इंदौर। डॉक्टर साहब, अगले साल मेरे जन्मदिन पर जरूर आना... ये शब्द 86 साल की उमा शर्मा के हैं। 15 दिन पहले डॉक्टरों ने उनकी कोरोना रिपोर्ट और सीटी स्कैन देखकर कह दिया था कि अब इनके पास 1-2 दिन का ही समय बचा है, आप इनको घर ले जाइए। इतना सुन परिवार वाले चिंतित व मायूस हो गए। दूसरे डाक्टरों से भी परामर्श किया, तो उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए।
न अस्पताल में जगह, न ऑक्सीजन और न ही दवाइयां हैं। इस उम्र में उमा शर्मा के फेफड़ों में 60% इंफेक्शन हो चुका था। ऑक्सीजन लेवल बार-बार 40% तक पहुंच रहा था, लेकिन उन्होंने अपने जज्बे से डॉक्टरों से झूठा साबित कर दिया। कोरोना को मात दी। वह फिर से सामान्य जिंदगी में लौट आई हैं।
उमा शर्मा की रिपोर्ट 15 दिन पहले पॉजिटिव आई थी। फेफड़ों में भी 60 % संक्रमण फैल चुका था। डॉक्टरों के जवाब सुनने के बाद हर किसी ने आस छोड़ दी थी कि अब वे कभी ठीक नहीं हो पाएंगी। क्योंकि एक नहीं तीन-चार डॉक्टरों से उनके केस में ओपिनियन लिया गया। स्थिति देख उनको घर लाना भी परिवार के लिए संभव नहीं था, इसलिए डॉक्टर ने उन्हें अस्पताल में ही रहने की अनुमति दे दी।
जरूरी दवाइयां भी नहीं दीं
हालांकि उन्हें मरणासन्न जान डॉक्टरों ने जरूरी दवाइयां देने से भी मना कर दिया। वे भी 14 दिन तक बिना सही से खाए किसी तरह अस्पताल में समय काटती रहीं। यहां कई कोरोना पेशेंट उनके सामने दम तोड़ चुके थे, लेकिन उन्होंने जीने की आस नहीं छोड़ी। वहां भी योग-संयम और सकारात्मक ऊर्जा लेती रहीं।
आईसीयू में कोरोना के गंभीर मरीजों के साथ रहते हुए भी वे हमेशा यही कहती रहीं कि मुझे कोरोना नहीं है। मुझे एक बार घर ले चलो। बिस्तर पर लेटे लेटे वह भजन कीर्तन करते हुए बाकी मरीजों का साहस बढ़ाती रहीं। आखिर उनकी इच्छाशक्ति का परिणाम रहा कि वे ठीक हो गईं। जब हनुमान जन्मोत्सव पर उनका जन्मदिन आया, तो बोलीं - डॉक्टर साहब मेरे अगले जन्मदिन पर जरूर आना। जब स्टाफ को पता चला कि उनका जन्मदिन है, तो वहां पर भी सेलिब्रेट किया गया।
आखिरकार, 14-15 दिन के संघर्ष के बाद उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई और वे सकुशल घर लौट आईं। उनका कहना है कि अगर हमारी इच्छाशक्ति। हमारा भगवान में विश्वास प्रबल है, तो दुनिया की कोई भी शक्ति डगमगा नहीं सकती।