गीता जयंती हर साल मार्गशीर्ष महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस बार ये 25 दिसंबर को आ रही है। इस दिन महाग्रंथ यानी गीता, भगवान श्रीकृष्ण और वेद व्यासजी की पूजा करके ये पर्व मनाया जाता है। दुनिया के किसी भी धर्म-संप्रदाय के किसी भी ग्रंथ का जन्मदिन नहीं मनाया जाता। जयंती मनाई जाती है तो केवल श्रीमद्भागवत गीता की। क्योंकि माना जाता है कि अन्य ग्रंथ इंसानों ने लिखे या संकलित किए हैं, जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के मुंह से हुआ है। पुराणों मे बताया गया है कि इस दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश दिए थे। जिसके संकलन को श्रीमद्भागवत गीता का रूप दिया गया।
सभी के लिए हैं गीता के संदेश
गीता, वेदों और उपनिषदों का सार, इस लोक और परलोक दोनों में मंगलमय मार्ग दिखाने वाला, कर्म, ज्ञान और भक्ति- तीनों मार्गों द्वारा मनुष्य के परम श्रेय के साधन का उपदेश करने वाला अद्भुत ग्रंथ है। इसके छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में इतना सत्य, इतना ज्ञान, इतने ऊंचे गंभीर सात्विक उपदेश भरें हैं, जो मनुष्य को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बिठा देने की शक्ति रखते हैं। मनुष्य का कर्तव्य क्या है? इसका बोध कराना गीता का लक्ष्य है। गीता सर्वशास्त्रमयी है। श्रीकृष्ण ने किसी धर्म विशेष के लिए नहीं, अपितु मनुष्य मात्र के लिए उपदेश दिए हैं।
गीता सभी परिस्थितियों में एक समान रहें
गीता हम सभी को सही तरीके से जीवन जीने की कला सिखाती है, जीवन जीने की शिक्षा देती है। केवल इस एक श्लोक के उदाहरण से ही इसे अच्छी तरह से समझा जा सकता है
सुखदुःख समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।
अर्थ - जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख सभी को समान समझने के बाद फिर युद्ध करना चाहिए। इस तरह युद्ध करने से पाप नहीं लगता है। गीता के इस श्लोक में मनुष्य को जीवन की सभी परिस्थितियों में समान रूप से व्यवहार करने के लिए कहा गया है। फिर वो चाहे अच्छी हालात हो या बुरे, इंसान को अपना व्यवहार नहीं बदलना चाहिए। इस तरह का व्यवहार जो भी रखेगा, ऐसा इंसान कभी परेशान नहीं होगा।