जो लोग परिवार से प्रेम करते हैं, धैर्य और संतोष बनाए रखते हैं, वे ही भक्ति कर पाते हैं

Posted By: Himmat Jaithwar
11/21/2020

घर-परिवार में परेशानियां बनी रहती हैं, इनकी वजह से निराश नहीं होना चाहिए। हालात पक्ष में नहीं है तो हमें धैर्य के साथ आग बढ़ते रहना चाहिए। जो हमारे पास हैं, उसी में संतोष बनाए रखना चाहिए। मन शांत रहेगा, तब ही हम भक्ति कर सकते हैं। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। जानिए ये कथा...

कथा के अनुसार एक व्यक्ति के परिवार लगातार समस्याएं चल रही थीं। माता-पिता और पत्नी से भी उसका झगड़ा होता था। वह मेहनत कर रहा था, लेकिन उसे पर्याप्त धन नहीं मिल पा रहा था। निराश होकर एक दिन उसने घर-संसार छोड़कर संन्यास लेने का निर्णय कर लिया।

दुखी व्यक्ति एक संत के पास पहुंचा और संत से बोला कि गुरुजी मुझे आपका शिष्य बना लें। मुझे संन्यास लेना है। मैं मेरा घर-परिवार और काम-धंधा सब कुछ छोड़कर अब सिर्फ भगवान की भक्ति करना चाहता हूं।

संत ने उससे पूछा कि क्या तुम्हें अपने घर में किसी से प्रेम है? व्यक्ति ने कहा कि नहीं, मैं अपने परिवार में किसी से प्रेम नहीं करता। संत ने कहा कि क्या तुम्हें अपने माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी और बच्चों में से किसी से भी लगाव नहीं है।

व्यक्ति ने कहा कि गुरुजी पूरी दुनिया स्वार्थी है। मैं अपने घर-परिवार में किसी से भी प्रेम नहीं करता। मुझे किसी से लगाव नहीं है, इसीलिए मैं सब कुछ छोड़कर संन्यास लेना चाहता हूं।

संत ने कहा कि मैं तुम्हें शिष्य नहीं बना सकता, मैं तुम्हारे अशांत मन को शांत नहीं कर सकता हूं। अगर तुम्हें अपने परिवार से थोड़ा भी स्नेह होता तो मैं उसे और बढ़ा सकता था, अगर तुम अपने माता-पिता से प्रेम करते तो मैं इस प्रेम को बढ़ाकर तुम्हें भगवान की भक्ति में लगा सकता था, लेकिन तुम्हारा मन बहुत कठोर है। एक बीज ही विशाल वृक्ष बनता है, लेकिन तुम्हारे मन में कोई भाव ही नहीं है।

कथा की सीख

परिवार के साथ रहकर भी भक्ति की जा सकती है। जो लोग धैर्य और संतोष के साथ रहते हैं, वे ही भक्ति कर पाते हैं। अगर किसी के मन में प्रेम, धैर्य और संतोष नहीं है तो वह व्यक्ति अशांत ही रहेगा। शांति और भक्ति के लिए ये चीजें होना जरूरी हैं।



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