9 बजे, 9 दीपक, 9 कहानियां / जिंदगी में रोशनी की कीमत समझाती 9 मोटिवेशनल कहानियां, लॉकडाउन में बच्चों को जरूर सुनाएं
Posted By: Himmat Jaithwar
4/5/2020
देशभर में कोरोना वायरस के संक्रमण चलते 21 दिन का लॉकडाउन किया गया है। संक्रमण के तेजी से बढ़ते मामलों को लेकर लोगों में दशहत और निराशा का माहौल है। ऐसे में डर और निराशा को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री ने भी रविवार को देश में लोगों को आशा का दीया जलाकर कोरोना वॉरियर्स का हौलसा बढ़ाने के साथ ही लोगों से एकजुट होने की अपील की है। कोरोना के कारण फैले अंधकार और निराशा के बीच जरूर पढ़े रोशनी से जुड़ी ये नौ प्रेरणादायक कहानियां…
1.अंधा और लालटेन
एक गांव में एक अंधा व्यक्ति रहता था। वह रात में जब भी बाहर जाता, एक जली हुई लालटेन हमेशा अपने साथ रखता। एक रात वह अपने दोस्त के घर से भोजन कर वापस अपने घर लौट रहा था। इस बार भी उसके साथ हमेशा की तरह एक जली हुई लालटेन थी। वापस लौटते समय रास्ते में कुछ शरारती लड़कों ने उसके हाथ में लालटेन देखी तो उस पर हंसने लगे और उसका मजाक उड़ाते हुए कहा- अरे! देखो- देखो अंधा लालटेन लेकर जा रहा है। अंधे को लालटेन का क्या काम?
उनकी बात सुनकर अंधा विनम्रता से बोला- ‘सही कहते हो भैया, मैं तो अंधा हूं, देख नहीं सकता। मेरी दुनिया में तो हमेशा अंधेरा ही रहा है। मुझे लालटेन का क्या काम। मेरी आदत तो अंधेरे में जीने की ही है, लेकिन आप जैसे आंखों वाले लोगों को तो अंधेरे में जीने की आदत नहीं होती। आप लोगों को अंधेरे में देखने में समस्या हो सकती है। कहीं आप जैसे लोग मुझे अंधेरे में ना देख पाए और धक्का दे दिया तो मुझ बेचारे का क्या होगा। इसलिए यह लालटेन लेकर चलता हूं ताकि आप अंधेरे में अंधे को देख सकें। अंधे व्यक्ति की बात सुनकर वह लड़के शर्मिंदा हो गए और उस से माफी मांगने लगे उन्होंने तय किया कि अब भविष्य में कभी सोचे-समझे कुछ नहीं कहेंगे।
सीख- कभी किसी को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और कुछ भी कहने से पहले अच्छी तरह सोच विचार करना चाहिए।
2. रोशनी की बचत
एक बार प्रसिद्ध लेखक जॉन मुरे अपने लेखन में व्यस्त थे। तभी दो महिलाएं जन-कल्याण से संस्था के लिए उनसे चंदा माँगने आईं। अपना लेखन कार्य बीच में छोड़ने के बाद जॉन मुरे ने वहाँ जल रही दो मोमबत्तियों में से एक को बुझा दिया। यह देखकर उनमें से एक महिला बुदबुदाई, “यहाँ कुछ मिलने वाला नहीं है।”
जॉन मुरे को जब उन महिलाओं के आने के उद्देश्य का पता चला, तो उन्होंने खुशी-खुशी से 100 डॉलर उन्हें दे दिये।महिलाओं के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, उनमें से एक बोली-“हमें तो आपसे एक सेंट भी पाने की उम्मीद नहीं थी, क्योंकि आपने हमारे आते ही एक मोमबत्ती बुझा दी थी।”जॉन मुरे ने उत्तर दिया, “अपनी इसी बचत की आदत के कारण ही मैं आपको 100 डॉलर देने में समर्थ हुआ हूँ। मेरे विचार से आपसे बातचीत करने के लिए एक मोमबत्ती का प्रकाश ही काफी है।” महिलाएं बचत के महत्व को समझ चुकी थीं।
