मुम्बई। सरकार एक ओर अपने विनिवेश (डिसइन्वेस्टमेंट) के लक्ष्य को हासिल करने की जद्दोजहद कर रही है, वहीं दूसरी ओर 82 हजार करोड़ रुपए के प्रस्ताव पर सरकार कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। जिन बैंकों ने कर्ज दिया है, उसमें से अधिकतर की राय यही है कि इस पैसे को ले लेना चाहिए। कम से कम कोरोना की इस महामारी में ये पैसे काफी मदद कर सकते हैं।
डीएचएफएल ने दिया 43 हजार करोड़ का ऑफर
बता दें कि हाल में दीवान हाउसिंग फाइनेंस ने 43 हजार करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव दिया है। इसके प्रमोटर कपिल वधावन ने पिछले हफ्ते तलोजा जेल से भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के एडमिनिस्ट्रेटर को एक पत्र लिखकर कहा था कि वे अपनी संपत्तियां बेचकर 43 हजार करोड़ रुपए चुका सकते हैं। डीएचएफएल की कई प्रॉपर्टी है जिसे वे बेच कर पैसा देना चाहते हैं। हालांकि इस पर RBI और बैंकिंग सेक्टर ने कोई जवाब नहीं दिया है।
वीडियोकॉन ने दिया 30 हजार करोड़ का ऑफर
इसी तरह वीडियोकॉन ग्रुप के प्रमोटर वेणूगोपाल धूत ने कर्ज देनेवालों को यह प्रस्ताव दिया है कि वे 30 हजार करोड़ रुपए देने को तैयार हैं। इसके एवज में उनकी 13 कंपनियां इंसॉल्वेंसी प्रोसीजर से बाहर की जाएं। उनके ऑफर को कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स को भेजा गया है। बता दें कि वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के निलंबित बोर्ड के चेयरमैन वेणूगोपाल धूत थे।
विजय माल्या का 9 हजार करोड़ का ऑफर
इससे पहले कुछ सालों से देश से फरार चल रहे किंगफिशर ग्रुप के मालिक विजय माल्या ने कई बार अपनी 9 हजार करोड़ रुपए की वापसी की बात किया है। हालांकि उस पर भी बैंकों ने या सरकार ने कोई राय नहीं दी। इस मामले में बैंकों के सीईओ का कहना है कि जो भी पैसे इस तरह के ऑफर हो रहे हैं, उन्हें ले लेना चाहिए। क्योंकि यह छोटे मोटे अमाउंट नहीं हैँ। अगर 82 हजार करोड़ रुपए सिस्टम में आता है तो इससे काफी मदद मिल जाएगी।
कोई कांक्रीट ऑफर नहीं आया
बैंक ऑफ महाराष्ट्र के एमडी एवं सीईओ ए.एस राजीव कहते हैं कि मुझे नहीं लगता है कि इसमें अभी तक कोई कांक्रीट ऑफर किसी से आया है। फिर भी मै यह मानता हूं कि वन टाइम सेटलमेंट (ओटीएस) तमाम कारकों पर आधारित होते हैं। अंत में किसी भी तरह से बैंक को अपने लोन का पैसा वापस लेना चाहिए। इस मामले में यस बैंक के एमडी प्रशांत कुमार ने कहा कि वे किसी व्यक्तिगत लोन के मामले में कोई कमेंट नहीं करना चाहते हैं।
फैसला सभी को मिल कर करना होगा
हालांकि यह फैसला अंतिम में सभी को मिलकर करना होगा। इसमें बैंकिंग, जांच कर रही एजेंसियां और सरकार के साथ भारतीय रिजर्व बैंक को भी साथ आना होगा। क्योंकि यह मामला सभी से जुड़ा है। इन तीनों का मामला इंसॉल्वेंसी बोर्ड में है। दरअसल सरकार ने जब से इंसॉल्वेंसी में कंपनियों को भेजने का फैसला किया है, तब से काफी पैसा इसके जरिए मिल भी रहा है। लेकिन अगर उससे पहले ही पैसा मिल रहा है तो इससे कई सारे फायदे होंगे। एक तो बैंकों को पैसा समय पर मिलेगा और दूसरे उसका ब्याज भी मिलेगा। साथ ही इंसॉल्वेंसी में लगनेवाला समय भी बच जाएगा।
पैसा देने से अपराध खत्म नहीं हो जाएगा
हालांकि कानूनी जानकारों की राय में यह संभव नहीं है। इसका कारण यह है कि किसी के पैसे वापस कर देने से उसका अपराध खत्म नहीं हो जाता है। इसलिए यह अपराध है। पर दूसरी ओर बैंकों की राय इससे अलग है। वे कहते हैं कि मामला हमारे पैसे का है जो हमारे ग्राहकों का है। अगर यह पैसा मिल जाए तो हमें उन कंपनियों से कोई दिक्कत नहीं है।