अगर हम चाहते हैं कि कोई हमारी आलोचना ही न करें तो ये संभव नहीं है। हम कुछ भी काम करेंगे तो कोई न कोई तो उसकी बुराई जरूर करेगा। अगर हम ऐसी नकारात्मक बातों पर ध्यान देंगे तो हम अपना काम ही नहीं कर पाएंगे। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है।
कथा- पुराने समय में एक संत अपने शिष्य के साथ किसी गांव के बाहर कुटिया बनाकर रह रहे थे। जब आसपास के लोगों को उनके बारे में मालूम हुआ तो लोग संत के पास पहुंचने लगे। संत बहुत विद्वान थे। लोग उन्हें अपनी समस्याएं बताते और संत उनका हल बता देते थे। संत अपने उपदेशों की वजह से काफी प्रसिद्ध हो गए थे। इससे उनका शिष्य भी खुश था।
गांव में ही एक पंडित रहता था। उसे अपने भविष्य की चिंता सता रही थी। उसे लग रहा था कि संत गांव के लोगों का भरोसा जीत रहा है, इससे उसके यजमान कम हो जाएंगे। लोग पूजा-पाठ नहीं कराएंगे। पंडित अपना प्रभाव कम होने का खतरा महसूस कर रहा था। उसने गांव के लोगों के सामने संत की बुराई करना शुरू कर दिया।
कुछ ही दिनों में गांव के काफी लोग पंडित के साथ हो गए और संत को ढोंगी कहने लगे थे। एक दिन संत के शिष्य ने ये बातें सुन लीं। वह तुरंत अपने गुरु के पास पहुंचा और पूरी बात बताई।
संत ने शिष्य को समझाया कि जब हाथी किसी गांव में आता है तो कुत्ते भौंकते ही हैं, लेकिन हाथी अपनी चाल में चलता रहता है। ठीक इसी तरह हमें भी इन नकारात्मक बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। हमें सिर्फ अपना काम ईमानदारी से करना है।
कथा की सीख
इस कथा की सीख यह है कि हम सिर्फ अपना कर्म अच्छी तरह कर सकते हैं, समाज में हो रही आलोचनाओं को रोक नहीं सकते हैं। हम कुछ भी काम करेंगे तो लोग तो आलोचना करेंगे ही। इसीलिए सिर्फ अपने काम पर ध्यान लगाएं। ईमानदारी से काम करते रहें। दूसरों की बातों पर ध्यान देंगे तो जीवन में सुख-शांति नहीं मिल पाएगी।