सीख- महिलाएँ तो बचत के महत्व को समझ गयीं, लेकिन आप कब समझेंगे? जल्दी समझिए वरना देर हो जाएगी और फिर पछताने से कुछ नहीं होता जब चिड़िया खेत चुग जाती है।
3. उम्मीद की रोशनी
एक बार की बात है, एक घर मे जल रहे पांच दीये आपस में बात कर रहे थे। पहले दीये ने कहा – ‘इतना जलकर भी मेरी रोशनी की लोगों को कोई कद्र नहीं है, तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं ‘ और वह दीया निराश हो बुझ गया| वह दीया उत्साह का प्रतीक था। कुछ देर बाद शांति का प्रतीक दूसरा दीया भी शांति की रोशनी देने के बावजूद भी लोगों की फैलाई जा रही अशांति के बारे में सोच कर बुझ गया। अब बारी थी हिम्मत के तीसरे दीये की, उसकी हिम्मत भी यह देख जवाब दें गई और वह भी बुझ गया।
उत्साह, शांति और हिम्मत का हाल देख समृद्धि का प्रतीक चौथा दीया भी बुझ गया। अब केवल पांचवां दीया जो सबसे छोटा था, अकेला जल कर रोशनी फैला रहा था। तभी घर में एक लड़के आता है। जलता दीया देख वह खुशी नाचने लगा और फिर एक दीये से बाकी के चार दीये फिर से जला दिए| पांचवां दीया उम्मीद का दीया था। उत्साह, शांति, हिम्मत और समृद्धि के जाने के बाद भी उम्मीद जिन्दा रखे। कहते है न उम्मीद पर दुनिया कायम है| दुनिया में तमाम दुखों और तकलीफों में भी उम्मीद कायम रखे,उम्मीद न छोड़े।
सीख- अगर उम्मीद का दीया रोशन है तो सब कुछ खत्म होने के बाद भी शुरुआत की जा सकती है।
3. उम्मीद की रोशनी
एक बार की बात है, एक घर मे जल रहे पांच दीये आपस में बात कर रहे थे। पहले दीये ने कहा – ‘इतना जलकर भी मेरी रोशनी की लोगों को कोई कद्र नहीं है, तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं ‘ और वह दीया निराश हो बुझ गया| वह दीया उत्साह का प्रतीक था। कुछ देर बाद शांति का प्रतीक दूसरा दीया भी शांति की रोशनी देने के बावजूद भी लोगों की फैलाई जा रही अशांति के बारे में सोच कर बुझ गया। अब बारी थी हिम्मत के तीसरे दीये की, उसकी हिम्मत भी यह देख जवाब दें गई और वह भी बुझ गया।
उत्साह, शांति और हिम्मत का हाल देख समृद्धि का प्रतीक चौथा दीया भी बुझ गया। अब केवल पांचवां दीया जो सबसे छोटा था, अकेला जल कर रोशनी फैला रहा था। तभी घर में एक लड़के आता है। जलता दीया देख वह खुशी नाचने लगा और फिर एक दीये से बाकी के चार दीये फिर से जला दिए| पांचवां दीया उम्मीद का दीया था। उत्साह, शांति, हिम्मत और समृद्धि के जाने के बाद भी उम्मीद जिन्दा रखे। कहते है न उम्मीद पर दुनिया कायम है| दुनिया में तमाम दुखों और तकलीफों में भी उम्मीद कायम रखे,उम्मीद न छोड़े।
सीख- अगर उम्मीद का दीया रोशन है तो सब कुछ खत्म होने के बाद भी शुरुआत की जा सकती है।
4. ईमानदारी ही महानता है
