तिरुवल्लुवर दक्षिण भारत के महान संत थे। इन्हें दक्षिण भारत का कबीर भी कहा जाता है। शैव, वैष्णव, बौद्ध और जैन सहित हर मत वाले लोग तिरुवल्लुवर को मानते थे। उन्होंने सन्यास को महत्व नहीं दिया। उनका मानना था कि कोई भी इंसान गृहस्थ रहते हुए भी भगवान में आस्था के साथ पवित्र जीवन जी सकता है। संत तिरुवल्लुवर ने लोगों को जीने की राह दिखाते हुए छोटी-छोटी कविताएं लिखी थीं। जिनको इकट्ठा कर तिरुक्कुलर ग्रंथ में लिखा गया है।
- संत तिरुवल्लुवर के जन्म को लेकर पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं, लेकिन भाषाई आधार पर एक अनुमान के मुताबिक कवि तिरुवल्लुवर का काल ईसा पूर्व 30 से 200 सालों के बीच माना जाता है। माना जाता है वे चेन्नई के मयिलापुर से थे, लेकिन उनका ज्यादातर समय मदुरै में बीता, क्योंकि वहां पांड्य वंशी राजा तमिल साहित्य को बढ़ावा देते थे। उनके दरबार में सभी विद्वानों को जगह दी जाती थी। वहीं के दरबार में तिरुक्कुलर' को महान ग्रन्थ के रूप में मान्यता मिली।
दक्षिण के कबीर
माना जाता है कि कबीर की तरह इनका जन्म भी एक जुलाहा परिवार में ही हुआ था। संत तिरुवल्लुवर मानव धर्म के प्रति आस्था के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। इनके ग्रंथ तिरुक्कुलर में कबीर की तरह सदाचार, प्रेम, आनंद और एकता के बारे में बताया है। इस तरह उनके और कबीर के जीवन मूल्य एक ही तरह के थे। इन दोनों संतों को हर धर्म और मत वाले लोग मानते हैं। इसलिए तिरुवल्लुवर को दक्षिण का कबीर भी कहा जाता है।
तिरुवल्लुवर की 133 फीट ऊंची प्रतिमा
तिरुक्कुलर ग्रंथ के 133 अध्यायों को ध्यान में रखते हुए कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक के पास छोटे चट्टानी द्वीप पर संत तिरुवल्लुवर की 133 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है। इस स्टेच्यु की वास्तविक ऊंचाई तो 95 फीट है, लेकिन ये 38 फीट ऊंचे मंच पर है। 1979 में इस स्मारक के लिए उस वक्त के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने आधारशिला रखी थी, लेकिन इसका काम शुरू न हो सका। सन 2000 में ये स्मारक जनता के लिए खोला गया।
उन्होंने बताया एक पिता का कर्तव्य
एक बार एक सेठ ने संत से पूछा कि मैंने अपने इकलौते बेटे के लिए बहुत सारा पैसा इकट्ठा किया है लेकिन वो इस कमाई को बुरे कामों में लगा रहा है। संत ने मुस्करा कर सेठ जी से कहा, तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए कितनी संपत्ति छोड़ी थी? सेठ बोला कुछ नहीं छोड़ा। इस पर संत तिरुवल्लुवर ने सेठ को एक पिता का कर्तव्य समझाया।
- संत ने कहा कि तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं छोड़ा, इसके बावजूद तुम धनवान हो गए। उन्होंने कहा कि तुम ये समझकर धन कमाने में लगे रहे कि अपनी संतान को बहुत सारा पैसा देना ही एक पिता का कर्तव्य है। इस कारण तुमने अपने बेटे की पढ़ाई और संस्कारों के विकास पर ध्यान नहीं दिया। पुत्र के लिए पिता की पहली जिम्मेदारी यही है कि वह उसे पहली पंक्ति में बैठने लायक बना दे। बाकी तो सब तो वो अपनी काबिलियत के दम पर हासिल कर लेगा।