14 मई, शुक्रवार को सूर्य अपनी उच्च राशि मेष से निकलकर वृष में आ जाएगा। इस दिन वृष संक्राति पर्व मनाया जाएगा। पुराणों में बताया गया है कि सूर्य के संक्रमण काल यानी संक्राति के समय पूजा और दान करने से कई गुना पुण्य मिलता है। इसलिए इस पर्व पर स्नान, दान, व्रत और पूजा-पाठ करने की परंपरा है। महाभारत में बताया गया है कि सूर्य संक्रांति पर्व पर किए गए श्राद्ध से पितर संतुष्ट होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
वृषभ संक्रांति पर्व हिंदू कैलेंडर के वैशाख महीने में मनाया जाता है, लेकिन कभी-कभी तिथियों की घट-बढ़ होने से ज्येष्ठ महीने में भी ये पर्व मनाया जाता है। इस बार वैशाख में ये संक्रांति होने से इस पर्व पर तीर्थ में स्नान करना शुभ माना जाता है। वृष संक्रांति पर्व पर सूर्य देव और भगवान शिव के ऋषभरुद्र स्वरुप की पूजा करनी चाहिए। इससे हर तरह की बीमारियां और परेशानी दूर हो जाती है। कोरोना महामारी के कारण तीर्थ स्नान करना संभव नहीं है। इसलिए घर पर ही पानी में गंगाजल या किसी पवित्र नदी के जल की 3 बूंद डालकर ही नहा लेना चाहिए।
पूजा विधि
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं।
उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाएं और पूजा करें।
दिनभर व्रत और दान करने का संकल्प लें।
पीपल और तुलसी को जल चढ़ाएं।
गाय को घास-चारा या अन्न खिलाएं।
पानी से भरा घड़ा दान करने से बहुत पुण्य मिलता है।
सूर्योदय से दो प्रहर बीतने के पहले यानी दिन में 12 बजे के पहले पितरों की शांति के लिए तर्पण करना चाहिए।
संक्रांति पर्व पर गौ दान का महत्व
वृष संक्रांति पर्व मनाने वालों को जमीन पर सोना चाहिए। दिनभर ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। पूरे दिन जरुरतमंद लोगों को दान करना चाहिए। कोशिश करना चाहिए इस दिन नमक न खाएं। इस पर्व पर भगवान सूर्य, विष्णु और शिवजी की पूजा करनी चाहिए। इनके अलावा पितृ शांति के लिए तर्पण करने का भी महत्व है। वृष संक्रांति पर गौ दान को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
पुराणों का कहना है कि इस संक्रांति पर गौ दान करने से हर तरह के सुख मिलते हैं। पाप खत्म हो जाते हैं और परेशानियों से भी छुटकारा मिलता है। गौ दान नहीं कर सकते तो गाय के लिए एक या ज्यादा दिनों का चारा दान करें। इस तरह दान करने से पाप खत्म हो जाते हैं।