आचार्य चाणक्य मगध साम्राज्य के स्थापक और सबकुछ थे। उनकी बुद्धि और सूझबूझ से मगध सम्राट चंद्रगुप्त भी संतुष्ट थे। इतने बड़े राज्य का संचालक होने के बाद भी चाणक्य साधारण -सा जीवन जीते हुए घास -फूस की बनी एक झोपड़ी में रहते थे। एक बार फहियान ने मगध देश में आचार्य चाणक्य की प्रशंसा सुनी , तो वह उनसे मिलने राजधानी में आ पहुँचा। उस समय रात हो चुकी थी और चाणक्य अपना काम कर रहे थे। वहां तेल का एक दीपक जल रहा था। चाणक्य ने आगंतुक को जमीन पर बिछे आसान पर बैठने का अनुरोध किया।
फिर वहाँ जल रहे दीपक को बुझा कर अन्दर गए और दूसरे दीपक को जला कर ले आए। इस पर विदेशी व्यक्ति समझ नहीं सका कि जलते दीपक को बुझाकर , बुझे हुए दूसरे दीपक को जलाना ,कैसी बुद्धिमानी हो सकती है ? उसने संकोच करते हुए चाणक्य से पूछा - यह क्या खेल है ? जलते दीपक को बुझाना और बुझे दीपक को जलाना ! जला था तो बुझाया ही क्यों और बुझाया तो जलाया ही क्यों ? रहस्य क्या है ? चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा इतने देर से अपना निजी कार्य कर रहा था, इसलिए मेरा दीपक जल रहा था, अब आप आए है तो मुझे राज्य के कार्य में लगाना होगा, इसलिए यह सरकारी दीपक जलाया है। आगंतुक चाणक्य की इस ईमानदारी और सच्चाई को देख बड़ा प्रभावित हुआ।
सीख - व्यक्ति के जीवन में ईमानदारी का एक गुण पूरी तरह से व्यक्ति को निखार देता है, इसलिए ईमानदारी के गुण को जीवन में अपनाकर अपना व्यक्तित्व निखारे।
5. अपना दीपक बनो
एक बार दो यात्री धर्मशाला में ठहरे हुए थे। इसी बीच एक दीपक बेचने वाला आया। एक यात्री ने दीप खरीद लिया। वहीं, दूसरे ने सोचा कि, मैं भी इसके साथ ही चल पडूंगा, तो मुझे दीप खरीदने की क्या जरूरत है।
दीप लेकर पहला यात्री रात में चल पड़ा, दूसरा भी उसके साथ निकल गया। थोड़ी दूर चलने पर पहला यात्री एक ओर मुड़ गया। लेकिन, दूसरे यात्री को विपरीत दिशा में जाना था। इसलिए वह वहीं रह गया और बिना उजाले के लौट भी नहीं पाया।
सीख- महात्मा बुद्ध ने कहा कि- भिक्षुओं! अपना दीपक खुद बनो। आपके कार्य ही आपका दीपक हैं, वही आपको मार्ग दिखाएंगे।
6. बुढ़िया की सुई
एक बार गाँव में एक बुढ़िया रात के अँधेरे में अपनी झोपड़ी के बहार कुछ ढूंढ़ रही थी। तभी गाँव के ही एक व्यक्ति की नजर उस पर पड़ी तो उसने पूछा , “अम्मा इतनी रात में रोड लाइट के नीचे क्या ढूंढ रही हो ?” इस पर बुढ़िया ने जवाब दिया कि ” कुछ नहीं मेरी सुई गुम हो गयी है बस वही खोज रही हूँ।” फिर क्या था, वो व्यक्ति भी महिला के साथ में सुई खोजने लगा। कुछ देर में और भी लोग इस खोज अभियान में शामिल हो गए और देखते- देखते लगभग पूरा गाँव ही इकट्ठा हो गया।
सभी बड़े ध्यान से सुई खोजने में लगे थे कि तभी किसी ने बुढ़िया से पूछा ,” अरे अम्मा ! ज़रा ये तो बताओ कि सुई गिरी कहाँ थी?” इस पर बूढ़ी महिला ने कहा” बेटा , सुई तो झोपड़ी के अन्दर गिरी थी।” ये सुनते ही सभी क्रोधित हो गए और भीड़ में से किसी ने ऊँची आवाज में कहा , ” कमाल करती हो अम्मा ,हम इतनी देर से सुई यहाँ ढूंढ रहे हैं, जबकि सुई अन्दर झोपड़े में गिरी थी , आखिर सुई अंदर खोजने की बजाए बाहर क्यों खोज रही हो ?” बुढ़िया बोली” क्योंकि रोड पर लाइट जल रही है…इसलिए .”,.
