कोरोना से बचने के लिए आदिवासियों का नीम के पेड़ और पत्तियों का नुस्खा, कहते हैं- कोरोना होगा, लेकिन मरेंगे नहीं

Posted By: Himmat Jaithwar
5/21/2021

स्वास्थ्य सुविधाओं से कोसों दूर झाबुआ के आदिवासी कोरोना से खुद ही जंग लड़ रहे हैं, वह भी देसी तरीकों से। सर्दी-खांसी और बुखार झेल चुके इन आदिवासियों को दवाओं की बजाय बुजुर्गों के नुस्खों और नीम के पेड़ पर भरोसा है।

उधर, भिंड में सिर्फ कहने का लॉकडाउन है। ऑटो में 3 या 5 की जगह 13 लोग बैठे देखे जा सकते हैं। 

1. आदिवासी गांवों तक पहुंचा संक्रमण, लोग बोले- दवा की जरूरत नहीं
- झाबुआ जिले के गांवों से राजेंद्र दुबे और शरद गुप्ता की रिपोर्ट

मध्यप्रदेश-गुजरात की बॉर्डर पर झाबुआ जिले के आखिरी गांव मोद के एक खेत में नीम के पेड़ के नीचे कुछ लोग बैठे थे, वहीं पर बच्चे खेल रहे थे। ताऊ ते तूफान का यहां थोड़ा असर भी दिखा। आसमान में बादल थे और हवा तेज चल रही थी।

बात करने पर पता चला कि इम्युनिटी जैसे शब्दों से बेखबर ये लोग अपने बच्चों को नीम के पेड़ के नीचे रोज 5 से 6 घंटे लेकर बैठ रहे हैं ताकि कोरोना से लड़ने के लिए खुद को मजबूत कर सकें।

नीम की झूलती शाखाओं के नीचे बैठे बाबू बोले- कोरोना की पहली लहर गांव तक नहीं आई, लेकिन दूसरी लहर में सर्दी-खांसी और बुखार के मरीज मिले। देसी तरीके से इनका इलाज किया और अब ये ठीक हैं।

झाबुआ के आदिवासी गांवों में लोग नीम के पेड़ के नीचे बैठते हैं और उसकी पत्तियों का काढ़ा पीते हैं।
झाबुआ के आदिवासी गांवों में लोग नीम के पेड़ के नीचे बैठते हैं और उसकी पत्तियों का काढ़ा पीते हैं।

थावरिया कहते हैं कि कोरोना से बचने के लिए बुजुर्गों ने जो सलाह दी है, वहीं कर रहे हैं। रोज सुबह खाली पेट नीम की पत्तियों का पानी पीते हैं। रोज 5 से 6 घंटे बच्चों को लेकर नीम के पेड़ के नीचे ही बैठते हैं, इससे रोगों से लड़ने की ताकत मिलती है।

मंगू कहते हैं- गांव में जाकर देख लो, अब कोई भी बीमार नहीं है। हमने सभी का इलाज नीम के काढ़े से किया है। शंभू बोले- हम बीमार जरूर हुए, लेकिन कोरोना से कोई नहीं मरा। केवल 80 साल के एक बुजुर्ग की मौत हुई, वह भी लंबे समय से बीमार थे।

पप्पू ने तर्क दिया- हमें टीके की जरूरत नहीं है, जड़ी-बूटी की पहचान है। इसी से इलाज कर लेंगे। कोरोना होगा, लेकिन मरेंगे नहीं।

दो गांव के आदिवासियों के प्रयासों से रुका संक्रमण
झाबुआ जिले के पिटोल गांव में अब संक्रमण काबू में है। यहां 5 मई से अब तक 700 लोगों के सैंपल लिए, जिसमें से केवल 5 पॉजिटिव निकले। बुधवार को भी 25 सैंपल लिए, जिन्हें अहमदाबाद भेजा।

डॉ. रायसिंह बाथम कहते हैं कि लोग खुद आगे आकर सैंपल दे रहे हैं। इसी वजह से संक्रमण पर रोकथाम की कोशिशें काम आईं।

लोगों ने खुद लगाया कर्फ्यू
खजुरिया गांव में अब तक 12 लोगों की मौत हो चुकी है। हर पांचवें घर में सर्दी-खांसी और बुखार के मरीज है। स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं, बचाव के लिए लोग खुद जनता कर्फ्यू लगाए हुए हैं। गांव का पूरा बाजार बंद है।

हालांकि, सरपंच पप्पू इससे उलट अपना मकान बनवा रहे हैं। गांव में बस यहीं एक जगह चहल-पहल दिखाई दी।

