उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में रहने वाले कार्तिक भट्ट ने 2016 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वे UPSC की तैयारी करने लगे। तीन साल तक उन्होंने कोशिश की, लेकिन फिर उनका मन नहीं लगा। इसके बाद उन्होंने तय किया कि वे अपने पिता के साथ खेती करेंगे और पहाड़ी टेस्ट को पहाड़ी ब्रांड में तब्दील करेंगे। 2019 में उन्होंने पहाड़वाला नाम से एक स्टार्टअप की शुरुआत की। वे मेडिसिनल प्लांट की खेती और शहद की प्रोसेसिंग करके 20 से ज्यादा वैराइटी के प्रोडक्ट की मार्केटिंग देशभर में कर रहे हैं। हर महीने 200 से ज्यादा उन्हें ऑर्डर मिलते हैं। इससे सालाना 9 लाख रुपए उनकी कमाई हो रही है।
टूरिस्टों को उनके घर पर मिले पहाड़ी प्रोडक्ट
25 साल के कार्तिक के पिता यूपी गवर्नमेंट में सरकारी कर्मचारी थे। रिटायरमेंट के बाद वे खेती और मधुमक्खी पालन कर रहे थे। हालांकि वे बिजनेस के रूप में खेती नहीं कर रहे थे। कार्तिक कहते हैं कि उत्तराखंड टूरिस्टों का फेवरेट प्लेस है। मेरे जिले में भी बड़ी संख्या में टूरिस्ट आते हैं। उन्हें यहां के लोकल ब्रांड खूब पसंद आते हैं और वे इसकी खरीदारी भी करते हैं, लेकिन जैसे ही टूरिस्ट सीजन खत्म होता है, यहां का मार्केट सुस्त पड़ जाता है। इसलिए मैंने तय किया कि अगर इन प्रोडक्ट्स को हम सीधे टूरिस्टों के घर भेजें तो बढ़िया कमाई कर सकते हैं और लोगों को साल भर पहाड़ी प्रोडक्ट भी मिल जाएंगे।
कार्तिक अपने पिता के साथ मिलकर मेडिसिनल प्लांट और उसके हर्ब्स से नए-नए प्रोडक्ट तैयार करते हैं।
कैसे शुरुआत की?
कार्तिक कहते हैं कि मैंने सबसे पहले मार्केटिंग और प्रोसेसिंग पर फोकस किया, क्योंकि प्रोडक्शन हमारे लिए इश्यू नहीं था। पिता जी बढ़िया खेती कर रहे थे। मैंने सोशल मीडिया पर पहाड़वाला नाम से पेज बनाया। वॉट्सऐप ग्रुप से लोगों को जोड़ना शुरू किया। इसके बाद वेबसाइट बनाई और कुछ दिनों बाद ऐप भी लॉन्च कर दिया। धीरे-धीरे लोगों का रिस्पॉन्स मिलता गया और लोग हमसे जुड़ते गए। फिर हमने प्रोसेसिंग भी शुरू कर दी। हल्दी- अदरक के पाउडर, अलग-अलग वैराइटी के शहद, जैम, चटनी, जूस जैसे प्रोडक्ट बनाकर बेचना शुरू कर दिया।
डिमांड बढ़ी तो नए प्रोडक्ट लॉन्च करते गए
कार्तिक बताते हैं कि जब हमारे कस्टमर बढ़ने लगे तो हम अपने प्रोडक्ट भी बढ़ाने लगे। हमने पास के किसानों का नेटवर्क बनाया और उनके प्रोडक्ट भी खरीदने लगे। अभी हमारे साथ करीब 10 से 12 ऐसे किसान जुड़े हैं, जिनके उत्पाद हम खरीद लेते हैं। वे कहते हैं कि यहां का पहाड़ी नमक लोगों में काफी लोकप्रिय है। हमने उसकी प्रोसेसिंग की और उसे नए सिरे से तैयार किया। इसी तरह हमने यहां के लोकल गार्डन में उगने वाली पहाड़ी चाय की प्रोसेसिंग की और खुद का ब्रांड तैयार किया। इसी तरह हमने रेड राइस, राजमा, अलग-अलग वैराइटी की दाल को पैक कर बेचना शुरू किया। इससे हमारी कमाई दोगुनी हो गई।
कैसे तैयार करते हैं चाय?
