नई दिल्ली। उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने से जो आपदा आई, उस दौरान टनल में फंसे लोगों को बचाने में आठ महीने की प्रेग्नेंट डॉक्टर ज्योति खांबरा ने अहम रोल निभाया। वे ITBP में असिस्टेंट कमांडेंट मेडिकल ऑफिसर हैं। उनके पति आशीष खांबरा भी ITBP में ही असिस्टेंट कमांडेंट इंजीनियर हैं। भास्कर से हुई बातचीत में डॉक्टर ज्योति ने अपनी पूरी आपबीती सुनाई। आगे की कहानी, उन्हीं की जुबानी...
पति के पास फोन आया, बताया गया कि कहीं डैम फट गया है
7 फरवरी को रविवार था। चमोली में हर रोज की तरह मैं घर के बाहर धूप में बैठी चाय पी रही थी। करीब साढ़े नौ बजे मेरे पति आशीष के फोन पर किसी का कॉल आया। उन्होंने बताया कि शायद कोई डैम फट गया है। पानी की काफी तेज आवाज आ रही है।
इसके बाद हमें पता चला कि तपोवन इलाके में ग्लेशियर टूटा है। एकदम से कुछ समझ नहीं आया। TV पर खबरें आना शुरू हो गईं। पति फील्ड पर निकल गए। मैं भी बटालियन में स्थित हॉस्पिटल में पहुंची। हमें बताया गया कि ग्लेशियर टूटने से कई लोगों की जान खतरे में है। इसलिए एक रेस्क्यू टीम तुरंत बनाई गई। मेरे सीनियर डॉक्टर को रेस्क्यू टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचा दिया गया। हॉस्पिटल संभालने की जिम्मेदारी मुझे दी गई।
टनल में फंसे 12 लोगों को शाम को हॉस्पिटल लाया गया
शाम साढ़े छह बजे 12 लोगों को हॉस्पिटल लाया गया। यह सभी वो लोग थे, जो काम करते हुए टनल में फंस गए थे। उन्होंने हमें बताया कि हम लोग घंटों लोहे की रॉड पकड़कर टनल में लटके रहे। यदि रॉड छोड़ देते तो नीचे गिर जाते और मर जाते। लोगों ने यह भी बताया कि टनल में फंसे होने के दौरान एक शख्स ने गाने गाए। शायरी भी सुनाई। इससे हौसला बढ़ा। वहां किसी के भी फोन में नेटवर्क नहीं था। अचानक हमारे एक साथी का फोन वाइब्रेट हुआ। उसमें नेटवर्क आ गया था। उसने तुरंत बाहर सूचना दी। वहां से ITBP को सूचना मिली और फंसे हुए लोगों को निकालने का ऑपरेशन शुरू हो गया।
कई का ऑक्सीजन लेवल कम हो गया था
इन लोगों के हॉस्पिटल आने के बाद सबकी हालत बहुत खराब थी। किसी का ऑक्सीजन लेवल कम हो गया था तो कोई हाइपोथर्मिया का शिकार हो गया था। मैंने सबसे पहले इन्हें प्रारंभिक उपचार दिया। फिर जिस पेशेंट को जो जरूरत थी, उस हिसाब से उसका ट्रीटमेंट शुरू किया। मैं आठ महीने की प्रेग्नेंट हूं। मेरे सीनियर फील्ड पर तैनात थे तो यहां मुझे अकेले ही सब देखना था। ट्रीटमेंट के साथ ही मुझे उन लोगों को मेंटली भी ठीक करना था, ताकि वो अच्छा महसूस करने लगें। उनकी अपने घरों पर बात नहीं हो पाई थी, मैंने तुरंत सबकी बात करवाई।
पूरी रात मैं और मेरी टीम ड्यूटी पर तैनात रहे। अगला दिन भी ऐसा ही निकला। 9 फरवरी को दोपहर तक त्रासदी में बचाए गए लोगों की हालत कुछ ठीक हुई तो हमने इन्हें डिस्चार्ज कर दिया।
सब कह रहे थे, तुम वहां से निकल जाओ
त्रासदी के बाद मेरे घरवालों के फोन भी आने लगे थे। यह मेरा पहला बच्चा है। मैं मैटरनिटी लीव पर जाने ही वाली थी। सब कह रहे थे कि तुम वहां से निकल जाओ क्योंकि प्रेग्नेंट हो। घर वाले बोले, रास्ते बंद हो सकते हैं, फिर निकल नहीं पाओगे। डिलीवरी में दिक्कत आएगी, इसलिए तुरंत निकल जाओ, लेकिन मैंने डिसाइड किया कि पहले जो लोग टनल में फंसे थे, उन्हें ठीक करना है, उसके बाद ही छुट्टी लेना है।
मैंने पिछले साल ही ITBP जॉइन किया है। अब मैं मैटरनिटी लीव पर अपने घर आ चुकी हूं। बहुत खुशी और फख्र महसूस कर रही हूं कि विपदा की घड़ी में मैं किसी के काम आ सकी। मुझे अपने पति का भी बहुत सपोर्ट मिला। वो हिम्मत बनकर मेरे साथ खड़े रहे। मुझे लगातार मोटिवेट करते रहे।