कोरोना मैनेजमेंट की अच्छी तस्वीर- तेरहवीं पर रिश्तेदारों को नहीं बुलाया, अपने बूते अस्पताल शुरू कर 42 मरीजों को ठीक किया

Posted By: Himmat Jaithwar
5/20/2021

रतलाम। गांवों में कोरोना काे लेकर अंधविश्वास, अफवाहों और लापरवाही के मामलों में बीच अच्छी तस्वीर भी देखने को मिल रही है। मध्यप्रदेश के रतलाम और दतिया के जिले के गांवों में लोगों ने डिस्टेंसिंग का अनुशासन बनाए रखा है। लोग रिश्तेदारों को बुलाने से बच रहे हैं। अपने बूते अस्पताल खोल रहे हैं। 

1. सबसे ज्यादा पॉजिटिव मरीजों वाले गांव में युवाओं ने संभाली कमान
- रतलाम जिले के गांवों से राजेंद्र दुबे और शरद गुप्ता की रिपोर्ट

रतलाम जिले के जिन गांवों में 7 दिन पहले तक मौतों से दहशत थी, वहां अब लोगों ने खुद मोर्चा संभाल लिया है। वे अब सरकार के भरोसे नहीं हैं। जावरा क्षेत्र के सबसे संक्रमित गांव रियावन में अब तक 50 मौतें हो चुकी हैं, लेकिन किसी ने भी तेरहवीं के कार्यक्रम में रिश्तेदारों को नहीं बुलाया। स्थिति बेकाबू होने लगी तो गांव के युवाओं ने जन सहयोग से गांव के बाहर अस्पताल शुरू कर दिया।

अस्पताल के लिए बिल्डिंग एक प्राइवेट स्कूल ने दी। पलंग, बिस्तर और फर्नीचर टेंट वाले ने मुफ्त में मुहैया कराए। बाकी सामान गांव के लोगों ने अपने घरों से जुटाया। गांव वालों की पहल के बाद प्रशासन ने एक नर्स की ड्यूटी लगाई। दो सरकारी डॉक्टर रोज सुबह-शाम मरीजों को देखने आते हैं।

यहां 14 मरीज भर्ती हैं। नर्स सुनीता धाकड़ कहती हैं कि 50 बेड का यह अस्पताल 4 मई से शुरू किया था। अब तक 42 मरीज ठीक होकर घर जा चुके हैं। गांव के युवा प्रकाश टेलर और पंकज धाकड़ बताते हैं कि अस्पताल का खर्च गांव के लोग चंदा देकर उठा रहे हैं। मरीजों के लिए दूध-फल और खाना गांव के घर-घर से आ रहा है। 35 युवा यहां दिन-रात इंतजाम जुटा रहे हैं। गंभीर मरीज को शहर तक भेजने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर भी है, लेकिन अब तक इसकी जरूरत नहीं पड़ी।

संक्रमित घर से कोई बाहर न निकले, इसलिए सरपंच खुद कर रहे मॉनिटरिंग
रियावन से 6 किमी दूर चिपिया गांव में अब तक 13 पॉजिटिव मिल चुके हैं। यहां कुल 4 मौतें हुईं। इनमें से 2 मौतें कोरोना से बताई जा रही है। गांव में संक्रमण रोकने के लिए युवाओं की टीम काम कर रही है। चौराहे पर हरिओम पाटीदार बैठे थे। बोले- सामने जो मकान है, उसमें पॉजिटिव मिले हैं। इस परिवार के लोगों को होम क्वारेंटाइन किया है। कोई भी बाहर न निकले, इसलिए हम लोग 16 घंटे रोज यहीं तैनात रहते हैं।

सरपंच धन्नालाल मालवीय कहते हैं कि गांव के लड़के खुद इस काम के लिए आगे आए हैं। मैं लगातार इनके संपर्क में रहता हूं। लोगों को तुलसी, लौंग, काली मिर्च मिलाकर लेने की सलाह भी दे रहे हैं, ताकि कोरोना से बचे रहें।

गांव में रिश्तेदारों का भी प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया
1680 की आबादी वाले नवेली गांव में अब तक 19 पॉजिटिव मिल चुके हैं। मरीजों के मिलते ही गांव के युवा सक्रिय हो गए। तत्काल इलाज शुरू करा दिया, इसलिए इस गांव में कोरोना से अब तक किसी की मौत नहीं हुई।

दोपहर 3 बजे सहायक सचिव अंतर सिंह डोडिया प्रवेश मार्ग पर नाकाबंदी के दौरान तैनात मिले। बोले- गांव में प्रवेश के तीन रास्ते हैं, तीनों को बंद कर दिया है। बाहरी व्यक्ति का गांव में प्रवेश प्रतिबंधित है। यहां तक कि गांव वालों ने अपने रिश्तेदारों को फोन कर मिलने आने से रोक दिया है।