...और 5 किमी दूर गुजरात के गांव में नासमझी
झाबुआ जिले के आखिरी गांव मोद से 5 किमी दूर गुजरात के दाहोद जिले की सीमा लग जाती है। यहां पहला गांव खंगेला है। यहां के लोग सोशल डिस्टेंसिंग तक नहीं समझते।

दाहोद जिले के गांव में दुकानों के पास इस तरह की भीड़ मिली।
दाहोद जिले के गांव में दुकानों के पास इस तरह की भीड़ मिली।

हाईवे के पास की दुकानों पर ये लोग एक-दूसरे से सटकर बैठे थे। बुजुर्ग दयाशंकर बोले- गांव में लोग बीमार थे, लेकिन अब ठीक हो रहे हैं। ज्यादा गंभीर होने पर दाहोद ले जाते हैं।

2. एक गांव, दो तस्वीरें; न्यौते में गए तो 22 लोग पॉजिटिव हुए, घर में रहे तो एक भी संक्रमित नहीं
- भिंड जिले से सुमित दुबे और श्रीकांत त्रिपाठी की रिपोर्ट

भिंड जिले में 5 हजार की आबादी वाला गांव सोनी। यहां मई में 22 कोरोना पॉजिटिव मिलने से हड़कंप मच गया। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि संक्रमण गांव की एक बस्ती में फैला। गांव वालों ने इसकी वजह बताई- मृत्युभोज और भंडारे जैसे कार्यक्रम। इसी गांव के दूसरे हिस्से जाटव मोहल्ले में एक भी मरीज नहीं मिला।

सोनी गांव का वह क्षेत्र जहां गाइडलाइन का पालन नहीं हुआ अब बैरिकेडिंग कर दी गई है।
सोनी गांव का वह क्षेत्र जहां गाइडलाइन का पालन नहीं हुआ अब बैरिकेडिंग कर दी गई है।

गांव के महेंद्र सिंह कहते हैं कि हम लोग गरीब हैं। इतना रुपया भी नहीं है कि कहीं जा सके। काम-धंधा बंद होने से आमदनी भी नहीं थी, घर में ही हैं। सोनी गांव के जिस इलाके में कोरोना फैला, वहां किसी घर में छह तो किसी में चार लोग संक्रमित हैं। हर तरफ घरों के बाहर बैरिकेड्स लगे दिख रहे थे। गांव के इस हिस्से में गलियों में सन्नाटा था।

पंचायत की ओर से इसी हिस्से में सैनिटाइजेशन किया जा रहा था, जबकि जाटव मोहल्ले में जनजीवन पूरी तरह सामान्य था। यहां तो दुकानें भी खुली थीं।

वैक्सीनेशन की बात करें तो गांव में 45 साल से ज्यादा उम्र के 550 यानी 80% लोगों ने वैक्सीन का पहला डोज लगवा लिया है। इनमें से भी 250 लोग दूसरा डोज लगवा चुके हैं।

18 साल से ज्यादा उम्र के लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। कमल का कहना है कि इस बार टीका लगवाने के लिए रजिस्ट्रेशन कर खुद ही स्लॉट चुनना है, लेकिन मेरे पास स्मार्टफोन ही नहीं है। ऐसे में वैक्सीन कैसे लगवाऊं।

फैक्टरी संचालकों ने उठाया मजदूरों के वैक्सीनेशन का बीड़ा
30 हजार की आबादी वाले औद्योगिक क्षेत्र मालनपुर में 12 हजार से ज्यादा मजदूर हैं। इनके वैक्सीनेशन का बीड़ा फैक्टरी संचालकों ने उठाया है। वैक्सीन लगवाने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाकर फैक्टरी में ही कैंप लगाए गए हैं। इससे 45 साल से ज्यादा उम्र के 2 हजार मजदूर वैक्सीन लगवा चुके हैं। गांव के स्वास्थ्य केंद्र पर अभी तक 3 हजार 960 लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लगी है।

सिर्फ कहने के लिए लॉकडाउन, सड़कों पर पहले जैसी स्थिति
​​​​​​​​​​​​​​भिंड जिले में अप्रैल महीने में संक्रमण दर 9% थी, जो अब घटकर 3.5% पर आ गई है। यहां प्रशासन ने 31 मई तक लॉकडाउन बढ़ा दिया है, लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है। यूपी के इटावा बॉर्डर से सटे बरही, रानीपुरा, ऊमरी, अटेर, अमायन और फूप में चाय-नाश्ता से लेकर मिठाई की दुकानें भी खुली थीं।

पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए ऑटो रिक्शा चल रहे थे। 5 सीटर ऑटो में 13 से 14 सवारियां बैठकर इटावा जाती दिखीं। वहीं, गांव के अंदर भी लोग मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग से परहेज कर रहे हैं।



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