अब भूटान की जमीन हथियाने में जुटा है चीन, जानिए कैसे भारत के लिए भी बढ़ जाएगी परेशानी

Posted By: Himmat Jaithwar
9/13/2020

लद्दाख और साउथ चाइना सी के बाद चीन की पीपल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) अब भूटान के खिलाफ नया मोर्चा खोलने की तैयारी में हैं। इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि चीन ने सीमा को लेकर 25वें दौर की बातचीत को अपने पक्ष में झुकाने के मकसद से भूटान पर दबाव बनाने के लिए पश्चिमी और मध्य भाग में बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात कर दिया है।

थिंपू को सर्वोच्च स्तर पर पीएलए के खतरे को लेकर सावधान कर दिया गया है। संभावना है कि आगामी बातचीत में पहले से अतिक्रमित क्षेत्रों और पश्चिमी भाग में दावों की सौदेबाजी के लिए बीजिंग पीएलए के घुसपैठ और अतिक्रमण का इस्तेमाल करेगा। भूटान भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के केंद्र में हैं क्योंकि यह देश सिलीगुरी कॉरीडोर के करीब है और भूटान की ओर से जमीन को लेकर किया गया कोई भी समझौता भारतीय रक्षा पर बुरा प्रभाव डालेगा। 

भारतीय सेना, कूटनीति और सुरक्षा प्रतिष्ठानों से जुड़े लोगों ने पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि 2017 में 73 दिनों तक चले डोकलाम स्टैंड ऑफ के दौरान भारत ने भूटान को पीएलए का सामना करने में मदद की, लेकिन चीनी सेना ने दोनों सहयोगी देशों की सेनाओं को परखना बंद नहीं किया है।  

चीन भूटान के पश्चिमी सेक्टर में 318 स्क्वायर किलोमीटर और सेंट्रल सेक्टर में 495 स्क्वायर किलोमीटर पर दावा करता है। विस्तारवादी नीति के तहत चीनी सेना रोड और सैन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने में जुटी है और आक्रामक पेट्रोलिंग के जरिए भूटान की रॉयल आर्मी को डराने की कोशिश की जाती है।

थिंपू और नई दिल्ली में मौजूद कूटनीतिज्ञों के मुताबिक, डोकलाम तनातनी के बाद से पीएलए ने पश्चिमी भूटान के पांच इलाकों में घुसपैठ की और नई सीमा पर दावा ठोका है जो भूटान में 40 किलोमीटर भीतर चुंबी वैली तक है। इसने बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है, रक्षापंक्ति को बेहतर बनाया है, सैनिकों और रसद को अंतिम छोड़ तक पहुंचाने के लिए सड़कें, हेलीपैड्स का निर्माण किया गया है। 

मध्यकालीन साम्राज्य के अंदाज में पीएलए के सैनिक 13 और 24 अगस्त को दक्षिण डोकलाम में तोरसा नाले को पार कर गए और राजा रानी झील के पास भूटानी चरवाहों को इलाका खाली करने को कह दिया। पीएलए के इस कदम के पीछे वास्तविक सोच यह है कि भारत और भूटान इस बात पर सहमत हो जाएं कि चीनी सीमा झामपेरी रिज पर गयेमोचन तक है, नाकि सिंचे ला बतांग ला एक्सिस। यह वही है जो चीन 2017 में करना चाहता था, लेकिन भारतीय सेना ने पीएलए को रोक दिया था। 

नेशनल सिक्यॉरिटी प्लानर्स के मुताबिक, पीएलए ने नॉर्थ डोकलाम में सर्विलांस में वृद्धि कर दी है। इसने यहां सर्विलांस कैमरे लगा दिए हैं और आक्रामक तरीके से सेना का टेक्नीकल अपग्रेडेशन किया जा रहा है। थिंपू ने भी रॉयल भूटानी आर्मी को तैयार रहने को कहा है और पीएलए को तोरसा नाले के दक्षिण से आने से रोकने के लिए अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती का आदेश दिया है। 

पीएलए का विस्तारवादी प्लान केवल पश्चिमी भूटान तक सीमित नहीं है। जून में चीन ने भूटान के साकटेंग वन्यजीव अभयारण्य प्रोजेक्ट पर आपत्ति जाहिर की थी। चीन ने कहा था कि यह विवादित सीमा इलाके में मौजूद है। भारत और चीन से लगती सीमा के पास यह 750 स्क्वायर किलोमीटर में फैला है। नए दावा भारत को भी विवाद में खींच सकता है क्योंकि अभयारण्य अरुणाचल प्रदेश के निकल है, जिस पर चीन अपना दावा करता है। 

यह भूटान के लिए बेहद चौंकाने वाला है, क्योंकि चीन ने साकटेंग वन्यजीव अभयारण्य या पूर्वी भूटान के किसी जमीन पर पहले कभी दावा नहीं किया था। यहां तक की चीन ने 36 सालों से चल रहे कूटनीतिक बातचीत में भी कभी इसका जिक्र नहीं किया था। स्वभाविक रूप से भूटान सरकार ने इसका मजबूती से विरोध किया। चीन के दावे को खारिज करते हुए थिंपू ने यह भी साफ किया कि यह भूटान का संप्रभु हिस्सा है और यह विवादित नहीं है। हालांकि, चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन और भूटान के बीच सीमा निर्धारित नहीं है। पूर्वी, मध्य और पश्चिमी सेक्टर को लेकर लंबे समय से विवाद है।

यह ध्यान देने योग्य है कि चीन का यह रुख जून में सामने आया जब बीजिंग के कहने पर पीएलए सैनिक लद्दाख में भारतीय सैनिकों के साथ तनातनी में जुटे थे। चीन का पूर्वी भूटान में नया दावा बीजिंग की मंशा की ओर संकेत करता है। अचानक क्षेत्रीय दावे ने विस्तारवादी नैरेटिव को पुष्ट किया जो जिसे शी जिनपिंग अंजाम दे रहे हैं।



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