सोमवार, 6 अप्रैल को महावीर जयंती है। महावीर स्वामी के जीवन के कई ऐसे प्रसंग चर्चित हैं, जिनमें जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र बताए गए हैं। जानिए एक ऐसा प्रसंग, जिसमें बताया गया है कि बिना पूरी बात जाने किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए।
चर्चित प्रसंग के अनुसार महावीर स्वामी किसी वन में एक दिन पेड़ के नीचे ध्यान कर रहे थे। तभी वहां एक ग्वाला अपनी गायों के साथ पहुंचा। उसने स्वामीजी को वहां बैठा देखा तो उसने कहा कि मुनिश्री मैं गांव में दूध बेचकर आता हूं, मेरे लौटने तक मेरी गायों का ध्यान रखना। मुनिश्री ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन ग्वाला अपनी गायें वहीं छोड़कर गांव में चला गया।
गांव में दूध बांटने के बाद ग्वाला वापस मुनिश्री के पास पहुंचा। उसने देखा कि स्वामीजी ध्यान में बैठे हैं और उनके आसपास गायें नहीं हैं। उसने महावीर स्वामी से पूछा कि मेरी गायें कहां हैं? स्वामीजी ध्यान में ही थे, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। वह ग्वाला पास के जंगल में गायों को ढूंढने निकल पड़ा। बहुत कोशिश के बाद भी उसे गायें दिखाई नहीं दीं।
जंगल से लौटकर महावीर स्वामी के पास पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी गायें स्वामीजी पास ही खड़ी हुई हैं। ग्वाले थक चुका था, वह गुस्से में था।
ग्वाला सोचने लगा कि इस मुनि ने मुझे परेशान करने के लिए मेरी गायों को छिपा दिया था और अब सभी गायों को यहां लेकर आ गया है। ये बात सोचकर ग्वाले ने अपनी कमर में बंधी रस्सी खोली और महावीर स्वामी को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तभी वहां एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए और उन्होंने ग्वाले से कहा कि मूर्ख रुक जा, ये पाप न कर। तुने स्वामीजी का उत्तर बिना सुने ही अपनी गायें यहां छोड़ दी थीं। वे तो तब भी ध्यान में थे और अभी भी ध्यान में ही हैं। अब तुझे तेरी गायें मिल गई हैं, फिर किस बात का गुस्सा करता है। मूर्खता न कर। ये बातें सुनकर ग्वाले को अपनी गलती का अहसास हो गया, उसने महावीर स्वामी के चरणों में गिरकर क्षमा याचना की।
जीवन प्रबंधन
इस कथा की सीख यह है कि कभी भी पूरी बात जाने बिना किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए, वरना बाद में पछताना पड़ता है।