चुपचाप कमल छाप, बंगाल चुनाव में यह नारा भले ही कुछ समय पहले मीडिया में सुर्खियां बनी हों लेकिन इसकी बुनियाद बंगाल में कुछ साल पहले ही पड़ गई थी। चुपचाप कमल छाप का असर पिछले लोकसभा चुनाव में देखने को मिला था। जब नतीजे आए तो वहां की सत्ता पर आसीन टीएमसी तो हैरान हुई ही साथ ही साथ दूसरे विपक्षी दलों को भी हैरानी हुई। विधानसभा चुनाव शुरू है और इसके बीच एक बार फिर चुपचाप कमल छाप की गूंज भी सुनाई दे रही है।
चुपचाप कमल छाप की सुनाई दे रही गूंज
पश्चिम बंगाल चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बीच सीधा मुकाबला है। पिछले लोकसभा चुनाव के पहले तक बंगाल में बीजेपी को विकल्प के तौर पर नहीं देखा जा रहा था। लोकसभा चुनाव के नतीजों से चुनावी जानकारों को भी हैरानी हुई। बंगाल में कमल खिलाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)की ओर से प्रयास लंबे समय से जारी है। पिछले कुछ वर्षों में संघ के कुछ नेताओं ने पर्दे के पीछे रहकर चुपचाप दिन - रात मेहनत की है उसी का नतीजा है कि बीजेपी आज इस स्थिति में बंगाल में खड़ी है। ये वो नाम हैं- जिन्होंने चुपचाप बिना लाइमलाइट में आए बीजेपी की बुनियाद को मजबूत कर दिया।
सुब्रत चट्टोपाध्याय
पश्चिम बंगाल में बीजेपी की जो जड़ें मजबूत हुई हैं उसके पीछे एक नाम सुब्रत चट्टोपाध्याय का भी है। बिना लाइमलाइट में रहे सुब्रत चट्टोपाध्याय ने पार्टी के विस्तार का पूरा ब्लू प्रिंट तैयार किया। उन्हें संगठन का अच्छा खासा अनुभव था। बंगाल में बीजेपी का घायल कार्यकर्ता हो या किसी झूठे मुकदमें में फंसा पार्टी कार्यकर्ता सब सुब्रत चट्टोपाध्याय की तरफ देखते थे।
1984 में संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर सुब्रत चट्टोपाध्याय घर छोड़कर मातृभूमि की सेवा में जुट गए। बर्दवान जिले के सुब्रत चट्टोपाध्याय बचपन में मेधावी छात्र थे। गांव के लोगों ने कई सालों से उन्हें नहीं देखा। पिछले लोकसभा चुनाव में टीवी पर पीएम मोदी के साथ मंच पर देखकर गांववालों को आश्चर्य हुआ। घाटल क्षेत्र से प्रचारक के तौर पर जुड़े , नादिया और बाद में कोलकाता में संघ प्रचारक रहे। संघ मुख्यालय की ओर से उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गईं। 1996 से 2005 के बीच उनके देखरेख में संघ के कई कार्यक्रम कोलकाता और उसके आसपास के इलाकों में आयोजित हुए।
2014 लोकसभा चुनाव से पहले सुब्रत चट्टोपाध्याय संघ से बंगाल बीजेपी में आए। कहा जाता है कि दिलीप घोष को बंगाल बीजेपी की कमान दी जाए इसके लिए भी दिल्ली आलाकमान को उन्होंने ही मनाया। दिलीप घोष के साथ मिलकर पार्टी को सर्किल लेवल तक विस्तार की योजना बनाई। 450 सर्किल से बढ़ाकर 1238 सर्किल तक पार्टी की गतिविधियों को बढ़ाया। कई बंगाली चेहरों को पार्टी में प्रमुख जिम्मेदारी दी गई। हिंदी बेल्ट की पार्टी होने की बंगाल में जो छाप थी उसको काफी हद तक दूर किया। यही वजह रही कि उनके कहने पर पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष कई बार बंगाल दौरे पर आए। आरएसएस प्रचारक के तौर पर अपने सारे अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए राज्य में बीजेपी के विस्तार में अहम योगदान दिया। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी के सांसदों की संख्या 18 हो गई। कई सांसद मंत्री भी बने लेकिन वो तब भी पर्दे के पीछे ही रहे।
अमिताभ चक्रवर्ती
भारतीय जनता पार्टी ने अमिताभ चक्रवर्ती को बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश महामंत्री संगठन की जिम्मेदारी सौंपी। चक्रवर्ती संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एबीवीपी से निकले हुए नेता हैं। एबीवीपी में लंबा वक्त गुजारने के बाद वो संघ प्रचारक बने। बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह 2016 में उन्हें बीजेपी में ले आए और उन्हें पार्टी की ओर से ओडिशा का संयुक्त प्रदेश महासचिव बनाया गया। उसके बाद पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की ओर से भी उन्हें यही जिम्मेदारी बंगाल में दी गई। चुनाव से पहले प्रदेश महामंत्री संगठन की जिम्मेदारी सौंपी गई।
