मजदूरों की मजबूरी की फिर वही तस्वीर... वही रास्ते, वही सफर। रोजी-रोटी की चिंता भी वैसी ही। मजदूर लौट रहे हैं लेकिन इस बार सड़कों पर पैदल सफर करने वालों की भीड़ नहीं है, क्योंकि बस और ट्रेन का सहारा है। पिछले साल के अनुभव को देखते हुए मजदूर इस बार घर के वापसी के लिए पहले ही चल पड़े। सबसे ज्यादा लोग महाराष्ट्र और गुजरात से लौट रहे हैं।
गुजरात की सीमा से; फैक्टरी मालिकों ने पहले ही कह दिया- जिसे जाना है, चला जाए
(दीपेश नागर. पिटोल (झाबुआ) ; गुजरात की बॉर्डर पर बसें लगातार आ रही हैं। ये उत्तर प्रदेश और बिहार के उन श्रमिकों और परिवार वालों से खचाखच भरी हैं, जो गुजरात की फैक्टरियों से घर लौट रहे हैं। फैक्टरी मालिकों ने कह दिया- जिसे जाना है चला जाए। कभी भी काम बंद हो सकता है। कानपुर के जयपाल सिंह ने बताया कि पिछले साल लॉकडाउन लगा तो घर पहुंचने में एक महीना लग गया था। 25 दिन गुजरात में बिना पैसों के रहे। जीवन के सबसे बुरे दिन रास्ते में देखने को मिले। इस बार समय पर पहुंच जाएंगे पर काम छूटने की चिंता भी है।
राजस्थान की सीमा से; पिछले अनुभव से डरे कटाई बीच में छोड़ी
(देवकीनंदन शर्मा. श्योपुर); कराहल एवं विजयपुर क्षेत्र से गठरी में गृहस्थी बांधकर फसल काटने निकले आदिवासी मजदूरों की घर वापसी जारी है। पिछले साल लॉकडाउन में आई दुश्वारियों को देखते हुए इस बार फसल कटाई का काम बीच में छोड़कर बस, ट्रैक्टर-ट्राली और मेटाडोर से अपने गांव लौट रहे हैं। सवाई माधोपुर से श्योपुर होते हुए शनिवार को कराहल तहसील के अधवाड़ा जा रहे लच्छू आदिवासी और उसकी पत्नी रामवती ने बताया, इस बार गर्मी के कारण गेहूं की फसल जल्दी पकने पर किसानों ने मशीन से फसल कटवा ली, इसलिए इस साल काम बहुत कम मिला। पहले हर परिवार करीब महीनेभर रहकर फसल कटाई से लगभग 20 मन यानी आठ क्विंटल गेहूं आसानी से इकट्ठा कर लेता था। इस बार आठ कट्टे ही गेहूं हो पाया।
महाराष्ट्र की सीमा से; पतली हो गई ताप्ती की धारा, लौटने के लिए यही बनी सहारा
(सचिन तिवारी. घुटीघाट (खंडवा); खंडवा जिले के खालवा से 35 किमी दूर है घुटीघाट। जहां महाराष्ट्र की सीमा से सटकर ताप्ती नदी बहती है। इसी का फायदा दोनों प्रदेश के लोग उठा रहे हैं। शनिवार दोपहर कुछ बाइक सवार सीमा पार कर खरीदी के लिए आ-जा रहे थे। घुटीघाट निवासी मंशाराम ठाकुर ने बताया कि नदी पार करते ही महाराष्ट्र लग जाता है। 10 मिनट में महाराष्ट्र के धारणी पहुंच जाते हैं। सुबह 9 से शाम 4 बजे तक धारणी खुल रहा है। यहां के ज्यादातर लोग धारणी पर निर्भर हैं।
उप्र की सीमा से पहले जैसा नजारा नहीं, क्योंकि गए ही कम लोग
सुनील मोदी. निवाड़ी ; इस बार उत्तरप्रदेश की सीमा पर वैसा नजारा नहीं है, जैसा पिछले साल था। इसका एक कारण यह भी है कि लौटने के बाद अधिकतर मजदूर गए ही नहीं थे, क्योंकि उनका अनुभव बहुत खराब रहा था। प्रशासन ने सीमा पर सख्ती कर रखी है। बॉर्डर पर बनाए गए नाकों पर हुई सैंपलिंग में एक ही दिन में 12 पॉजिटिव निकले। निवाड़ी जिला चारों तरफ से उप्र से घिरा हुआ है। बरूआसागर में प्रशासन ने पंचायत सचिव व कांस्टेबल की ड्यूटी लगाई है, लेकिन यहां से निकलने वाले लोगों की जानकारी तक नहीं ली गई। यही वजह है कि लोग बेरोकटोक आ जा रहे हैं। उप्र के निमचौनी गांव से निवाड़ी पहुंचे रामचरण कुशवाहा ने कहा- घरेलू सिलाई मशीन खराब हो जाने के कारण सुधरवाने के लिए आया था। यहां आए तो बाजार बंद मिला।