भोपाल। कोरोना की दूसरी लहर ने बहुत से लोगों को जिंदगी भर का दर्द दे गया है। कई मासूमों के सिर से माता-पिता का साया उठ गया। ऐसी ही दर्द भरी दास्तां हैं पुराने भोपाल में रहने वाली 5 साल की जुड़वां बहनों रूही और माही की। दोनों ने कोरोना को तो हरा दिया, लेकिन पहले पापा और फिर तीन दिन के अंदर ही मां को खो दिया।
मासूम मम्मी-पापा के बारे में जब भी पूछती हैं, तो छोटे नाना सुभाष रैकवार उन्हें यह कहते हुए दिलासा देते हैं कि वे डॉक्टर के पास हैं, जल्द ही आ जाएंगे। सुभाष कहते हैं, यह बात कह कहकर थक गए हैं। मासूमों के सवालों का सामना नहीं कर पा रहा हूं। कब तक सच्चाई छुपा कर रखूंगा।
झोलाछाप डॉक्टर से सर्दी-जुकाम का इलाज कराते रहे
घर में खिलौनों से खेलती रूही और माही साथ में रहती हैं। अब उनकी देखभाल उनके छोटे नाना सुभाष रैकवार और उनके परिवार वाले कर रहे हैं। सुभाष कहते हैं कि मेरे बड़े भाई की मौत हो चुकी है। भतीजी गीता बरवे और मोहन लाल बरवे गोविंदपुरा में रहते थे। मोहन की अप्रैल में तबीयत खराब होना शुरू हो गई।
वह झोलाछाप डॉक्टर से ही इलाज कराते रहे। डॉक्टर सर्दी-जुकाम का इलाज करता रहा। करीब 10 दिन बाद उन्होंने फोन पर तबीयत के बारे में बताया, तो हम उन्हें हमीदिया अस्पताल ले गए। वहां जांच में कोरोना निकला। इसी दौरान गीता की भी तबीयत बिगड़ गई। हमीदिया में चार-पांच दिन इलाज के बाद 30 अप्रैल को मोहन लाल बरवे की मौत हो गई। तीन दिन बाद ही बीमार गीता का भी कोरोना से मौत हो गई। रूही और माही को भी कोरोना हो गया था, लेकिन वे घर पर भी डॉक्टर के इलाज से ठीक हो गईं। अब हम ही उनकी देखभाल कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि वे बड़ी होकर आईएएस या आईपीएस बनें।
शादी के छह साल बाद हुई थीं रूही और माही
सुभाष ने बताया कि गीता-मोहन की शादी वर्ष 2010 में हुई थी। शादी के काफी समय बाद भी उन्हें बच्चे नहीं हुए। काफी प्रयासों के बाद वर्ष 2016 में घर में एक साथ दो खुशियां रूही और माही हुईं। मोहन एक हर्बल कंपनी में जॉब करते थे। काम के दौरान ही कई साथी कर्मचारियों को कोरोना हो गया था। उन्हीं के संपर्क में आने के कारण वे भी संक्रमित हो गए थे।
महिला एवं बाल विकास अधिकारी ने संपर्क किया
अभी चार-पांच दिन से महिला एवं बाल विकास अधिकारी की टीम ने कॉल किए हैं। उन्होंने रूही और माही के आधार कार्ड के अलावा मोहन और गीता के कागजात मांगे हैं। मेरी कोई बेटी नहीं है, इसलिए हम ही उन्हें गोद ले लेंगे। सरकार द्वारा ऐसे बच्चों की मदद करने का फैसला अच्छा है। एक ही चिंता है, दोनों से कब तक झूठ बोलते रहेंगे कि उनके मम्मी-पापा डॉक्टर के पास हैं।