1972 में पैदा हुए अमिताभ चक्रवर्ती ने बालुरघाट कॉलेज दक्षिण दिनाजपुर जिले से पढ़ाई की। उनका पैतृक घर हरीरामपुर में है जो दक्षिण दिनाजपुर जिले में ही आता है। अमिताभ चक्रवर्ती एक शक्तिशाली छात्र नेता के रूप में तब उभरे जब बंगाल में वामदल का शासन था। उन्हें पहले एबीवीपी का राज्य सचिव बनाया गया। अमिताभ चक्रवर्ती कुछ समय बाद कोलकाता शिफ्ट हो गए। उन्होंने घर छोड़ दिया और आरएसए के प्रचारक बन गए। चुपचाप अपना काम करने में उनको माहिर माना जाता है। प्रदेश में पार्टी की जड़ें जिस प्रकार से मजबूत करने में लगे हैं उससे पार्टी खुश है। पार्टी को उनके काम करने के तौर- तरीकों के बारे में पूरा पता है। ट्रबल शूटर के तौर पर उनको पार्टी के अंदर देखा जाता है।
पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार की योजनाओं के बारे में लोगों तक पहुंचाने का काम किया है। सोनार बांग्ला को लेकर अमिताभ चक्रवर्ती की योजनाएं हैं। बंगाल के युवा मतदाताओं पर अमिताभ चक्रवर्ती अच्छी पकड़ है। यह विधानसभा चुनाव भी उनके लिए कई मायनों में खास है।
शिव प्रकाश
बंगाल में बीजेपी को जो आज मजबूती मिली है उसके पीछे शिव प्रकाश की भी मेहनत है। बीजेपी की जमीन बंगाल में तैयार करने में उनका अहम योगदान है। आरएसएस में दशकों तक प्रचारक रहे शिव प्रकाश अब बीजेपी में राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री के तौर पर कामकाज संभाल रहे हैं। जिस बंगाल में बीजेपी का कभी वजूद नहीं था आज उसे दावेदार बताया जा रहा है उसमें इनका अहम रोल है।
बीजेपी में राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री के तौर पर कामकाज संभाल रहे शिव प्रकाश बीते कई सालों से बंगाल में चुपचाप काम कर रहे हैं। संघ से भारतीय जनता पार्टी में वो 2014 में आए उसके बाद पहला जिम्मा ओडिशा का मिला। उसके बाद राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से उन्हें बंगाल भेजा गया। कुछ महीने के भीतर ही उन्हें पश्चिम बंगाल का संगठन प्रभारी बना दिया गया।
यूपी के रहने वाले शिव प्रकाश काफी मेहनती हैं। बंगाल में पार्टी को मजबूत करने के लिए उन्होंने बांग्ला सीख ली।1986 में वो संघ प्रचारक बने थे। पश्चिमी यूपी में प्रांत प्रचारक के तौर पर भी काम किया। इनके बारे में कहा जाता है कि बंगाल की हर सीट का आंकड़ा उनके पास है। 2015 के बाद से बंगाल में उन्होंने बूथ लेवल पर बहुत काम किया है। बीजेपी के कार्यकर्ता गांव-गांव में खड़े किए। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली जीत में इनका भी अहम योगदान था। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद अधिकांश समय इनका बंगाल में ही गुजरा है।
अरविंद मेनन
बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव और बंगाल के सह प्रभारी अरविंद मेनन ने बंगाल में बीजेपी की मजबूती में अहम योगदान दिया है। 2018 के मध्य तक पार्टी की पकड़ चाहकर भी उस कदर मजबूत नहीं हो पाई थी। बंगाल की पब्लिक बीजेपी नेताओं के साथ सीधे कनेक्ट नहीं कर पाती थी। ग्रामीण और दूर- दराज के इलाकों में रहने वाले मतदाताओं तक केंद्र की योजनाओं की कोई जानकारी नहीं पहुंच पाती थी और उनके बीच इसे ले जाने वालों की कमी थी। संघ में प्रचारक रहे अरविंद मेनन को बीजेपी की ओर से उत्तरी बंगाल में फोकस करने को कहा गया।
तत्कालीन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अरविंद मेनन को बंगाल भेजने का फैसला किया था। मेनन मलयाली, बंगाली, हिंदी, भोजपुरी और अंग्रेजी में आसानी से बात कर लेते हैं। संघ में कार्य करते हुए उन्हें संगठन का अच्छा अनुभव था वो सीधे बंगाल की जनता के बीच जाने लगे और मैदान में उतर गए। वो तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को सीधे रिपोर्ट करते थे।
मेनन ने अधिक से अधिक गांवों का दौरा किया वहां के निवासियों के साथ समय बिताया। उनके साथ चाय पीकर दोपहर का भोजन कर चुपचाप अपने काम में लगे रहे और चुपचाप कमलछाप को आधार भी देते रहे। एक बार बंगाल की जनता ने देखा कि भाजपा नेता मैदान में आ रहे हैं उनके साथ बातचीत कर रहे हैं तो उन्होंने भी पार्टी पर भरोसा करना शुरू कर दिया। मेनन और उनकी टीम ने मोदी सरकार की कई योजनाओं के बारे में मतदाताओं को अवगत कराया जो बात दूर- दराज के इलाकों तक नहीं पहुंच पाती थी उसे पहुंचाने का काम किया। जिस उत्तर बंगाल की जिम्मेदारी उन्हें लोकसभा चुनाव से पहले दी गई थी उसमें से अधिकांश सीटें बीजेपी जीत गई।
पश्चिम बंगाल से पहले मेनन ने पूर्वी बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात (2017) और उत्तर प्रदेश में काम किया है और पर्दे के पीछे रहकर अपने काम को बखूबी अंजाम दिया है।