इस पर सरकार से जवाब मांगा था. जवाब देने के लिए पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का कड़ा विरोध किया. मेहता ने कहा, “इन लोगों को लगता है कि इनके अलावा सरकार या किसी भी संगठन को गरीबों की चिंता नहीं है. सरकार अपनी तरफ से हर संभव कदम उठा रही है. मजदूरों के पलायन को रोका गया है. उन्हें आवास मुहैया कराया गया है. भोजन और तमाम जरूरी चीजें मुहैया करवाई जा रही हैं. केंद्रीय गृह मंत्री खुद हालात पर नजर बनाए हुए हैं. भविष्य में और भी जरूरी कदम उठाए जाएंगे.“ सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट के सामने आंकड़े भी रखे. उन्होंने बताया कि देश के 578 जिलों में 6 लाख से ज्यादा लोगों को सरकारी इमारतों में ठहराया गया है. स्वयंसेवी संगठनों ने भी 4 लाख से ज्यादा लोगों को शरण दी है. 15 लाख लोगों को उसी फैक्ट्री में या जगह पर रोक दिया गया है, जहां वो मजदूरी करते थे. इन सब लोगों को और दूसरे लोगों को भी भोजन और जरूरी चीजें उपलब्ध कराई जा रही हैं. केंद्र और राज्य सरकारें इस समय 54 लाख से ज्यादा लोगों तक भोजन पहुंचा रही हैं. स्वयंसेवी संगठन भी 40 लाख से ज्यादा लोगों को भोजन दे रहे हैं.