वे कहते हैं कि सबसे पहले हम यहां के लोकल गार्डन से चाय की हरी पत्तियां लाते हैं। फिर लेमन ग्रास की पत्तियों के साथ काटकर धूप में सुखाते हैं। इसके बाद इसमें अदरक, तुलसी पत्ता, दालचीनी जैसी चीजें मिलाते हैं। ये सभी प्रोडक्ट पहाड़ी इलाके के ही होते हैं।
ये चाय कार्तिक भट्ट ने तैयार की है। वे कहते हैं कि इससे हाइपरटेंशन और डायबिटीज काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।
कैसे करें लेमन ग्रास की खेती?
लेमन ग्रास की खेती बहुत ही आसान है। यह किसी भी मिट्टी पर हो सकती है। बस जलजमाव वाली जगह नहीं चाहिए। जरूरत के मुताबिक सालभर इसकी खेती की जा सकती है। पहली बार खेती करने पर फसल तैयार होने में 60 से 65 दिन का वक्त लगता है। जबकि दूसरी बार में सिर्फ 40 से 45 दिन लगते हैं। एक बार प्लांटिंग करने के बाद चार से पांच साल तक फसल का लाभ लिया जा सकता है। इसके लिए महीने में एक बार सिंचाई की जरूरत होती है।
किस तरह बनता है शहद?
शहद तैयार करने के लिए फूलों की उपलब्धता जरूरी है। जहां मधुमक्खियों के बॉक्स रखे हों, वहां तीन किलोमीटर के रेंज में फूल उपलब्ध होने चाहिए। मधुमक्खियां सबसे पहले फूलों का रस पीती हैं। इसके बाद वे वैक्स की बनी पेटी में अपने मुंह से उल्टी करती हैं। इसे चुगली भी कहते हैं। इसके बाद दूसरी मधुमक्खी उसे ग्रहण करती है और वो भी वही प्रक्रिया दोहराती है। इसी तरह एक मक्खी से दूसरी, तीसरी और फिर बाकी मधुमक्खियां भी इस प्रक्रिया में भाग लेती हैं। आगे चलकर इससे शहद बनता है। शुरुआत में इसमें पानी की मात्रा अधिक होती है, लेकिन रात में मधुमक्खियां अपने पंख की मदद से शहद से पानी अलग कर देती हैं।
शहद बनने की यह प्रक्रिया लगातार 7-8 दिनों तक चलती है। इस तरह के शहद को कच्चा शहद कहा जाता है। इसके बाद शहद को पकाने के लिए रखा जाता है। करीब 12 से 15 दिनों में शहद पक कर तैयार हो जाता है, जिसे पेटी से निकाल लिया जाता है। इस शहद का सीधे उपयोग किया जा सकता है।
करीब 12 से 15 दिनों में शहद पक कर तैयार हो जाता है, इसके बाद इसे पेटी से निकाल लिया जाता है।
किन चीजों की जरूरत होती है?
- इसके लिए खुली जगह की जरूरत होती है, जहां मधुमक्खियों के पालन के लिए पेटियां रखी जा सकें।
- लकड़ी के बने बक्से और मुंह की सेफ्टी के लिए जाली।
- मधुमक्खियों की उन्नत किस्म।
- हाथों के लिए दस्ताने और धुंआदानी।
- अगर आप 200 से 300 पेटियों में मधुमक्खियां पालते हैं तो आपको 4 से 5 हजार स्क्वायर फीट जमीन चाहिए। मधुमक्खी की कई प्रजातियां होती हैं। इनमें से इटालियन मधुमक्खी सबसे अच्छी मानी जाती हैं। यह शांत स्वभाव की होती हैं और छत्ता छोड़कर कम भागती हैं।
10 बॉक्स के साथ कर सकते हैं शुरुआत
शहद का बिजनेस 10 बॉक्स के साथ शुरू किया जा सकता है। इसके लिए करीब 30 हजार रु. खर्च होंगे। बाद में इनकी संख्या बढ़ाई जा सकती है। एक महीने में एक पेटी से चार किलो तक शहद मिल सकता है, जिसे बाजार में 200 से 300 रुपए प्रति किलो की दर से बेचा जा सकता है। इसके साथ ही अगर हम उसकी प्रोसेसिंग करने लगे तो 500 रुपए किलो के हिसाब से भी आसानी से बेचा जा सकता है।
कहां से ले सकते हैं ट्रेनिंग?
देश में इस समय मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग के लिए कई संस्थान हैं, जहां मामूली फीस जमाकर ट्रेनिंग ली जा सकती है। नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से भी इसके विषय में जानकारी ली जा सकती है। इसके साथ ही जो लोग मधुमक्खी पालन का काम कर रहे हैं, उनसे भी इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है। केंद्र सरकार आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत इस तरह के स्टार्टअप शुरू करने वालों को लागत का 40% तक सपोर्ट करती है।