हुगली लोकसभा सीट BJP ने जीती थी, पर अब दलबदलू कैंडिडेट्स से लोग नाराज, फिलहाल तृणमूल का पलड़ा भारी

Posted By: Himmat Jaithwar
4/8/2021

हुगली नदी के किनारे बसे हुगली जिले की 10 विधानसभा सीटों पर 10 अप्रैल को वोटिंग है। हुगली पश्चिम बंगाल का इंडस्ट्रियल बेल्ट है। जहां सदियों से जूट मिलें हैं। अंग्रेजों ने भी हुगली के किनारे इंडस्ट्रीज स्थापित कर व्यापार किया। यह क्षेत्र हुगली नदी के चलते तो जाना ही जाता है, साथ ही सिंगुर के कारण भी देशभर में फेमस है। इस जिले में आने वाले सिंगुर में हुए आंदोलन ने ही 34 साल के वाम राज को खत्म कर ममता बनर्जी को बंगाल की सत्ता पर बैठाया था।

बीजेपी ने 2019 में यहां बड़ा उलटफेर करते हुए हुगली लोकसभा सीट जीत ली थी, लेकिन अब जिन 10 सीटों पर चुनाव हैं, उनमें ममता ही मजबूत नजर आ रही हैं। कई सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी ने ऐसे कैंडिडेट उतारे हैं, जो कुछ महीने पहले टीएमसी में थे।

हुगली के सीनियर जर्नलिस्ट दीप्तिमान मुखर्जी कहते हैं, 'उत्तरपाड़ा, श्रीरामपुर, चापदानी, सिंगुर, चंदननगर, चुंचुड़ा, बालागढ़, सप्तग्राम, चंडीतला और पांडुआ इन दस सीटों में एक भी सीट ऐसी नहीं है, जिसे बीजेपी जीतती दिख रही हो। चुंचुड़ा में टफ फाइट जरूर है। इन दस में से एक सीट वामपंथ और बाकी नौ सीटें टीएमसी जीत सकती है।'

दल-बदलुओं को लेकर स्थानीय लोगों में गुस्सा दिख रहा है। चंडीतला सीट से टीएमसी ने मौजूदा विधायक स्वाति खोंदकर को ही उम्मीदवार बनाया है। वे टीएमसी से सांसद रहे अकबर अली खोंदकर की पत्नी हैं। अकबर अली तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन चंडीतला में इतने फेमस हैं कि लोग जेब में उनके फोटो रखकर घूमते हैं। यहां टीएमसी ने जो बैनर-पोस्टर लगाए हैं, उनमें अकबर अली का बड़ा फोटो लगाया है। स्थानीय सुमंत घोष कहते हैं, अकबर अली को यहां के लोग इतना प्यार करते हैं कि उनकी पत्नी को कोई हरा नहीं सकता।

लोकसभा में भी यहां टीएमसी ने करीब 17 हजार वोटों की लीड ली थी। बीजेपी ने इस सीट को अपने कब्जे में करने के लिए फेमस टॉलीवुड स्टार यशदास गुप्ता को कैंडिडेट बनाया है। लोग उन्हें देखने तो जा रहे हैं, लेकिन उनका मानना है कि चुनाव जीतने के बाद वे नहीं आएंगे क्योंकि वे एक्टर हैं। लेकिन स्वाति खोंदकर उनके साथ हमेशा खड़ी हैं। इसलिए टीएमसी को सपोर्ट करते दिख रहे हैं।

हुगली इलाके की विधानसभा सीटों पर इस तरह ई-रिक्शा पर लाउडस्पीकर लगाकर चुनाव प्रचार किया जा रहा है।
हुगली इलाके की विधानसभा सीटों पर इस तरह ई-रिक्शा पर लाउडस्पीकर लगाकर चुनाव प्रचार किया जा रहा है।

टीएमसी से आए नेताओं से बीजेपी कार्यकर्ताओं में पड़ी फूट

उत्तरपाड़ा, चापदानी और सप्तग्राम सीट पर बीजेपी अपने कैंडिडेट चयन के चलते ही पीछे जाती दिख रही है। इन सीटों पर बीजेपी ने उन नेताओं को उम्मीदवार बनाया है, जो टीएमसी से विधायक थे और चुनाव के चंद दिनों पहले बीजेपी में शामिल हो गए। ऐसे में कई सालों से बीजेपी के लिए काम कर रहे स्थानीय कार्यकर्ताओं में फूट पड़ गई है। कुछ तो कैंडिडेट्स अनाउंस होने के बाद इस्तीफा भी दे चुके हैं। उत्तरपाड़ा बीजेपी ने प्रबीर कुमार घोषाल को कैंडिडेट बनाया है।

