मध्यप्रदेश में शहरों के बाद गांवों में भी कोरोना तेजी से फैल रहा है। लॉकडाउन लागू है, ऐसे में गांवों में कंटेनमेंट जोन बनाने पड़ रहे हैं।प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में बसे गांवों का हाल देखा। जहां लोगों ने खुद सख्ती की, वहां दूसरी लहर में भी एक केस नहीं है। ऐसे गांव भी हैं, जहां हर रोज एक संदिग्ध की मौत हो रही है। कई लोग बीमार भी हैं। हमें ऐसा गांव भी मिला जहां पात्र में से 75% आबादी (45+उम्र) ने टीका लगवा लिया है।
पढ़िए प्रदेश के 5 गांवों की ग्राउंड रिपोर्ट...
1. सागर का गांव खामखेड़ा.. बाहर से आने वालों को खेत में क्वारैंटाइन किया
खामखेड़ा की सागर से दूरी 45 किमी है। कोरोना फैलने पर 5 युवक राजस्थान के अलवर से 24 अप्रैल को गांव लौट आए। तभी से गांव के बाहर खेत में क्वारैंटाइन हैं। परिवार वाले उन्हें रोजाना खाना ले जाकर दे देते हैं। कोई युवक खेत से बाहर नहीं जाता। सभी मोबाइल पर मूवी देखकर और सोकर समय बिता रहे हैं।
इनमें से एक जोगेंद्र ने बताया कि क्वारैंटाइन होने के बाद किसी से नहीं मिले। परिवार वालों ने खाने के लिए अलग बर्तन दे दिए। इसके बाद रोजाना पॉलिथीन में खाना लाकर दे जाते हैं। खेत में बने कुएं से पानी पीते हैं। दोपहर हो या रात, पेड़ के नीचे ही समय बिता रहे हैं। अभी 8 मई को इनका 14 दिन का क्वारैंटाइन पीरियड खत्म होगा। इसके बाद ये गांव आ सकेंगे। गांव में एक भी केस अब तक नहीं आया है।
2. होशंगाबाद का रायपुर: संक्रमित निकले तो खेत पर ही आइसोलेट हो गए
होशंगाबाद के रायपुर गांव में संक्रमित खेत पर क्वारैंटाइन हैं।
होशंगाबाद से 4 किमी दूर रायपुर में देवी माता के चबूतरे पर कुछ बुजुर्ग सोशल डिस्टेंस बनाकर बैठे थे। इनके चेहरे पर मास्क और गमछा लिपटा था। ग्रामीण मनोहर मलैया ने बताया कि कोरोना संक्रमण को लेकर गांव में पिछले साल की अपेक्षा जागरूकता ज्यादा आ गई है। होशंगाबाद में बढ़ रहे कोरोना पॉजीटिव केस और मौतों को देखते हुए हमारे गांव में यह बदलाव हुआ कि अब लोगों ने बेवजह घरों से निकलना बंद कर दिया। अगर जरूरी काम पर निकलते भी हैं तो चेहरे पर मास्क या गमछा जरूर लगाते हैं। बच्चे पड़ोसियों के घर भी नहीं जाते।
यहां 25 दिन पहले जीवन लाल सैनी को बुखार आया। सिटी स्कैन में कोरोना संक्रमण होना पाया गया। जीवन लाल ने बताया, जिला अस्पताल में 3 दिन भर्ती रखने के बाद डिस्चार्ज कर 14 दिन घर में ही होम आइसोलेशन रहने को कहा। मेरा घर छोटा और मेरे बड़े भाई जुगल किशोर के परिवार में सदस्यों की 11 है। सभी की सुरक्षा के लिए मैं और मेरी पत्नी भारती सैनी, बड़े भाई जुगल किशोर भतीजा नरेंद्र (तीनों साथ अस्पताल गए थे) खेत में जाकर रहने लगे। 15 दिन खेत में नीम के पेड़ के नीचे रहे। घर से भतीजा खाना देने आता था। अब सभी स्वस्थ हैं।
ग्वालियर का सरसपुरा गांव के बाहर बनाया गया क्वारैंटाइन सेंटर।
3. ग्वालियर का सरसपुरा गांव : 75% ने वैक्सीन लगवाई, एक भी संक्रमित नहीं
शहर से 40 किलोमीटर दूर सरसपुरा गांव लोगों के लिए मिसाल बना हुआ है। यहां के जागरूक लोग कोरोना को मात देते नजर आ रहे हैं। इस गांव की जनसंख्या 502 है। इनमें से 270 लोगों की उम्र 45 से ज्यादा है। इनमें से 202 लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। गांव के बाहर क्वारैंटाइन सेंटर बनाया है। बाहर से आने वालों को पहले वहीं रुकना होता है।
