क्रोध एक ऐसी बुराई है, जिसकी वजह से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। क्रोध में बोले गए शब्दों की वजह से घर-परिवार के साथ ही समाज में भी अपमानित होना पड़ सकता है। अगर कोई हमारी बुराई भी करता है तो हमें शांत रहना चाहिए। हम मौन से भी विरोधियों को पराजित कर सकते हैं। इस संबंध में लोक कथा प्रचलित है।
कथा के अनुसार पुराने समय में एक संत हमेशा शांत रहते थे। कभी किसी पर क्रोध नहीं करते, दूसरों को भी यही सलाह देते थे। काफी लोग रोज उनके प्रवचन सुनने पहुंचते थे। कभी-कभी कुछ लोग उन्हें झूठा और पाखंडी भी कहते थे। लेकिन, संत उन्हें कुछ नहीं कहते। संत के अच्छे और शांत व्यवहार की वजह से उनकी ख्याति आसपास के क्षेत्रों में भी फैल रही थी।
एक व्यक्ति ने सोचा कि वह संत को क्रोधित कर सकता है। उसने गांव के लोगों से कहा कि वह संत को झूठा साबित कर देगा। वह संत के आश्रम में पहुंचा और संत को बुरा-भला कहने लगा। कुछ ही देर में गांव के लोग भी वहां इकट्ठा हो गए।
वह व्यक्ति बोलने लगा कि ये संत नहीं चोर है। रोज रात में चोरी करता है और सुबह साधु बनने का ढोंग करता है। मैं इसे और इसके परिवार को अच्छी तरह जानता हूं। इसके परिवार में भी सभी चोर हैं। व्यक्ति बार-बार संत को बुरी बातें कह रहा था, लेकिन संत चुपचाप उसकी बातें सुन रहे थे।
काफी देर बाद जब वह व्यक्ति बोलते-बोलते थक गया तो संत ने उसे एक गिलास पीने का पानी दिया और कहा कि बोलते-बोलते तुम थक गए हो, तुम्हें प्यास भी लगी है। ये पानी पी लो।
संत का ये व्यवहार देखकर वह व्यक्ति शर्मिंदा हो गया। वह संत से क्षमा मांगने लगा। संत ने उससे कहा कि भाई तुम जो भी बातें बोल रहे थे, मैंने उन पर ध्यान दिया नहीं, मैंने वो बातें ग्रहण ही नहीं की, जो तुम बोल रहे थे। संत की बातें सुनकर वह व्यक्ति समझ गया कि संत ने सच में क्रोध को जीत लिया है। ये सच्चे संत हैं।
प्रसंग की सीख
इस कथा की सीख यह है अगर हम खुद पर काबू रखेंगे और दूसरों की बुरी बातों पर ध्यान नहीं देंगे तो हम क्रोध से बच सकते हैं। मौन से भी विरोधियों को चुप किया जा सकता है।