इंटरनेट पर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की पांच साल की बेटी को रेप की धमकियां मिल रही हैं। वजह? क्योंकि उस नन्ही बच्ची के पिता की टीम आईपीएल मैच में हार गई। लोग धोनी से गुस्सा हैं, लेकिन निकाल उनकी पांच साल की बेटी पर रहे हैं। इंटरनेट पर इस खबर के बाद मैं अगली खबर पर पहुंचती हूं।
गुजरात में एक 12 साल की बच्ची रेप के बाद प्रेग्नेंट हो गई। फिर तीसरी खबर दिखाई देती है, गुजरात में एक 44 साल के आदमी ने 3 नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार किया। फिर चौथी खबर, छत्तीसगढ़ में बलात्कार का शिकार नाबालिग बच्ची की मौत। पांचवी खबर केरल में 10 साल की बच्ची के साथ रेप।
यूं तो इन सारी खबरों का आपस में कोई रिश्ता नहीं, लेकिन एक ही तार से मानो सब जुड़ी हैं। हर वो मनुष्य, जिसने आपके मुल्क में स्त्री की देह में जन्म लिया है, वो सुरक्षित नहीं। वो हर वक्त आपके निशाने पर है।
लोगों ने पांच साल की बच्ची के लिए जैसी भाषा और शब्दों का इस्तेमाल किया है, सोचकर ही मेरे हाथ कांप रहे हैं। मैं कल्पना कर रही हूं उस नन्ही जान की, जो इस वक्त आइसक्रीम और गुब्बारे के लिए जमीन पर लोट रही होगी। झूठ-मूठ नाराज होने का नाटक कर रही होगी। उसे पता ही नहीं कि यह दुनिया उसके लिए कितनी डरावनी, कितनी हिंसक है।
और आप जो इसे पढ़ रहे हैं तो पढ़ते हुए अपनी पांच साल की बेटी को जेहन में रखिएगा और उन सारी नन्ही बच्चियों को, जिनसे आप प्यार करते हैं और जिन्हें एक खरोंच भी लग जाए तो आप छटपटा जाते हैं।
मर्द का चरित्र तो ऐसा है कि अगर उसे किसी मर्द से कोई दिक्कत हो तो वो हमला उससे जुड़ी महिलाओं पर करता है। उसकी मां, बहन, पत्नी, बेटी को निशाना बनाता है। फिर चाहे वो बच्ची पांच साल की मासूम ही क्यों न हो। क्या अभी भी आपको आश्चर्य है इस बात पर कि हमारे समाज में तीन महीने से लेकर तीन साल की बच्चियों तक के साथ रेप क्यों होते हैं।
लोगों को अनुराग कश्यप के विचारों से, उनके ट्विटर पर लिखने से दिक्कत हुई तो उन्होंने अनुराग की बेटी आलिया को बलात्कार की धमकी दे डाली। इम्तियाज अली ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था कि मेरा कोई काम पसंद न आए तो लोग मेरी बेटी और पत्नी को धमकियां देने लगते हैं। लोगों को फरहान अख्तर से दिक्कत होती है तो वो उनकी बहन को निशाना बनाने लगते हैं।
सेलिब्रिटियों को दरकिनार भी कर दें तो आपके साथ क्या होता है? आपको गाली देनी हो तो मर्द आपकी मां, आपकी बहन को गालियां देते हैं। फेसबुक पर आपकी लिखी कोई बात उन्हें नागवार गुजरी तो वो इनबॉक्स में आकर आपकी बहन के साथ बलात्कार करने की धमकी देकर जाते हैं। वो आपका रेप करने की धमकी नहीं देते।
दिक्कत आपसे है तो भी मरेगी आपकी बहन, आपकी मां, आपकी बेटी। मैं सबके लिए नहीं कह रही, लेकिन जवाब में शायद आप भी ऐसा ही करते होंगे। अपनी बहन को मिली गाली के बदले में गाली देने वाले की बहन को गाली देते होंगे।
सारे मर्द यही करते हैं। एक-दूसरे की मां-बहनों-बेटियों को निशाना बनाते रहते हैं। वो कभी एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने, एक-दूसरे के साथ हिंसा करने की बात नहीं कहते। उनके निशाने पर हर वक्त कोई औरत ही है। और आपको न इस बात की तकलीफ है, न आपका सिर शर्म से झुका हुआ है। हम औरतें हैं कि दुख में, शर्मिंदगी में गड़ी जा रही हैं।
कोई दिन ऐसा नहीं जाता कि जब सुबह का अखबार खोलो और देश के कोने-कोने से आई बलात्कार की चार खबरें हमारा इंतजार न कर रही हों। कैसा होगा वो समाज, जिसका दिन इन सूचनाओं के साथ शुरू होता है कि उसने कितनी लड़कियों के साथ कहां-कहां बलात्कार किया, कितनों को जिंदा जलाकर मार डाला, कितनों के मुंह पर तेजाब फेंका, कितनों की ऑनर किलिंग की। हमें शर्म आती है कि हम एक ऐसे देश के नागरिक हैं।
रेप रोकने के नाम पर सख्त कानून बनाकर समझ लेते हैं कि हमारा काम पूरा हो गया। और वैसे भी सख्त कानून बनाने से अपराध रुक जाते तो अब तक तो बलात्कार रुक जाने चाहिए थे। सच तो ये है कि डंडा लेकर खड़े होने से नहीं रुकते रेप।
रेप रुकते हैं, रेप की संस्कृति के बारे में बात करने से, उस इतिहास, परवरिश और संस्कार पर चोट करने से, जो रेप की इजाजत देती है, जो लड़कों को भरी बस और ट्रेन में मास्टरबेट करने की इजाजत देती है। जो अपनी लड़कियों को सिखाती है, रेप से कैसे बचो, लेकिन अपने बेटों से कभी नहीं कहती, किसी लड़की का रेप मत करो।
इसलिए कानून बनाने से ज्यादा जरूरी है एक बार अपने जमीर में झांककर देखना। अपने आसपास अगली बार जब कोई मर्द मां-बहन की गालियां दे तो उसे वहीं रोक देना। हर गलत चीज पर सवाल करना। अगली बार अपने दोस्त को कोसने के लिए जब आपके मुंह से गाली निकले, चाहे गुस्से या मजाक में तो जरा ठहरकर सोचें दो मिनट।
आप वही कर रहे हैं, जिसके बारे अभी-अभी पढ़कर आपको बुरा लगा है। आप ही हैं समाज। आपको ही अपनी भाषा, अपनी सोच, अपनी समझ दुरुस्त करने की जरूरत है।
5 साल की जीवा धोनी को बलात्कार की धमकी देने वाले अपनी असली पहचान के साथ सामने नहीं आए हैं। वो नकाबपोश यहीं कहीं, हमारे आसपास छिपे बैठे हैं। शायद हममें से कोई एक। अगर आप उन्हें पहचान नहीं पा रहे, उन पर सवाल नहीं कर रहे तो आप समस्या का समाधान नहीं, बल्कि समस्या का हिस्सा हैं।