अमेरिकी विदेश मंत्री बोले- गलवान में जिन 20 सैनिकों को चीन ने मारा, उन्हें श्रद्धांजलि; हम भारत के साथ

Posted By: Himmat Jaithwar
10/27/2020

भारत और अमेरिका के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों के बीच तीसरी 2+2 बैठक दिल्ली के हैदराबाद हाउस में हुई। दोनों देशों के बीच बेका यानी बेसिक एक्सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) पूरा हो गया है। इससे भारत मिसाइल हमले के लिए विशेष अमेरिकी डेटा का इस्तेमाल कर सकेगा। इसमें किसी भी इलाके की सटीक लोकेशन मिलती है।

साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि आज हम वार मेमोरियल गए थे। हमने उन वीर जवानों को श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने भारत के लिए अपनी जान दी। इनमें वो 20 जवान भी शामिल हैं, जिन्हें गलवान में चीन ने मारा था। भारत अपनी अखंडता के लिए खतरों से लड़ रहा है और हम भारत के साथ खड़े हैं।

हैदराबाद हाउस में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के साथ एस जयशंकर।
हैदराबाद हाउस में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के साथ एस जयशंकर।

अपडेट्स...

  • हैदराबाद हाउस में 2+2 बैठक जारी।
  • पोम्पियो और एस्पर ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी।

2+2 वार्ता क्या है?
यह दो देशों के रक्षा और विदेश मंत्रालयों में होती है। पहले भी 2 बैठकें हो चुकी हैं।

इस बार एजेंडा क्या?
प्रशांत क्षेत्र में चीन की दखलंदाजी और लद्दाख में उसका आक्रामक बर्ताव वार्ता में शामिल होगा। इसे देखते हुए बेका समझौता हो सकता है।

बेका क्या है?
बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) से भारत मिसाइल हमले के लिए विशेष अमेरिकी डेटा का इस्तेमाल कर सकेगा। इसमें किसी भी क्षेत्र की सटीक भौगोलिक लोकेशन होती है।

एक्सपर्ट व्यू: बेका एग्रीमेंट के लिए यही सबसे अनुकूल समय, चीन पर साफ बात करनी होगी
पूर्व विदेश सचिव शशांक के मुताबिक, चीन के साथ हमारे रिश्ते जिस मोड़ पर आ चुके हैं, उसमें बेका समझौता काफी अहम हो जाता है। इसलिए 2+2 वार्ता के केंद्र में बेका है। समझौता हुआ तो दोनों देश जियो स्पेशल क्षेत्र में सहयोग बढ़ाएंगे। करगिल युद्ध के समय अमेरिका ने यह कहकर हमारे GPS बंद कर दिए थे कि यह करार शांति काल के लिए था। हालांकि, उसके बाद रक्षा क्षेत्र में हम 2 समझौते लेमोआ और कोमकासा कर चुके हैं।

अब हमारे मंत्रियों को यह ध्यान रखना होगा कि समझौता युद्धकाल के लिए भी लागू हो। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हैं, इसलिए केवल सैद्धांतिक सहमति बनने से मामला लटक सकता है। जॉर्ज बुश के राष्ट्रपति रहते हुए भी एक बार ऐसी स्थिति बनी थी। लेकिन, तब विपक्षी पार्टियों ने कहा था कि हम चीन के साथ चलना चाहते हैं। आज बदले हालात में हमें अमेरिका को साफ कहना होगा कि ईरान के मसले पर चीन को बाहर रखना जरूरी है, वर्ना भारत बुरी तरह से घिर जाएगा। क्योंकि, चीन पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल में जड़ें जमाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है।



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