गांव के दूसरे रास्ते पर नाकाबंदी में तैनात भेरूलाल डागर कहते हैं कि हम चार युवक हैं, जो सुबह 6 से रात 8 बजे तक यहां तैनात रहते हैं। सरपंच धापू बाई बताती हैं कि इस नाकाबंदी से गांव में संक्रमण रुका है। जो लोग पॉजिटिव हैं, उनमें भी सुधार है, वे जल्द ठीक हो जाएंगे।

2. गांव के 40 फीसदी लोग मुंबई में कर रहे काम, इस बार अपनों को भी घर आने से मना किया
- दतिया जिले के गांवों से श्रीकांत त्रिपाठी और सुमित दुबे की रिपोर्ट

दतिया का उदगवां गांव। यहां की आबादी 6 हजार से ज्यादा है, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में एक भी ग्रामीण कोरोना पॉजिटिव नहीं है, जबकि इस गांव से सटे जिगना गांव में 36, हथलाई में 8 और नौनेर में 3 व्यक्ति संक्रमित हो चुके हैं।

इसके पीछे वजह है कोरोना की पहली लहर से ली गई सीख। गांव के अनिल सिंह चौहान कहते हैं कि गांव के 2 हजार से ज्यादा लोग मुंबई में रहकर काम करते हैं। पिछली बार लॉकडाउन लगते ही मुंबई से लोग सीधे गांव आ गए थे। यही वजह थी कि पिछली बार 50 से ज्यादा लोग कोरोना पॉजिटिव हुए थे, लेकिन इस बार लॉकडाउन के बाद मैंने खुद अपने दोनों भाई और बहू से मुंबई में ही रहने की बात कही। अन्य परिवारों में भी यही किया। पिछली बार की तुलना में केवल एक तिहाई लोग ही गांव वापस लौटे।

मुंबई में मजदूरी कर रहे उदगवां के ज्यादातर लोग इस बार गांव नहीं लौटे। उनके घरों पर ताले लगे हैं।
मुंबई में मजदूरी कर रहे उदगवां के ज्यादातर लोग इस बार गांव नहीं लौटे। उनके घरों पर ताले लगे हैं।

राजदीप परमार बताते हैं कि इस बार जो लोग मुंबई से लौटे थे, उन्हें गांव में प्रवेश से पहले 14 दिन क्वारैंटाइन किया। जांच कराई और फिर गांव के अन्य लोगों के साथ बैठने दिया। यहां 80% बुजुर्गों ने खुद जाकर टीका लगवाया। युवा अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।

300 लोगों को बुखार, देवी का प्रकोप मानकर घर में ही इलाज
कमरारी गांव में सरकारी रिकॉर्ड में तीन संक्रमित हैं। नाथूराम बताते हैं कि गांव में 300 से भी ज्यादा लोगों को बुखार की शिकायत थी, लेकिन स्वास्थ्य केंद्र 20 किमी दूर होने के कारण कोई जांच कराने ही नहीं गया।

वहीं, हरि मोहन मिश्रा ने बताया कि गांव में सालों पुराना देवी जी का मंदिर था, जिसे पंचायत ने सामुदायिक भवन बनाने के लिए तोड़ दिया। गांव के लोग बीमारी को देवी का प्रकोप ही मान रहे हैं। अब गांव के दूसरे भवन में प्रतिमा की स्थापना की गई। हालांकि गांव के कुछ लोग कहते हैं कि कोरोना तो हर तरफ फैल रहा है। जांच न कराना पड़े इसलिए लोग बहाने बना रहे हैं।

नीम, गिलोय पर भरोसा, वैक्सीन पर नहीं
नौनेरा गांव में लोग परिवार के साथ घर में बैठकर खेती की तैयारी कर रहे हैं। लॉकडाउन के खाली समय में यहां हर घर में मूंगफली फोड़ी जा रही थीं, ताकि लॉकडाउन खुलने के बाद पहली ही बारिश में बोवनी कर सके। घर में कामकाज के चलते लोग घर के बाहर बैठे जरूर मिले, लेकिन यहां सड़कें सूनी थीं। हालांकि, वैक्सीनेशन के नाम पर लोग भागते नजर आए। मुंह पर मास्क न होने के नजारे भी देखने को मिले। यही वजह है कि गांव में 3 नए संक्रमित मरीज मिले हैं।

ऐसा ही हाल पलोथर गांव का भी है। यहां केशवसिंह कहते हैं कि वैक्सीन की जरूरत नहीं। नीम, गिलोय और तुलसी का काढ़ा पीकर बुखार और खांसी ठीक कर लेते हैं, इसलिए 40 परिवारों की बस्ती में किसी भी व्यक्ति ने वैक्सीनेशन नहीं कराया।



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