नई दिल्ली। आप और हम जीरो वेस्ट लाइफस्टाइल अपनाना चाहते हैं, लेकिन प्लास्टिक रैपर ऐसी चीज है जिसे हम चाह कर भी नजरअंदाज नहीं कर पाते हैं। चिप्स, नमकीन, बिस्किट से लेकर सर्फ, शैंपू तक सब प्लास्टिक रैपर में ही मिलता है। प्लास्टिक रैपर का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है, क्योंकि इसमें सामान ज्यादा सेफ रहता है, लेकिन ये पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। एक स्टडी के मुताबिक प्लास्टिक रैपर वेस्ट खासतौर पर पॉलीथीन की वजह से हर साल एक लाख से ज्यादा समुद्री जीव मर जाते हैं। ये तो बात हुई प्लास्टिक रैपर वेस्ट की। अब बात उस शख्स की, जो अपने स्टार्टअप के जरिए पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ कमाई भी कर रहा है।
पुणे बेस्ड 40 साल के नंदन भट का स्टार्टअप ईकोकारी प्लास्टिक बैग, चिप्स, बिस्किट पैकेट, गिफ्ट रैपर्स जैसे मल्टी लेयर पैकेजिंग वाले प्लास्टिक को रीसाइकिल करता है। यह पूरा काम आर्टिजन (कारीगर) के माध्यम से होता है। इसकी प्रोसेसिंग का तरीका मैन्युअल होता है, इसमें प्लास्टिक बैग्स वेस्ट से चरखे के जरिए फैब्रिक तैयार किया जाता है। फिर उससे होम डेकोरेटिव प्रोडक्ट तैयार किए जाते हैं। साल 2015 में शुरू हुए इस स्टार्टअप का पिछले फाइनेंशियल ईयर में 98 लाख रुपए का टर्नओवर रहा। इसके अलावा उन्होंने 17 आर्टिजन को रोजगार भी दिया है।
तस्वीर में आपको जो बैग दिख रहा है, यह इसके पीछे दिख रहे ऐसे ही 45 प्लास्टिक वेस्ट बैग्स से तैयार हुआ है।
प्लास्टिक वेस्ट बैग्स को धोकर दो दिनों तक धूप में सुखाते हैं
नंदन बताते हैं कि इसमें सबसे पहला स्टेप प्लास्टिक कलेक्शन होता है। इसके लिए वो दो तरीकों से काम करते हैं। पहला तरीका- ऐसे NGO जो वेस्ट पिकर्स के साथ काम करते हैं, उनसे प्लास्टिक वेस्ट कलेक्ट करते हैं। इसके अलावा उन्हें पर्यावरण के प्रति जागरूक आमजन और कॉर्पोरेट्स भी प्लास्टिक वेस्ट डोनेट करते हैं।
नंदन बताते हैं, ‘हम ऐसे प्लास्टिक पर काम करते हैं जिस पर और कोई काम नहीं कर रहा है। हम ऑडियो एंड वीडियो कैसेट टेप, जो अब यूज नहीं होते हैं, उनकी भी रीसाइकिलिंग करते हैं। यह वेस्ट जब हमारी यूनिट में आता है तो सबसे पहले हमारे आर्टिजन इसे साफ करते हैं ताकि इसमें गंदगी न रहे। फिर इसे धूप में दो दिनों तक सुखाया जाता है। इसके बाद इस प्लास्टिक को हम उनके रंग के हिसाब से अलग करते हैं। सेग्रीगेशन के बाद इसे लंबे-लंबे स्ट्रिप में काटते हैं, फिर इन स्ट्रिप को पारंपरिक चरखे पर रोल करते हैं। इसके हैंडलूम को हमने माॅडिफाई किया है ताकि प्लास्टिक की वीविंग हो सके, इस तरह हम प्लास्टिक से फैब्रिक तैयार करते हैं। इसके बाद हमारी टीम के डिजाइनर इससे प्रोडक्ट डिजाइन करते हैं और आर्टिजन की मदद से ये प्रोडक्ट तैयार होते हैं।’
प्लास्टिक वेस्ट रैपर्स के सेग्रीगेशन के बाद इसे लंबे-लंबे स्ट्रिप में काटा जाता है। फिर इन स्ट्रिप को पारंपरिक चरखे पर रोल करके इसकी वीविंग की जाती है।
ट्रैकिंग के दौरान पहाड़ों पर प्लास्टिक रैपर वेस्ट देख आया आइडिया
नंदन ने BE करने के बाद MBA की पढ़ाई की है। उन्होंने कई मल्टीनेशनल कंपनियों में काम किया। वे बताते हैं, ‘मैं मूलत: कश्मीर से हूं और अक्सर ट्रैकिंग करता रहता था। इस दौरान मैंने महसूस किया कि लोगों ने पहाड़ों को ट्रैकिंग की बजाए पिकनिक स्पॉट मान लिया है। लोग वहां जाकर पार्टी करते थे और सारा प्लास्टिक वेस्ट वहीं छोड़ आते थे। तब मैं सोचता था कि इस वेस्ट के मैनेजमेंट का कोई तरीका है क्या?
