ढाई महीनों में 76 लापता बच्चों को उनके परिवार से मिलवाया, इनमें से 56 की उम्र 14 साल से कम

Posted By: Himmat Jaithwar
11/19/2020

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के तिगरी इलाके के एक गांव में मनीषा अपने घर के बाहर दो बच्चों को गोद में लिए बैठी थी जब दिल्ली पुलिस की एक टीम वहां पहुंची। पुलिस को देखते ही वो रोने लगी और कहा कि मुझे यहां से ले चलिए।दिल्ली पुलिस की हेडकांस्टेबल सीमा ढाका के नेतृत्व में गई पुलिस की टीम उसे रेस्क्यू करके दिल्ली ले आई। ये अगस्त 2020 की बात है। दिल्ली के अलिपुर थाना की रहने वाली मनीषा को 2015 में एक औरत बहला-फुसला कर अपने साथ ले गई और अपने देवर से उसकी शादी करा दी।

मनीषा उस समय पंद्रह साल की थी और आठवीं क्लास में पढ़ती थी। उसके मजदूर पिता ने FIR दर्ज कराई लेकिन मनीषा नहीं मिली। सीमा ढाका लापता बच्चों की खोजबीन में लगी थीं। जब मनीषा के मामले की FIR उनके सामने आई तो उन्होंने उसके परिवार की खोज शुरू की। सीमा बताती हैं, 'मैंने जैसे ही FIR पढ़ी, उसके परिजनों की खोजबीन शुरू कर दी। काफी खोजबीन करने पर उसके पिता मुझे मिले, वो पेंटर का काम कर रहे थे। जब मैंने उनसे पूछा कि आपके पास अपनी लापता बेटी के बारे में कोई जानकारी है क्या तो वो रोने लगे और बोले कुछ दिन पहले ही उसने फोन किया था और बताया था कि वो बहुत परेशान है।

मनीषा के पिता ने गिड़गिड़ाते हुए सीमा ढाका से कहा, 'आपका अहसान मैं मेहनत मजदूरी करके उतार दूंगा लेकिन आप मेरी बेटी को किसी तरह खोज दीजिए।' सीमा उस फोन नंबर के जरिए मनीषा तक पहुंच गईं जिससे उसने कॉल किया था। मनीषा अब अपने परिवार के साथ है। सीमा ने बीते ढाई महीनों में ऐसे ही 76 लापता बच्चों को उनके परिजनों से मिलवाया है। इनमें से 56 की उम्र चौदह साल से कम है।

दिल्ली पुलिस ने इसी साल अगस्त में लापता बच्चों को खोजने के लिए आउट ऑफ टर्न प्रोमोशन (ओटीपी) देने की योजना शुरू की थी। इस स्कीम के तहत चौदह साल से कम उम्र के 50 लापता बच्चे खोज लेने पर प्रोमोशन दिया जाना है। सीमा ढाका दिल्ली पुलिस की ऐसी पहली अधिकारी बन गई हैं जिसे इस स्कीम के तहत ओटीपी मिला है। दिल्ली पुलिस के कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव ने बुधवार को ट्वीट करके सीमा ढाका को बधाई दी।

सीमा कहती हैं, 'जितनी खुशी मुझे बच्चों को परिजनों से मिलवाते हुए होती है उतनी ही खुशी कमिश्नर सर का ट्वीट पढ़ने के बाद हुई है। मुझे प्रोमोशन मिला है, बहुत अच्छा लग रहा है। लेकिन सबसे अच्छा तब लगता है जब कोई लापता बच्चा महीनों या सालों बाद अपने परिवार से मिलता है।'

राजधानी दिल्ली में साल 2019 में 5412 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई थी जिनमें से दिल्ली पुलिस 3336 बच्चों को खोजने में कामयाब रही। वहीं साल 2020 में अब तक लापता हुए 3507 बच्चों में से 2629 को दिल्ली पुलिस ने खोज लिया है। सीमा ने ढाई महीने के अंतराल में 76 लापता बच्चों को खोजकर रिकॉर्ड बनाया है। ये काम उन्होंने कोरोना महामारी काल में किया है।

