गाजीपुर। रफीक ने एक हाथ से साइकिल थामी हुई है और दूसरे हाथ से अपने दिव्यांग दोस्त को सहारा दे रहे हैं। उन्हें दिल्ली से यूपी में दाखिल होना है, लेकिन इसके लिए उन्हें गड्ढों को पार करना होगा और कंटीली तारें फांदनी होंगी। दिल्ली और यूपी को जोड़ने वाले गाजीपुर बॉर्डर को पार करना उनके लिए कोई नई बात नहीं है। वे सालों से बिना दिक्कत ऐसा करते रहे हैं, लेकिन दिल्ली की सरहदों पर चल रहे किसान आंदोलन की वजह से पैदा हुए हालात ने उन्हें बॉर्डर पार करने का अहसास करा दिया है।
गाजीपुर बॉर्डर- ये शब्द वे सुनते रहे थे, लेकिन बॉर्डर कैसा होता है उन्होंने पहली बार देखा है। कंटीली तारें, परतों में लगे सीमेंट के स्लैब, सड़क पर उग आईं लोहे की नुकीली कीलें, मुस्तैद खड़े हथियारबंद जवान और दूर से आती किसानों की नारेबाजी की आवाज।
बैरिकेडिंग से आम लोगों को भी हो रही दिक्कतें
दिल्ली को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से जोड़ने वाले नेशनल हाईवे-9 पर गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन का केंद्र है। आठ लेन का ये हाईवे अब पूरी तरह बंद है। इसकी वजह से आसपास की सभी सड़कों पर भीषण जाम लग रहा है। गाड़ियों में बैठे लोगों के चेहरों पर तनाव और खीज साफ दिखती है, लेकिन उस पर खामोशी हावी है। बॉर्डर के आर-पार काम करने वाले रफीक जैसे हजारों लोग सरकार या किसानों के बारे में राय जाहिर करने की हिम्मत नहीं कर पाते। वे बस किसी भी तरह बॉर्डर पार कर लेना चाहते हैं। पुल के नीचे एक एंबुलेंस चक्कर काट रही है। ड्राइवर शायद रास्ता भटक गया है। गलत दिशा में सड़क कुछ खाली दिखने पर वो बैरिकेड तक चला आया था, लेकिन सामने कीलों और कंटीली तारों को देखकर उसे वापस लौटना पड़ रहा है।
राकेश टिकैत के रोने के बाद आंदोलन में फिर से नई जान आ गई है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जब तक कानून वापस नहीं लिया जाता है, हम घर नहीं जाएंगे।
इंटरनेट बंद करने से हो रही परेशानी
गुरवीर सिंह गाजीपुर बॉर्डर पर लीगल सेल से जुड़े हैं। उनका काम प्रदर्शनकारियों को मिल रहे लीगल नोटिस को देखना और उसका जवाब तैयार करना है। इस काम में उनकी पूरी लीगल टीम जुटी है। बिलासपुर से आए गुरवीर कहते हैं, 'इंटरनेट बंद होने की वजह से हमें काफी दिक्कतें हो रही हैं। हम वॉट्सऐप पर को-आर्डिनेट करके काम करते थे, लोगों को नोटिस भी वॉट्सऐप पर ही मिल रहे थे। सोशल मीडिया भी बंद है, नेटवर्क डाउन होने की वजह से कॉल भी नहीं लग पाते हैं। ऐसे में इन्फॉर्मेशन शेयर करना बहुत मुश्किल हो गया है।'
गुरवीर कहते हैं, 'सरकार यहां इंटरनेट बंद करके और सख्त पाबंदियां लगाकर प्रदर्शनकारियों से ज्यादा आम लोगों को परेशान करना चाहती है ताकि वे आंदोलनकारियों के खिलाफ खड़े हो जाएं। ये बांटो और राज करो की नीति है। आसपास रहने वालों को काम पर जाने के लिए बॉर्डर पार करना होता है। अब उनके लिए हालात बेहद मुश्किल हो गए हैं। सरकार ने एक ट्रैप बिछाया है। आंदोलनस्थल की किलेबंदी कर दी गई है, लेकिन इससे हमारे प्रदर्शन पर बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ है। हम जैसे पहले बैठे थे, वैसे ही बैठे हैं। असल परेशानी आम लोगों को है।'
सरकार अगर MSP दे तो हम प्रदर्शन क्यों करें?'
