स्वर कोकिला लता मंगेशकर के मुताबिक, 1963 में गणतंत्र दिवस के मौके पर जब उन्हें 'ए मेरे वतन के लोगों' गाने का ऑफर मिला तो पहले उन्होंने इससे इनकार कर दिया। क्योंकि उनके पास रिहर्सल करने का वक्त नहीं था। हालांकि, जब उन्होंने यह गीत गाया तो न केवल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखों में आंसू आ गए थे। बल्कि यह गाना भी इतना पॉपुलर हो गया था कि उनका कोई भी शो या कॉन्सर्ट इसकी प्रस्तुति के बगैर पूरा नहीं होता था। लताजी ने एक इंटरव्यू में इस गीत के पीछे की पूरी कहानी सुनाई, जो काफी रोचक है।
एक गाने को स्पेशल अटेंशन देना संभव नहीं था
स्पॉटब्वॉय की खबर के मुताबिक, लताजी ने बताया कि कवि प्रदीप ने इस गाने के अमर बोल लिखे थे। उन्होंने ही उनसे इसे 26 जनवरी 1963 के गणतंत्र दिवस समारोह में गाने की गुजारिश की थी। पहले तो वे इस गाने के लिए तैयार नहीं हुईं, क्योंकि वे उस दौर में 24 घंटे काम कर रही थीं और उनके लिए एक गाने को स्पेशल अटेंशन दे पाना संभव नहीं था।
हालांकि, जब प्रदीपजी ने उन्हें मनाया तो वे इसे अपनी बहन आशा के साथ मिलकर इसे गाने को तैयार हो गईं। लेकिन प्रोग्राम के लिए दिल्ली रवाना होने से कुछ दिन पहले ही आशा ने वहां जाने से इनकार कर दिया। लताजी ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की। यहां तक कि 'ए मेरे वतन के लोगों' प्रोजेक्ट को ऑर्केस्ट्रेटेड करने वाले म्यूजिक कंपोजर हेमंत कुमार ने भी आशा को मनाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं मानीं। ऐसे में लताजी को अकेले ही गाने की तैयारी करनी पड़ी।
सी. रामचंद्र ने तैयार की थी गाने की धुन
गाने की धुन बनाने वाले सी. रामचंद्र भी 4-5 दिन पहले दिल्ली रवाना हो गए थे। ऐसे में लताजी को उनका साथ भी नहीं मिल पाया। हालांकि, रामचंद्र ने उन्हें गाने का एक टेप दे दिया था, जिसे सुनकर वे प्रैक्टिस कर रही थीं। 26 जनवरी को दिलीप कुमार, राज कपूर, महबूब खान और शंकर जयकिशन जैसे कई बड़े स्टार्स के साथ वे दिल्ली रवाना हो गईं। एयरक्राफ्ट में पूरे टाइम वे रामचंद्र का दिया हुआ टेप सुनती रहीं।
दिल्ली पहुंचते ही पेट में दर्द होने लगा था
लताजी कहती हैं, "मैं अपनी बेस्ट फ्रेंड नलिनी म्हात्रे के साथ थी। रात में जब हम दिल्ली पहुंचे तो मेरे पेट में बहुत तेज दर्द हुआ। मैंने नलिनी से कहा कि इस स्थिति में मैं कैसे गा पाऊंगी? वह बोली- 'चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।' 27 जनवरी को हम वैन्यू पर पहुंचे। मैंने दो गाने गाए। भजन 'अल्लाह तेरो नाम' और 'ए मेरे वतन के लोगों।'
पंडितजी ने कहा- मेरी आंखों में पानी आ गया
लताजी आगे कहती हैं, "गाने खत्म करके मैं रिलैक्स होने के लिए स्टेज के पीछे चली गई। अचानक महबूब खान साहब ने मुझे आवाज लगाई और मेरा हाथ पकड़कर बोले- 'चलो पंडितजी ने बुलाया है।' मैं हैरत में थी कि वे मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं? जब मैं स्टेज पर पहुंचीं तो पंडितजी, उनकी बेटी इंदिराजी, राधाकृष्णनजी (तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन) समेत सभी लोग लोग खड़े होकर मेरा स्वागत कर रहे थे।
महबूब खान साहब ने कहा, 'ये रही हमारी लता। आपको कैसा लगा उसका गाना।' पंडित बोले, 'बहुत अच्छा, मेरी आंखों में पानी आ गया।' फिर हम सभी को चाय के लिए पंडितजी के घर पर बुलाया गया।" लताजी के मुताबिक, वहां पंडितजी ने उनके साथ फोटो भी खिंचवाई थी।
प्रदीप को था गाने पेर पूरा भरोसा
लताजी के मुताबिक, उन्हें बिल्कुल भी भरोसा नहीं था कि यह गाना इस कदर पॉपुलर हो जाएगा। वे कहती हैं, "सिर्फ प्रदीपजी को भरोसा था। उन्होंने मुझसे कहा था, 'लता तुम देखना यह गाना बहुत चलेगा। लोग हमेशा के लिए इसे याद रखेंगे।' मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया था। मुझे लगता था कि फिल्म का गीत न होने की वजह से इसका सीमित प्रभाव रहेगा। हालांकि, 'ए मेरे वतन के लोगों' मेरी सिग्नेचर ट्यून बन गया।"
लताजी कहती हैं कि उन्हें इस बात का अफसोस रहा है कि प्रदीपजी को गणतंत्र दिवस के प्रोग्राम में नहीं बुलाया गया था। अगर वे वहां होते तो अपनी आंखों से गाने का इम्पैक्ट देख सकते।