भोपाल। प्रख्यात साहित्यकार डॉ नरेंद्र कोहली का निधन हो गया। वे पिछले कुछ दिनों से कोरोना से पीड़ित थे। उन्होंने शनिवार शाम 6 बजकर 40 मिनट पर अंतिम सांस ली। कोरोना से संक्रमित होने के कारण उन्हें दिल्ली के सेंट स्टीफंस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्होंने पौराणिक कहानी के आधार पर अभ्युदय, युद्ध, वासुदेव, अहल्या, जैसी प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं।
दैनिक भास्कर के लिए दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय के निदेशक राजुरकर राज ने साझा किए अपने अनुभव। राजुरकर राज ने बताया कि 'कोई दसेक साल पुरानी बात है। मैं दिल्ली के एक समारोह में गया था। सुयोग से उस समारोह में नरेंद्र कोहली भी थे। मैं उन्हें जानता था पर वे मुझसे परिचित नहीं थे। मैंने दुष्यंत संग्रहालय के सन्दर्भ से उन्हें अपना परिचय दिया। वे मेरे काम से परिचित थे। समय देखकर मैंने उनसे निवेदन किया कि वे अपनी कुछ धरोहर हमें संग्रहालय के लिए दें।
"मैं तो न दूंगा। मेरे मरने के बाद मेरे परिवार से ले लेना, हो सकता है उनके लिए वो फालतू हो तो दे देंगे "-बड़े रूखेपन से उन्होंने कहा।
"नहीं सर, आपकी धरोहर बहुत मूल्यवान है"- मैंने याचना की। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा और वे किसी और से बातचीत में मशगूल हो गए। मैं दुखी हो गया।
कुछ ही दिनों बाद हिंदी भवन की पावस व्याख्यानमाला में वे आये। दोपहर भोजन के बाद गिरिराज किशोर जी सहित कुछ साहित्यकार यूँ ही गपशप करते बैठे, जिनमें कोहली जी भी थे। मैंने सभी से संग्रहालय देखने के लिए आग्रह किया। वे मान गए। सभी सात आठ लोग संग्रहालय आये, देखा, जलपान हुआ और वापस हिंदी भवन। मैंने कोहली जी से संग्रहालय के बारे में अलग से कोई चर्चा नहीं की। बात आई गई हो गई।
कोई तीन सप्ताह बाद एक दिन कोहली जी ने मुझे फोन किया-"प्यारे कहां हो?" "जी, आकाशवाणी में" "रविन्द्र भवन में कितनी देर में आ सकते हो?" "जी, दस मिनट में"- मैंने कहा "आ जाओ" मैं तत्काल रवीन्द्र भवन पहुंच गया। वे बाहर ही मिल गए, फोटोग्राफर योगेन्द्र शर्मा जी को भी उन्होंने रोक रखा था। मुझे देखते ही शर्माजी से बोले -"हमारा फोटो खींचो भाई"- और उन्होंने अपने कंधे पर टंगे बेग से एक लिफाफा निकालकर मेरी और बढ़ाया-"इसमें कुछ महत्वपूर्ण लोगों के पत्र हैं संग्रहालय के लिए, पहली किस्त में । बाद में कुछ और दूंगा, अपना लिखा भी"-और फोटो खींचस्पने के बाद मैंने उनके चरण स्पर्श कर लिए।
2019 में दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय ने उन्हें राष्ट्रीय दुष्यंत अलंकरण के लिए चुना। वे न केवल सहर्ष तैयार ही हुए बल्कि 29 दिसंबर की सुबह से 31 दिसंबर की शाम तक वे हमारे मेहमान रहे। तब उनसे साहित्य से लेकर इतर विषयों पर भी खूब बातें हुईं। तब रायपुर से गिरीश पंकज जी और दिल्ली से राकेश पाण्डेय जी भी साथ थे। बहुत यादगार समय था। डॉ नरेंद्र कोहली का निधन साहित्य जगत के साथ ही दुष्यंत कुमार संग्रहालय की भी क्षति है। संग्रहालय परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।