प्रदेश को 400 टन ऑक्सीजन की जरूरत; मिल रही सिर्फ 275 टन, 30 अप्रैल तक 500 टन की जरूरत होगी

Posted By: Himmat Jaithwar
4/15/2021

मध्यप्रदेश में कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़े डरावने होते जा रहे हैं। अप्रैल माह में अब तक 367 लोगों की मौत कोरोना से हो चुकी है। अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के चलते मरीज दम तोड़ रहे हैं। सरकार दावा कर रही है कि प्रदेश में मौजूदा मरीजों के हिसाब से ऑक्सीजन की कमी नहीं है। लेकिन जमीनी हककीत यह है कि कई अस्पतालों ने गंभीर मरीजों को भर्ती करने से इनकार करना शुरू कर दिया है।

प्रदेश को हर रोज 400 टन ऑक्सीजन की जरूरत है। यदि ज्यादा गंभीर मरीजों को ही ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जाए तो भी 300 टन ऑक्सीजन चाहिए। बुधवार को 275 टन की आपूर्ति हो पाई, जबकि 12-13 अप्रैल तक 244 टन ही मिल पा रही थी। लेकिन जिस तरह से कोरोना वायरस ने उग्र रूप धारण कर लिया है, ऐसे में 30 अप्रैल तक प्रदेश को 500 टन ऑक्सीजन की जरूरत होगी। इस मांग को पूरा करना सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी।

इंदौर में ऑक्सीजन का इंतजाम करने में शासन-प्रशासन फेल दिखाई दे रहा है। ऐसे में इंदौर के एसोसिएशन आफ इंडस्ट्रीज मप्र ने राजस्थान के निम्बाहेड़ा और चित्तौड़गढ़ के दो प्लांटों से इंदौर के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति का करार करना पड़ा। इन प्लांटों से गुरुवार को 600 सिलेंडर की पहली खेप मिलने की उम्मीद है।

मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि 13 अप्रैल शाम को एमटीएच (महाराजा तुकोजीराव होलकर) अस्पताल में आक्सीजन खत्म होने के कारण मरीजाें को इंडेक्स अस्पताल भेजने की नौबत आ गई थी। भोपाल के कई निजी अस्पतालों ने भी ऑक्सीजन की कमी के चलते गंभीर मरीजों को भर्ती करने से इंकार करना शुरू कर दिया है।

सिंतबर 2020 में 19 जिलों में प्लांट लगाने किया गया था टेंडर
कोरोना की पहली लहर के दौरान सरकार ने प्रदेश के 19 जिलों में मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए टेंडर जारी किए थे, लेकिन लहर कमजोर होते ही सरकारी तंत्र ने इस तरफ ध्यान देना बंद ही कर दिया था। जबकि कोरोना से लड़ने मध्य प्रदेश आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बढ़ाया गया कदम था।

तब हालात सुधरे तो ध्यान नहीं दिया
सरकार ने बाबई (होशंगाबाद) में लग रहे प्लांट के लिए 40% निवेश सहायता (7 साल के लिए) देने का ऐलान करने के बाद कई कंपनियों ने रुचि दिखाई थी। उस समय कॉरपोरेशन के एक अधिकारी ने कहा था कि कंपनी का चयन हो गया तो अगले साल जनवरी-फरवरी तक ऑक्सीजन का उत्पादन शुरू हो जाएगा। इससे सामान्य हालातों में इन जिला अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत पूरी हो जाएगी। जमीनी हकीकत यह है कि अभी तक इस प्लांट का निर्माण ही पूरा नहीं हो पाया।

केंद्र के भरोसे शिवराज सरकार
ऑक्सीजन के लिए शिवराज सरकार अब केंद्र सरकार के भरोसे है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री ने गुरुवार को रेल मंत्री पीयूष गाेयल से बात की थी। दरअसल, केंद्र सरकार ने तय किया है कि ओडिशा के स्टील प्लाटों और रिफाइनरियों को कोटे से 20 से 25 प्रतिशत ऑक्सीजन अस्पतालों को भेजा जाएगा। इसके लिए उद्वव सरकार ने महाराष्ट्र को पहले सप्लाई देने की डिमांड कर दी है। इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मप्र के हालातों का हवाला देकर केंद्र से जल्दी से जल्दी ऑक्सीजन का प्रबंध ने को लेकर केंद्रीय मंत्रियों से बात की है।

हालातों का आकलन करने में फेल हो गए अफसर
मार्च के चौथे सप्ताह से कोरोना का आक्रमण शुरू हो गया था, लेकिन अफसरों ने इसको गंभीरता से नहीं लिया। अप्रैल महीना शुरु होते ही पॉजिटिव मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि होना शुरू हो गई थी। 6 अप्रैल को संक्रमितों की संख्या 4 हजार से ज्यादा हो चुकी थी। जबकि अफसरों को यह जानकारी थी कि कोरोना की पहली लहर में यह आंकड़ा 2600 से ज्यादा नहीं पहुंचा था। बावजूद इसके स्वास्थ्य विभाग हालातों का आकलन करने में लापरवाह रहा।

सीएम को बताया था- 130 टन ऑक्सीजन की जरूरत
मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने काेरोना की समीक्षा बैठक मार्च के दूसरे सप्ताह से लगातार करना शुरू कर दिया था, लेकिन अफसरों ने हालात नियंत्रण में होने की बात कही। 7 अप्रैल को मप्र पब्लिक हेल्थ सप्लाई कार्पोरेशन के प्रबंध संचालक विजय कुमार बताते ने कहा था कि मध्य प्रदेश में रोज 130 टन ऑक्सीजन की जरूरत है, जबकि हमारे पास 224 टन उपलब्‍ध है।

हाहाकार मचा तो भिलाई स्टील प्लांट से किया करार
10 अप्रैल के बाद जब अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी को लेकर हाहाकर मचा, तब अफसरों की नींद टूटी और आनन-फानन में भिलाई स्टील प्लांट से 60 टन ऑक्सीजन का करार किया गया। इस बीच महाराष्ट्र सरकार ने ऑक्सीजन की सप्लाई करने से रोकने का पत्र मप्र सरकार को भेज दिया था। अब मप्र ऑक्सीजन के मामले में केंद्र के भरोसे है।



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