स्ट्रीट लाइट्स की दूधिया रोशनी में टेंट के बाहर किसान आग सेंक रहे हैं। कुछ किसान हुक्का भी पी रहे हैं।
यहां आए ज्यादातर सिख प्रदर्शनकारी उत्तर प्रदेश के पीलीभीत और रामपुर जिलों और उत्तराखंड के रुद्रपुर के हैं। गुरमैल सिंह पीलीभीत से आए हैं और लंगर में सेवा कर रहे हैं। उन्होंने इस साल 25 एकड़ जमीन पर धान बोए थे। गुरमैल सिंह का आरोप है कि उन्हें अपनी उपज का सही दाम नहीं मिला और MSP पर धान बेचने के लिए उन्हें अधिकारियों को रिश्वत देनी पड़ी। गुरमैल कहते हैं, 'सिर्फ 80 क्विंटल धान ही मैं MSP पर बेच पाया, उसमें भी मुझे प्रति क्विंटल 200 रुपए की रिश्वत देनी पड़ी। MSP हमारा अधिकार है। सरकार अगर MSP दे तो हम प्रदर्शन क्यों करें?'
गाजीपुर बॉर्डर पर अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान बड़ी तादाद में पहुंचे हैं। गन्ना बेल्ट के ये लोग हाल के चुनावों में BJP के वोटर रहे हैं। ऐसे में गाजीपुर बॉर्डर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति का केंद्र भी बन रहा है। मेरठ से आए विजेंद्र मलिक कहते हैं, 'टिकैत बाबा के आंसू पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को जगा रहे हैं। ये आंदोलन यूपी में सिर्फ कृषि कानूनों तक सीमित नहीं रहेगा। इसका असर राजनीति पर होना तय है।'
नेशनल हाईवे-9 पहले ग्रैंड ट्रंक रोड था। ये भारत की सबसे लंबी सड़क का हिस्सा रहा है। अब इसके आठ लेन की सड़कों पर किसानों के टेंट लगे हैं। मानों एक छोटा शहर ही यहां बस गया हो। स्ट्रीट लाइट्स की दूधिया रोशनी में टेंट के बाहर आग सेंकते हुए हुक्का पी रहे किसान किसी पिकनिक पर आए लगते हैं। किसान आंदोलन को 70 से अधिक दिन हो चुके हैं, लेकिन यहां आए अधिकतर प्रदर्शनकारी नए हैं। उनमें नई ऊर्जा और जोश है और अभी वो थके भी नहीं हैं। हुक्का गुड़गुड़ाते हुए पश्चिमी यूपी के एक बुजुर्ग किसान कहते हैं, 'अभी तो हमारा आंदोलन शुरू हुआ है, आगे-आगे देखिए होता है क्या।'
किसान आंदोलन को 70 से अधिक दिन हो चुके हैं। लंगर चल रहे हैं, लोग पंगत में बैठकर खा रहे हैं।
न हम जाट हैं, न मुसलमान, हम बस किसान हैं
यहां प्रदर्शनकारियों में बड़ी तादाद में मुसलमान भी हैं। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाटों और मुसलमानों के बीच पैदा हुई दरार को भरने की कोशिशें भी यहां हो रही हैं। मेरठ से आए मुकद्दम मुजफ्फरनगर से आए वीरेंद्र मलिक के गले में हाथ डालकर कहते हैं, 'यहां न हम जाट हैं, न मुसलमान, हम बस किसान हैं और यही हमारी पहचान है। अब हमें बांटना आसान नहीं होगा।'
गाजीपुर के मंच ने राकेश टिकैत को बड़ा जननेता बना दिया है। युवाओं का हुजूम उन्हें घेरे रहता है। दसियों कैमरे एक साथ सेल्फी क्लिक करते हैं। वे सबसे हाथ भी नहीं मिला पा रहे हैं। आंदोलन कब तक चलेगा, इस सवाल पर टिकैत कहते हैं, 'जब तक सरकार चाहेगी, हम तो अब पीछे नहीं हटेंगे।'