सीख- ऐसा ही आज के युवा अपने भविष्य को लेकर सोचते हैं कि लाइट कहाँ जल रही है वो ये नहीं सोचते कि हमारा दिल क्या कह रहा है ; हमारी सुई कहाँ गिरी है। हमें ये जानने की कोशिश करना चाहिए कि हम किस फील्ड में अच्छा कर सकते हैं और उसी में अपना करियर बनाएं।
7. रोशनी की किरण
रोहित आठवीं कक्षा का छात्र था। वह बहुत आज्ञाकारी था, और हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था। वह शहर के एक साधारण मोहल्ले में रहता था, जहाँ बिजली के खम्भे तो लगे थे पर उन पर लगी लाइट सालों से खराब थी और बार-बार कंप्लेंट करने पर भी कोई उन्हें ठीक नहीं करता था। रोहित अक्सर सड़क पर आने-जाने वाले लोगों को अँधेरे के कारण परेशान होते देखता , उसके दिल में आता कि वो कैसे इस समस्या को दूर करे। इसके लिए वो जब अपने माता-पिता या पड़ोसियों से कहता तो सब इसे सरकार और प्रशासन की लापरवाही कह कर टाल देते। एक दिन रोहित कहीं से एक लम्बा सा बांस और बिजली का तार लेकर अपने कुछ दोस्तों की मदद से उसे अपने घर के सामने लगाकर उस पर एक बल्ब लगाने लगा।
आस-पड़ोस के लोगों ने देखा तो पूछा, ” अरे तुम ये क्या कर रहे हो ?” “मैं अपने घर के सामने एक बल्ब जलाने का प्रयास कर रहा हूँ ?” , रोहित बोला। इस पर पड़ोसियों ने कहा “अरे इससे क्या होगा , अगर तुम एक बल्ब लगा भी लोगे तो पूरे मोहल्ले में प्रकाश थोड़े ही फैल जाएगा, आने जाने वालों को तब भी परेशानी उठानी ही पड़ेगी !” रोहित बोला , कि इससे कम से कम मेरे घर के सामने से जाने वाले लोगों को परेशानी नहीं होगी” और ऐसा कहते हुए उसने एक बल्ब वहां टांग दिया। एक-दो दिन बाद कुछ और घरों के सामने भी लोगों ने बल्ब टांग दिए। धीरे- धीरे पूरा मोहल्ला प्रकाश से जगमग हो उठा। एक छोटे से लड़के के एक कदम ने इतना बड़ा बदलाव ला दिया था कि धीरे-धीरे पूरा शहर ही जगमगा गया।
सीख- कई बार हम सिर्फ इसलिए किसी अच्छे काम को करने में संकोच कर जाते हैं क्योंकि हमें उससे होने वाला बदलाव बहुत छोटा लगता है। पर हकीकत में हमारा एक छोटा सा कदम एक बड़ी क्रांति का रूप लेने की ताकत रखता है। जैसा की गांधी जी ने कहा है , हमें खुद वो बदलाव बनना चाहिए जो हम दुनिया में देखना चाहते हैं, तभी हम अँधेरे में रोशनी की किरण फैला सकते हैं।
8.बल्ब का आविष्कार
दुनिया के सबसे महान वैज्ञानिकों में से एक थॉमस अल्वा एडिसन बहुत ही मेहनती इंसान थे। बचपन में उन्हें यह कहकर स्कूल से निकाल दिया गया था कि वह मंद बुद्धि बालक है। लेकिन उन्होंने कई महत्वपूर्ण आविष्कार किए, जिसमें से बिजली का बल्ब प्रमुख है। उन्होंने बल्ब का आविष्कार करने के लिए हजारों बार प्रयोग किए थे। तब जाकर उन्हें सफलता मिली थी। एक बार जब वह बल्ब बनाने के लिए कोई प्रयोग कर रहे थे। तभी एक व्यक्ति ने उनसे पूछा आपने करीब एक हजार प्रयोग किए, लेकिन आपके सारे प्रयोग असफल रहे। साथ ही, आपकी मेहनत बेकार हो गई। क्या आपको दुःख नहीं होता है।
एडिसन ने कहा मैं सोचता हूं कि मेरे एक हजार प्रयोग असफल हुए है। मेरी मेहनत बेकार नहीं गई, क्योंकि मैंने एक हजार प्रयोग करके यह पता लगाया है कि इन एक हजार तरीकों से बल्ब नहीं बनाया जा सकता। मेरा हर प्रयोग, बल्ब बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है और मैं अपनी हर कोशिश के साथ एक कदम आगे बढ़ता हूं। आखिरकार एडिसन की मेहनत रंग लाई और उन्होंने बल्ब का आविष्कार करके पूरी दुनिया को रोशन कर दिया। यह थॉमस एडिसन का विश्वास ही था जिसने आशा की किरण को बुझने नहीं दिया और पूरी दुनिया को बल्ब देकर रोशन कर दिया।
