केंद्र की BJP नेतृत्व वाली सरकार एंटी -बीजेपी विपक्षी दलों की एकता से नर्वस नजर आ रही है, चाहे ये एकता कोरोना की वजह से ही क्यों न बनी हो। आइए ये जानने की कोशिश करते हैं कि क्या ये एकता आगे आने वाले महीनो में बीजेपी के खिलाफ किसी बड़े विपक्षी गठबंधन में बदल सकती है कि नहीं।
बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व अभी तक COVID-19 के मोर्चे पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की आलोचनाओं की ही सामना करना पड़ रहा था। अब बीजेपी क्षेत्रीय दलों के निशाने पर भी आ गई है।
13 विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार की कोविड-19 के दूसरे लहर से निपटने के तरीकों की आलोचना करते हुए एक पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें तीन गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री(पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ) शामिल हैं। कांग्रेस की अंतरिम प्रेसीडेंट सोनिया गांधी को इसका जवाब देते हुए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने COVID-19 प्रबंधन में महाराष्ट्र सरकार की कमियां गिनाते हुए विपक्ष के सावालों की इतिश्री कर दी।
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी परेशानी ये है कि महाराष्ट्र में तीन अलग-अलग विचार धाराओं की पार्टियों का गठबंधन सरकार चल रही है और अभी तक राज्य में ये कई टेस्ट भी पास कर चुकी है। अब बीजेपी को इस बात का डर सता रहा है कि अगर ये प्रयोग सफल रहा तो ये पूरे देश में कई दूसरे राज्यों में भी इसी तरह तरह के बीजेपी विरोधी गठबंधनों के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकता है। इसके अलावा इससे प्रोत्साहित होकर एनडीए गठबंधन में शामिल असंतुष्ट दल गठबंधन से बाहर आ सकते हैं।
इस विपक्षी एकता की सबसे बड़ी कमजोरी ये है कि इस COVID-19 लेटर पर हस्ताक्षर करने वाले सभी हस्ताक्षरकर्ता रीजनल लेवल पर कांग्रेस के विरोधी हैं। हालांकि महाराष्ट्रा महविकास अघाड़ी प्रयोग और कर्नाटक में पहले फेल हो चुका कांग्रेस-जनता दल सेक्यूलर एक्सपेरीमेंट इस बात का प्रमाण है कि कांग्रेस नेतृत्व खास कर राहुल गांधी को बीजेपी को हराने के कामन लक्ष्य में क्षेत्रीय दलों के सपोर्टिंग फोर्स के रूप में काम करना होगा।
कांग्रेस में तमाम लोगों का मनान है कि बंगाल में टीएमसी की जोरदार जीत एक गेम प्लान का हिस्सा थी जिसके तहत कांग्रेस ने लेफ्ट के साथ आधे मन से गठबंधन किया अपने अधिकांश वोट को टीएमसी के पक्ष में मोड़ दिया है। हालांकि इस कोशिश में वह खुद खाली हाथ रह गई।
गौरतरब है कि स्टेट लेवल पर कांग्रेस जहां बीजेपी का समाना नहीं कर पाती वहीं, बीजीपी राज्यों में क्षेत्रीय दलों के मुकाबले में नहीं ठहर पाती। इस स्थिति में बीजेपी के लिए डर ये है कि कोविड -19 की दूसरी लहर के रूप में आई ये नेशनल मेडिकल इमरजेंसी बीजेपी के खिलाफ विपक्षियों का एक मजबूत गठबंधन बनाने का रास्ता तैयार कर सकती है।
सोनिया गांधी को लिखे गए फडणवीस के पत्र ने एक नया वॉक युद्ध शुरु कर दिया है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने फडणवीस पर आरोप लगाया है कि उनको गुजरात की तुलना में महाराष्ट्र पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
राज्य सरकारों पर आरोप लगाने की बीजेपी की रणनीति उसपर ही उलटा असर डाल सकती है। हाल ही में बीजेपी ने कांग्रेस पर टूलकिट प्रोपोगडा का आरोप लगाया है। बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने के तरीकों को लेकर केंद्र सरकार की इमेंज खराब करने की रणनीति पर काम कर रही है।
वहीं कांग्रेस ने आरोप का खंडन करते हुए कहा है कि टूलकिट को लेकर बीजेपी नेताओं द्वारा दिखाए जा रहे दस्तावेज फर्जी है। कांग्रेस ने इसके खिलाफ दिल्ली सरकार में शिकायत भी की है। अगर यह साबित हो जाता है कि यह दस्तावेज फर्जी है तो बीजेपी का यह दांव उसके ही खिलाफ जा सकता है। इसके अलावा तमाम राज्यों में गैर बीजेपी और क्षेत्रीय पार्टियों की सरकारें कोरोना की दूसरी लहर से निपटने के लिए तुनात्मक रुप से बेहतर प्रदर्शन कर रही है।
बीजेपी को इस विपक्षी एकता को तोड़ने के लिए दूसरे तरीको की जरुरत है। सबसे पहले तो उसको उन राज्यों में कोविड-19 से निपटने के लिए बेहतर प्रयास करने होंगे जहां उनकी सरकार है। वही केंद्र के स्तर पर वैक्सीनेशन के मोर्चे पर सरकार को साफ रोड मैप रखना होगा।कोविड-19 के प्रबंधन के मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन ही बीजेपी को विपक्षी पार्टियों पर बढ़त दिला सकती है।