इंदौर। कृषि मंडी इंदौर में 19 साल पुराने आठ करोड़ के टैक्स घोटाले में जिला कोर्ट इंदौर से गिरफ्तारी वारंट पर तत्कालीन मंडी सचिव व IAS अफसर ललित दाहिमा बुधवार को जिला कोर्ट इंदौर में पेश हो गए। कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दे दी। रेगुलर जमानत पर 27 मार्च को सुनवाई होगी। मंत्रालय में पदस्थ IAS अफसर दाहिमा की अग्रिम जमानत अर्जी हाई कोर्ट इंदौर ख़ारिज कर चुकी है। हाई कोर्ट ने उन्हें उसी अदालत में जमानत के लिए आवेदन लगाने को कहा था जिसने गिरफ्तारी वारंट जारी किया। संबंधित अदालत उसी दिन आवेदन पर सुनवाई कर निर्णय लेगी। हाई कोर्ट के इसी आदेश के पालन में दाहिमा जिला कोर्ट में पेश हुए और जमानत अर्जी लगाई। EOW की ओर से अतिरिक्त जिला शासकीय अभियोजन अधिकारी ज्योति गुप्ता ने जमानत का विरोध किया। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद स्पेशल सेशन जज विकास शर्मा ने उनकी अर्जी स्वीकार कर अंतरिम जमानत दे दी।
वर्तमान में सामान्य प्रशासन विभाग में उपसचिव दाहिमा का जिला कोर्ट इंदौर ने गत 9 फरवरी को गिरफ्तारी वारंट जारी कर 19 फरवरी को पेश करने के आदेश दिए थे। EOW SP धनंजय शाह के निर्देश पर DSP आरडी मिश्रा के निर्देशन में दाहिमा को गिरफ्तार करने EOW इंदौर की तीन टीम भोपाल पहुंच कर उनके सरकारी ऑफिस पहुंची तो वहां से बताया गया था कि वे अवकाश पर हैं। DSP मिश्रा के मुताबिक टीम उनके निवास पहुंची तो वहां ताला लगा मिला था।
मुख्य चालान ऐतिहासिक था
19 साल पुराने मामले में 2011 में लिपिक कानूनगो सहित 23 व्यापारिक फर्मों के खिलाफ जो चालान पेश हुआ, उसकी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। वह ऐतिहासिक चालान करीब डेढ़ लाख पन्नों का था। मामले में व्यापारी जगदीश तिवारी, दिलीप अग्रवाल, आशीष गुप्ता, अनिल मित्तल, आनंद गुप्ता, अमित गर्ग, रवि काकाणी, मनीष गोयल, चंद्रशेखर अग्रवाल, आवेश गर्ग, हरीश गलकर, अश्विन गोयल, सौरभ मंगल, आनंदकुमार जैन, कैलाशचंद्र, मुरारीलाल अग्रवाल, संजय गर्ग, बाबूलाल अग्रवाल, श्यामसुंदर अग्रवाल, विजयकुमार अग्रवाल व सचिन मंगल आरोपी बनाए गए। इस मामले में दो व्यापारी संजय पिता मनसुखभाई मेहता व प्रदीप पिता शिवस्वरूप जैन अभी तक फरार है।
ऐसे किया था फर्जीवाड़ा
तत्कालीन मंडी सचिव और इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने बताया कि 23 फर्मों के बनाए गए लाइसेंसों में मंडी के नियमों की अनदेखी की गई और बिना मंडी शुल्क के ही लाइसेंस जारी कर दिए गए। आरोपियों ने एक-दूसरे की पहचान पेश की और संगठित रूप से साजिश रची थी। इसी के चलते लाइसेंस बनते गए। मंडी ने लाइसेंस में दर्ज पतों पर मंडी शुल्क वसूली के लिए नोटिस भेजे तो उसका कोई अस्तित्व ही नहीं था। पते ही फर्जी निकले। इससे करीब आठ करोड़ से ज्यादा का घपला हुआ।