सीख- इस छोटे से किस्से से हमें यही सीख मिलती है कि किसी भी लक्ष्य की ओर बढ़ाया गया पहला कदम ही इंसान को सफलता तक ले जाता है। असफलता से न डरने वाले को ही सफलता मिलती है।
9. लालटेन की रोशनी
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से कहा कि मैं अपने कठिनतम लक्ष्यों को कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ? गुरुजी थोड़ा मुस्कुराए और कहा कि वह उसे आज रात उसके सवाल का जवाब देंगे। शिष्य हर रोज शाम को नदी से पानी लाता था, ताकि रात को उसका इस्तेमाल हो सके। लेकिन, गुरुजी ने उसे उस दिन शाम को पानी लाने से मना कर दिया। रात होने पर शिष्य ने गुरुदेव को अपना सवाल याद दिलाया तो गुरुजी ने उसे एक लालटेन दी और नदी से पानी लाने को कहा। उस दिन अमावस्या थी और शिष्य भी कभी इतनी अंधेरी रात में बाहर नहीं गया था। अतः उसने कहा कि नदी तो यहां से बहुत दूर है और इस लालटेन के प्रकाश में इतना लम्बा सफर इस अंधेरे में कैसे तय करूँगा ? आप सुबह तक प्रतीक्षा कीजिए, मैं गागर सुबह भर लाऊंगा, गुरु जी ने कहा कि हमें पानी की जरूरत अभी है तो जाओ और गागर को भरकर लाओ।
गुरुजी ने कहा कि रोशनी तेरे हाथों में है और तू अंधेरे से डर रहा है। बस फिर क्या था शिष्य लालटेन लेकर आगे बढ़ता रहा और नदी तक पहुँच गया और गागर भरकर लौट आया। शिष्य ने कहा कि मैं गागर भरकर ले आया हूँ, अब आप मेरे सवाल का जवाब दीजिए। तब गुरुजी ने कहा कि मैंने तो सवाल का जवाब दे दिया है, लेकिन शायद तुम्हें समझ में नहीं आया।
सीख- गुरुजी ने उसे समझाया कि यह दुनिया एक अंधेरी नगरी है, जिसमें हर एक क्षण एक लालटेन की रोशनी की तरह मिला हुआ है। अगर हम उस हर एक क्षण का इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ेंगे तो आनंदपूर्वक अपनी मंजिल तक पहुँच जाएंगे। लेकिन अगर भविष्य के अंधकार को देखते रहेंगे तो कोशिश करने से पहले ही हम विफल हो जायेंगे।
9. लालटेन की रोशनी
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से कहा कि मैं अपने कठिनतम लक्ष्यों को कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ? गुरुजी थोड़ा मुस्कुराए और कहा कि वह उसे आज रात उसके सवाल का जवाब देंगे। शिष्य हर रोज शाम को नदी से पानी लाता था, ताकि रात को उसका इस्तेमाल हो सके। लेकिन, गुरुजी ने उसे उस दिन शाम को पानी लाने से मना कर दिया। रात होने पर शिष्य ने गुरुदेव को अपना सवाल याद दिलाया तो गुरुजी ने उसे एक लालटेन दी और नदी से पानी लाने को कहा। उस दिन अमावस्या थी और शिष्य भी कभी इतनी अंधेरी रात में बाहर नहीं गया था। अतः उसने कहा कि नदी तो यहां से बहुत दूर है और इस लालटेन के प्रकाश में इतना लम्बा सफर इस अंधेरे में कैसे तय करूँगा ? आप सुबह तक प्रतीक्षा कीजिए, मैं गागर सुबह भर लाऊंगा, गुरु जी ने कहा कि हमें पानी की जरूरत अभी है तो जाओ और गागर को भरकर लाओ।
गुरुजी ने कहा कि रोशनी तेरे हाथों में है और तू अंधेरे से डर रहा है। बस फिर क्या था शिष्य लालटेन लेकर आगे बढ़ता रहा और नदी तक पहुँच गया और गागर भरकर लौट आया। शिष्य ने कहा कि मैं गागर भरकर ले आया हूँ, अब आप मेरे सवाल का जवाब दीजिए। तब गुरुजी ने कहा कि मैंने तो सवाल का जवाब दे दिया है, लेकिन शायद तुम्हें समझ में नहीं आया।
सीख- गुरुजी ने उसे समझाया कि यह दुनिया एक अंधेरी नगरी है, जिसमें हर एक क्षण एक लालटेन की रोशनी की तरह मिला हुआ है। अगर हम उस हर एक क्षण का इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ेंगे तो आनंदपूर्वक अपनी मंजिल तक पहुँच जाएंगे। लेकिन अगर भविष्य के अंधकार को देखते रहेंगे तो कोशिश करने से पहले ही हम विफल हो जायेंगे।