दमोह में 17 हजार से हार भाजपा के राजनीतिक भविष्य की आहट; शिवराज की कार्यशैली पिछले कार्यकाल की तुलना में काफी बदली

Posted By: Himmat Jaithwar
5/5/2021

दमोह। दमोह उपचुनाव में 17 हजार वोटों से भाजपा की हार राजनीतिक भविष्य की एक आहट है। इस सीट पर 20 से ज्यादा मंत्री और तमाम विधायकों के प्रचार के बावजूद यह हार चौंकाने वाली कही जा सकती है। आमतौर पर उपचुनाव में जीतने के लिए सत्ताधारी दल के पास मौके ज्यादा होते हैं, क्योंकि उसके पास संसाधनों की कमी नहीं होती। यह परिणाम इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जुलाई से अक्टूबर के बीच प्रदेश में नगर निगम, नगर पालिकाओं, जिला पंचायत और फिर जनपद पंचायतों के चुनाव होने हैं।

इन चुनावों पर स्थानीय मुद्दों का असर तो रहेगा ही, लेकिन कोरोना के दौरान सरकार के प्रबंधन पर लोगाें की रायशुमारी भी होगी। उत्तरप्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव परिणामों ने इसे स्पष्ट कर दिया है। अगर हम 2014 की बात करें तो प्रदेश के शहरी क्षेत्र में भाजपा का एकाधिकार है। उस समय सभी 16 नगर निगमों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था। इसी तरह 381 नगर पालिका और परिषदों में से भाजपा ने 291 पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस सिर्फ 90 स्थानों पर ही जीत पाई थी।

परंपरागत रूप से प्रदेश का शहरी क्षेत्र भाजपा के प्रभाव में माना जाता है और ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस भाजपा को कड़ी टक्कर देती है। लेकिन, कोरोना का सबसे बड़ा प्रभाव शहरी क्षेत्र में है और दमोह क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार को शहरी और ग्रामीण दोनाें ही इलाकों में करारी हार मिली है। 17 हजार का वोट अंतर इतना बड़ा है कि उसके लिए पार्टी की आंतरिक राजनीति को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। यह भी खास बात है कि हारने वाले भाजपा के उम्मीदवार राहुल लोधी 2019 के चुनाव में जब कांग्रेस के उम्मीदवार थे, तब साढ़े सात सौ वोटों से जीते थे, उन्हें इस बार उससे कई गुना बड़ी हार मिली है।

दूसरी तरफ 2019 में सरकार गिरने के बाद कमलनाथ लगातार प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हैं और पार्टी पर उनका पूरा नियंत्रण है। यह भी भाजपा के लिए चिंता का विषय है। शिवराज सिंह चौहान ने अब अपनी कार्यशैली पिछले कार्यकाल की तुलना में काफी बदल दी है। पहले जहां वो हर दिन इलेक्शन मोड में रहते थे, अब कोरोना के चलते वीसी और समीक्षा बैठकों में व्यस्त रहते हैं। जब वे चुनावी मैदान में उतरेंगे तो उनके सामने जमीनी स्तर की कई नई चुनौतियां खड़ी होंगी। भाजपा के पास चुनाव जीतने के लिए एक मजबूत मशीनरी और टीम है, लेकिन सबकुछ इस पर निर्भर करेगा कि वो आने वाले दिनों में अपनी रणनीति को किस तरह से तैयार करते हैं।



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