सीमा कहती हैं, 'कोरोना के दौर में दिल्ली से बाहर जाकर बच्चों को खोजना चुनौतीपूर्ण था। दिल्ली एनसीआर के अलावा बंगाल बिहार और पंजाब में हमने बच्चों को खोजा। 34 साल की सीमा साल 2006 में कांस्टेबल के तौर पर दिल्ली पुलिस में भर्ती हुई थीं। साल 2014 में वो पुलिस की आंतरिक परीक्षा पास करके हेड कांस्टेबल बन गईं। सीमा के पति भी दिल्ली पुलिस में ही हैं।

वो कहती हैं, 'मुझे अपने परिवार और साथी पुलिसकर्मियों का पूरा सहयोग मिला है। बिना उनके सहयोग के शायद में अकेले ये काम नहीं कर पाती।'सीमा कहती हैं कि जब कोई लापता हुआ बच्चा अपने परिवार से मिलता है तो उसके मां-बाप रो-रोकर दुआएं देते हैं।वो कहती हैं, 'कई लोगों को मेरी रैंक का नहीं पता होता। वो दुआएं देते हैं कि बेटा तुम और बड़ी अफसर बन जाओ।' सीमा बताती हैं कि गुमशुदा होने वाले अधिकतर बच्चे आठ साल से अधिक उम्र के होते हैं। कई लड़कियां होती हैं जिन्हें बहला-फुसला कर लोग ले जाते हैं तो कुछ बच्चे घर से नाराज होकर चले जाते हैं और फिर लौट नहीं पाते हैं।

सीमा और उनके पति दोनों दिल्ली पुलिस में ही हैं।
सीमा और उनके पति दोनों दिल्ली पुलिस में ही हैं।

वो कहती हैं, 'बच्चों को खोजने में सबसे अहम भूमिका फोन की होती है। कई बार लापता बच्चे किसी तरह घरवालों को फोन कर देते हैं। हम मोबाइल की पूरी जानकारी निकालकर जल्द से जल्द बच्चों तक पहुंच जाते हैं।' अधिकतर लापता बच्चे ऐसे परिवारों के होते हैं जो किराए पर रहते हैं या जिनके माता-पिता काम के सिलसिले में जगह बदलते रहते है। सीमा कहती हैं, 'लापता बच्चों के परिजनों को अपना फोन नंबर नहीं बदलना चाहिए और पता बदलने पर पुलिस को जानकारी देनी चाहिए।'

सीमा लड़कियों से छेड़छाड़ और पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज होने वाले मामलों की जांच भी करती हैं। वो कहती हैं, 'पुलिस की नौकरी में ड्यूटी का कोई तय वक्त नहीं होता है। जब भी मॉलेस्टेशन का कोई मामला आता है तो उसे सॉल्व करने के लिए हम चौबीस घंटे काम करते हैं।' सीमा कहती हैं, 'मैं इतना अच्छा काम कर पाई इसकी एक बड़ी वजह ये है कि मुझे मेरे परिवार से बहुत सहयोग मिला है। घर पर मुझ पर किसी तरह के काम का बोझ नहीं डाला जाता है। मेरा आठ साल का बेटा स्कूल में पढ़ता है। मेरी सास-ससुर मेरी गैर मौजूदगी में उसका पूरा ध्यान रखते हैं।'

सीमा एक महिला हैं और कई बार परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण होती हैं। क्या उन्हें कभी किसी परिस्थिति में डर लगा, इस पर वो कहती हैं, 'मैंने डर कभी महसूस नहीं किया है। मैं वर्दीधारी पुलिसकर्मी हूं, शायद पुलिस में होने की वजह से मैंने कभी डर महसूस ना किया है। महिलाएं अगर चाहें तो कोई परिस्थिति उन्हें रोक नहीं सकती है।'सीमा ढाका की कामयाबी दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों को और बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करेगी। इस कामयाबी के बीच सीमा लापता बच्चों के और मामलों को सुलझाने में व्यस्त हैं।

वो कहती हैं, 'मेरे लिए सबसे बड़ा मोटीवेशन वो खुशी है जो एक मां को अपना गुम हुआ बच्चा देखकर मिलती है। इसकी तो किसी और खुशी से तुलना भी नहीं की जा सकती। कई बच्चे ऐसे होते हैं जो सालों बाद अपने परिवार से मिलते हैं। अच्छा लगता है जब हम इनकी जिंदगी बचाने में अपनी भूमिका निभा पाते हैं।'



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