इसके बाद 2013 में मैंने 10 लाख रुपए सालाना पैकेज वाली नौकरी छोड़ दी। करीब दो सालों तक CSR कंसल्टेंट के तौर पर काम किया। इस दौरान हमें यह काम मिला और तब हमने इसे छोटे स्तर पर करके देखा। टेस्टिंग के बाद फिर अगस्त 2015 में हमने इस पर पूरी तरह से काम करना शुरू किया। हमने प्लास्टिक बैग्स को रीसाइकिल कर इससे प्रोडक्ट बनाए। हमें शुरुआत में ही बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला।
प्लास्टिक रैपर्स के अलावा अब नंदन ऑडियो एंड वीडियो कैसेट टेप, जो अब यूज नहीं होते हैं, उन्हें भी रीसाइकिल करते हैं।
भारत के अलावा यूरोप, यूएस और ईस्ट एशियन कंट्री में एक्सपोर्ट होते हैं प्रोडक्ट
नंदन कहते हैं, ‘हम अब तक 15 लाख से अधिक प्लास्टिक बैग्स को वेस्ट में जाने से बचा चुके हैं और इसे रीसाइकिल कर चुके हैं। हम इसके जरिए 25 तरह के प्रोडक्ट बनाते हैं। इसके अलावा हम कॉर्पोरेट्स के ऑन डिमांड प्रोडक्ट कस्टमाइज भी करते हैं। हमारा मार्केट अभी भारत के ए क्लास शहरों में ही है, क्योंकि वहां लोगों में इसे लेकर ज्यादा अवेयरनेस है। उन्हें पता है कि ये क्यों बनाया गया है और इससे उनके जीवन में क्या बदलाव आ सकता है। इसके अलावा हमारे प्रोडक्ट यूरोप, US और ईस्ट एशियन कंट्री में एक्सपोर्ट होते हैं। वहां मार्केट भारत की तुलना में ज्यादा मैच्योर है। इसके अलावा वेबसाइट, इवेंट के जरिए भी प्रोडक्ट सेल करते हैं।
नंदन कहते हैं, ‘अगले फाइनेंशियल इयर में हम अपना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए तक ले जाना चाहते हैं, साथ ही अपने साथ 50 नए आर्टिजन को जोड़ना चाहते हैं। इसके अलावा हमारी कोशिश है कि अगले कुछ सालों में हम अलग-अलग शहरों में इस मॉडल को लागू कर वहां के ही वेस्ट से प्रोडक्ट तैयार करें।’
नंदन के पुणे स्थित प्लांट पर वर्तमान में रोजाना 30 किलो प्लास्टिक वेस्ट रीसाइकिल होता है, और रोजाना करीब 25 फैब्रिक तैयार होते हैं। वहीं इस फैब्रिक से प्रोडक्ट तैयार करने में एक से दो दिन का वक्त लगता है।
नंदन के इस स्टार्टअप में अभी 17 आर्टिजन काम रह रहे हैं, अगले साल तक वे 50 नए आर्टिजन को जोड़ने की प्लानिंग है।
‘आज मुझे अपनी सेटल्ड नौकरी छोड़ने का मलाल नहीं है’
नंदन कहते हैं, ‘मुझे अपनी सेटल्ड नौकरी छोड़ने का कोई मलाल नहीं है, क्योंकि जब आप किसी जॉब में होते हो तो आप एक साइकिल में फंस जाते हो। एक तारीख को तनख्वाह आती है, 5 तारीख तक EMI कट जाती है और 10 तारीख तक आप फिर से जीरो पर आ जाते हो। फिर अगले 20 दिन आप स्ट्रगल करते हो, इस बीच आपके पास सोचने के लिए समय ही नहीं रहता है। नौकरी छोड़कर अपना बिजनेस शुरू करने पर शुरुआती एकाध साल में आपको थोड़ा अजीब लगता है, क्योंकि आपको महीने की पहली तारीख को बैंक बैलेंस देखने की आदत होती है, लेकिन जब आप अपने बिजनेस में हर महीने ग्रोथ देखते हैं तो ये आपको खुशी देता है।’