कोई 8 महीने की जुड़वां बच्चियों को दूध नहीं पिला पा रही, तो कोई 8 साल की बच्ची को अकेले घर में बंद करके निभा रही ड्यूटी

Posted By: Himmat Jaithwar
5/9/2021

गुना। कोरोना की पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर ने जनजीवन ज्यादा अस्त -व्यस्त कर दिया है। फ्रंट लाइन पर डॉक्टर, नर्स, पुलिसकर्मी तैनात हैं, इसमें से कई मदर्स हैं, जो अपने जिगर के टुकड़ों से दूर होकर अपनी ड्यूटी निभा रही हैं। मदर्स डे पर ऐसी ही कुछ मदर्स वॉरियर्स की कहानी लेकर आया है।

जिला मुख्यालय स्थित टीकाकरण अभियान में लगीं नर्स प्रीति बिहारे की 8 माह की दो जुड़वा बेटियां हैं। वह सुबह 8:30 बजे से शाम 5 बजे तक ड्यूूटी पर रहती हैं, इसलिए बेटियों को समय नहीं दे पा रही हैं। वह दोनों को दूध नहीं पिला पा रही हैं। दोनों को दो महीने से उनके पति संभालते हैं। पति-पत्नी किराए के मकान में रहते हैं। वे कहती हैं की बाकी सब सही है, बस बच्चियों की ही चिंता रहती है। बच्चियों की उम्र अभी बहुत कम है, ऐसे में उन्हें मां की ज्यादा आवश्यकता रहती है। कोरोना की वजह से हम बच्चियों से थोड़ी दूूरी बनाकर रहते हैं। आज के समय मानव सेवा भी एक बड़ी जरुरत है, इसी सोच के साथ वे अपनी ड्यूटी करती हैं।

अस्पताल में अपनी सेवाएं देतीं नर्स।
अस्पताल में अपनी सेवाएं देतीं नर्स।

डेढ़ साल से अपने बच्चों को नहीं देखा
इसी टीकाकरण केंद्र पर अपनी ड्यूटी कर रहीं प्रीति श्रीवास्तव पिछले वर्ष की कोरोना लहर से ही ड्यूटी कर रही हैं। पहले उनकी फीवर क्लिनिक में ड्यूटी थी और अब इस वैैक्सीनेशन सेंटर पर वे अपनी सेवाएं दे रही हैं। वे बताती हैं कि पिछले डेढ़ वर्ष से वे अपने बच्चों से नहीं मिली हैं। वे अपने पिता और दादी के साथ रहते हैं। बच्चों की बहुत याद आती है। हालत ऐसे हैं कि चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती हूं। अब मानव सेवा ही मेरा सबसे बड़ा कर्तव्य है।

स्टाफ नर्स सिम्मी मैथ्यू केरल से आकर गुना जिले में अपनी सेवाएं दे रही हैं। उनके दो बच्चे हैं। वे भी 9 घंटे की अपनी ड्यूटी कर रही हैं। वे बताती हैं कि पहले बच्चे यहीं उनके साथ ही रहते थे। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में चिंताजनक हालत बन गए। तो ऐसे में परिजनों ने कहा की बच्चों को केरल भेज दो। उनके दोनों बच्चे केरल में उनकी मां के साथ ही रहते हैं। वे बताती हैं की बच्चों से फ़ोन और वीडियोकॉल पर ही बात हो पाती है। बच्चे उन्हें काफी याद करते हैं, लेकिन ये समय ऐसा है की बच्चों के पास नहीं जा पा रही हैं। बच्चों से ऑनलाइन ही मुलाकात हो पाती है। कोरोना के समय में ऐसे ही ड्यूटी चल रही हैं।

8 वर्ष की बच्ची को ताले में बंद करके आती हैं
अपनी ड्यूटी और कर्तव्य निभाने का इससे अच्छा क्या उदाहरण होगा कि जिला अस्पताल में पदस्थ मेडिकल इंचार्ज गीता तिवारी अपनी 8 वर्ष की बच्ची को ताले में बंद करके आती हैं। वे इंदौर की रहने वाली हैं। 15 वर्षों से गुना जिला अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रही हैं। उन्हें टीकाकरण केंद्र का प्रभारी बनाया गया है। वे बताती हैं कि अपनी बच्ची के साथ यहां अकेली रहती हैं। इस कोरोनाकाल में अपनी ड्यूटी के लिए बच्ची को ताले में बंद करके आना पड़ता है। उसकी देखभाल करने वाला इनके अलावा कोई नहीं है। बच्ची बमुश्किल अपना समय गुजार पाती है।

कोरोना पेशेंट की बीपी जांचती नर्स।
कोरोना पेशेंट की बीपी जांचती नर्स।

शादी के 2 साल बाद ही पति की मौत के बाद बच्चों को पाला
डॉक्टर और नर्सों की तरह पुलिस भी फ्रंट लाइन पर आकर काम कर रही है। कई महिला अधिकारियों - कर्मचारियों की ड्यूटी चेकिंग में लगी है। ऐसे ही एक निरीक्षण दल की सदस्य हेड कांस्टेबल 55 वर्षीय कृष्णा पाराशर ने बताया कि 17 वर्ष की उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। 19 वर्ष की उम्र में उनके पति का देहांत हो गया। तबसे ही उन्होंने अपने बच्चों को अकेले पाला। कोरोना काल में उनकी सुबह 6 से दोपहर 3 बजे तक ड्यूटी है।चेकिंग दस्ते की गाडी के साथ वे रहती हैं। बीपी और शुगर की बीमारी के बाद भी वे अपनी ड्यूटी कर रही हैं। उन्होंने बताया की सुबह 4 बजे से उठना पड़ता है। अपने बच्चों के लिए खाना बनाकर वे रखकर आती हैं। उन्होंने बताया की जीवन में इतना संघर्ष किया है की अब आदत हो गई है।



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