यही कारण है कि अभी तक वायरस से लोग बचे हुए हैं। गांव के निरंजन सिंह ने बताया कि संक्रमण के इस दौर में गांव को सुरक्षित करने के लिए गांव के लोगों ने शहर के लोगों से दूरी बना ली है। सभी ने अपने-अपने रिश्तेदारों को फिलहाल इस समय में उनके गांव न आने के लिए कहा है। गांव से लोगों ने अभी तक शादियों और बारात में जाने से भी परहेज किया है।
4. बेलखेड़ा में लापरवाही की बेल: 1 माह में 28 की संदिग्ध हालात में मौत, 56 बीमार
शहर से 60 किमी दूर बेलखेड़ा गांव भी कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है। 7,536 की आबादी वाले इस गांव में एक महीने में 28 मौतें हो चुकी हैं। इनमें तीन मौतों को ही प्रशासन ने कोरोना से होने की बात मानी है। 18 लोग संक्रमित हैं। 56 लोग गांव के अब भी बुखार सहित अन्य लक्षणों से प्रभावित हैं। पहली लहर में इस गांव में कोरोना घुस भी नहीं पाया था, पर एक डॉक्टर के संक्रमित होने के बाद गांव में कोरोना ने पांव पसार लिया है। वह बीमार पड़ने के बाद भी गांव वालों का इलाज कर रहे थे। अब इसे कंटेनमेंट जोन बनाकर संक्रमण रोकने का प्रयास किया जा रहा है।
जबलपुर के बेलखेड़ा गांव को कंटेनमेंट जोन घोषित किया गया है।
इस गांव में सबसे दुखदाई मौत मां-बेटे की हुई। चार दिन के अंतराल पर मां-बेटे की मौत से गांव में मातम पसरा हुआ है। गांव के हेमंत पाठक (32) को चार दिन पहले बुखार आया और सांस लेने में कठिनाई होने लगी। परिवार के लोग अस्पताल ले गए। पर वहां पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया। इकलौते बेटे के गम में दुखी मां ममता पाठक (68) की भी शुक्रवार को मौत हो गई। परिवार में पिता छिदामी पाठक (70) और उनकी बहू ही बचे हैं, लेकिन दोनों संक्रमित हैं।
बेलखेड़ा में ही पूर्व विधायक प्रतिभा सिंह का भी पैतृक घर है। तीन दिन पहले उनके परिवार के रिश्ते में जेठ रघुराज सिंह ठाकुर (70) की कोरोना से मौत हो गई। अब उनके घर (हवेली) के बाहर कोविड कंटेनमेंट जोन का पाेस्टर लगाकर प्रवेश रोक दिया गया है।
संक्रमण फैलने के बाद सुध ली, पर नियमों की अनदेखी
यहां हर शनिवार को हॉट बाजार लगता था। अब जाकर उस पर रोक लगाई गई है। कोरोना संक्रमित कई लोग होमआइसोलेट रहकर स्वस्थ हुए, लेकिन सभी के यहां एक दिक्कत थी शौचालय की। कॉमन शाैचालय होने के चलते लोगों को परेशानी हुई। कुछ ने पड़ोसियों के शौचालय उपयोग किए तो कुछ बाहर निकल गए। अब गांव के शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बेलखेड़ा को क्वारैंटाइन सेंटर बनाया गया है। अभी इसे चालू नहीं किया जा सका है। दुकानों का आधा शटर गिराकर कारोबार चल रहा है। इसकी वजह से कोरोना रुक नहीं रहा है।
5. गुना का गढ़ा गांव: सड़कें सूनीं, घर से कम निकलते हैं लोग
गुना जिले के गढ़ा गांव में सूनी पड़ी दलान।
गांव में जिन दलानों पर कभी रौनक हुआ करती थी, वह अब सुनसान पड़ी हुई हैं। जिन चबूतरों पर बैठकर लोग गप्पे लगाया करते थे, वहां अब कोई नहीं दिखता। कोरोना ने गांव की जीवनशैली को बदल दिया है। ऐसा ही कुछ नजारा था गुना से 10 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम गढ़ा का। इस गांव में कोरोना के कुछ केस जरूर आए हैं। गांव से कई लोग मंडी में सब्जी बेचने पहुंचते हैं। इसलिए वह इस रोग की चपेट में आ गए। हालांकि वे शहर के जिला अस्पताल में ही हैं। यहां पर गांव वालों सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं और मास्क पहनते हैं। सावधानी की वजह से कोराेना गांव में पांव नहीं पसार पाया।