2016 में घोषाल टीएमसी के टिकट पर चुनाव जीते थे। टीएमसी ने घोष के खिलाफ मशहूर कलाकार कंचन मलिक को कैंडिडेट बनाया है। वे बंगाल में एक जाना-पहचाना चेहरा हैं और उन्होंने लंबे समय तक फिल्मों में काम किया है। उनका जनता एक्सप्रेस शो यहां काफी लोकप्रिय है। घोष के मुकाबले मलिक मजबूत नजर आ रहे हैं क्योंकि घोष के कामकाज को लेकर दस साल की एंटी इंकम्बेंसी भी दिख रही है।

सप्तग्राम में बीजेपी ने देवव्रत विश्वास को उम्मीदवार बनाया है, उन पर आपराधिक मामले भी दर्ज हैं। जिन्हें लेकर आम लोगों में गुस्सा है। बालागढ़ में टीएमसी ने मनोरंजन व्यापारी को उम्मीदवार बनाया है। व्यापारी नक्सली आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं और उन्होंने क्षेत्र में विकास के लिए कई आंदोलन किए हैं। सालों तक रिक्शा चलाया है। बहुत ही लो प्रोफाइल कैंडिडेट हैं, इसलिए स्थानीय लोग उनकी तारीफ करते नजर आ रहे हैं। ममता ने दलितों को अपने साथ जोड़ने के लिए कुछ समय पहले व्यापारी को दलित साहित्य अकादमी का चेयरपर्सन भी नियुक्त किया था।

लोकसभा चुनाव में हुगली में भाजपा का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा था,लेकिन विधानसभा में टीएमसी नेताओं को टिकट देने के कारण कार्यकर्ता नाराज नजर आ रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में हुगली में भाजपा का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा था,लेकिन विधानसभा में टीएमसी नेताओं को टिकट देने के कारण कार्यकर्ता नाराज नजर आ रहे हैं।

वहीं चुंचुड़ा सीट पर टक्कर का मुकाबला दिख रहा है, क्योंकि यहां से बीजेपी ने हुगली से सांसद लॉकेट चटर्जी को मैदान में उतारा है। वहीं टीएमसी ने असित मजूमदार पर ही भरोसा जताया है। स्थानीय राजेंद्र सिंह कहते हैं, टीएमसी के जीतने की संभावना है क्योंकि लॉकेट चटर्जी जीतने के बाद दो साल से आई ही नहीं। अम्फान में नुकसान हुआ, तब वो हाल जानने भी नहीं आईं।

कृष्णा दास कहते हैं- कामधंधा नहीं है। कारखाने बंद हैं। लड़के बेकार हैं। इसलिए लोग नई सरकार चाहते हैं। वहीं पांडुआ सीट पर सालों से वामपंथ का कब्जा है। 2016 में भी यहां से सीपीएम कैंडिडेट अमजद हुसैन एसके ने जीत दर्ज की थी। बीजेपी का यहां संगठन काफी कमजोर है इसलिए लड़ाई सीपीएम और टीएमसी के बीच ही दिख रही है।

लोकसभा चुनावों में जीत के बाद भी अभी जिला स्तर पर भाजपा का संगठन कमजोर नजर आता है। बड़े नेताओं के रोड शो और जनसभा को छोड़ दे तो स्थानीय नेताओं के प्रोग्राम में भीड़ नहीं दिखती।
लोकसभा चुनावों में जीत के बाद भी अभी जिला स्तर पर भाजपा का संगठन कमजोर नजर आता है। बड़े नेताओं के रोड शो और जनसभा को छोड़ दे तो स्थानीय नेताओं के प्रोग्राम में भीड़ नहीं दिखती।

सिंगुर में 88 साल के रविंद्रनाथ बीजेपी उम्मीदवार

सिंगुर में बीजेपी ने 88 साल के रविंद्रनाथ भट्टाचार्य को उम्मीदवार बनाया है। भट्टाचार्य टीएमसी के टिकट पर लगातार चार बार सिंगुर से चुनाव जीते हैं, लेकिन इस बार ज्यादा उम्र के चलते उनका टिकट कटा तो उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया। रविंद्रनाथ वो शख्स हैं, जो सिंगुर आंदोलन के दौरान ममता बनर्जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। किसानों को ममता के पक्ष में करने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। क्षेत्र में उनकी छवि भी बेदाग है, लेकिन अब वो और ममता एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। टीएमसी ने सिंगुर से बेचाराम मन्ना को उम्मीदवार बनाया है। बेचाराम सिंगुर के पास ही लगने वाली हरिपाल सीट से टीएमसी के विधायक हैं, लेकिन उनके और रविंद्रनाथ के बीच हमेशा तल्खी रही। बेचाराम की क्षेत्र में छवि अच्छी नहीं दिख रही, इसलिए इस सीट पर बीजेपी और टीएमसी के बीच टफ फाइट नजर आ रही है।



Log In Your Account