जयपुर। जगह राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेस, शहर के लोग इसे आरयूएचएस कहते हैं। शाम का वक्त है, कुछ कोरोना संदिग्ध मरीज यहां लाए जाते हैं। कानों-कान खबर और उसके साथ दहशत भी अस्पताल में फैलने लगती है।
24 घंटे के भीतर आठ मंजिला हॉस्पिटल खाली हो जाता है। हफ्तेभर में हालात ऐसे हो जाते हैं कि पुलिस बुलानी पड़ती है। आखिरकार 10 अप्रैल को सब इंस्पेक्टर सुंदरलाल को टीम समेत आरयूएचएस में तैनात कर दिया गया। उन्हें सिर्फ 14 दिन के लिए भेजा गया था। पर ये ड्यूटी करीब पांच महीने लंबी हो गई। इस दौरान टीम ने कोरोना से जान गंवाने वाले 430 लोगों का अंतिम संस्कार किया। ठीक हो चुके कई लोगों को घर पहुंचाया। कभी खुद ले जाकर तो कभी किराया देकर।
अभी दो सिंतबर को सुंदरलाल फिर से अपने थाने में आ गए हैं। पांच महीने के अपने अनुभव को उन्होंने कविताओं में ढाला और एक किताब पब्लिश की है। सुंदरलाल ने पांच महीने के अनुभव पांच कहानियों में साझा किए। पढ़िए तो...
पहली कहानी: पांच साल की बच्ची की कोरोना से मौत, पिता पास तक नहीं जाता था
पांच साल की एक बच्ची की कोरोना से मौत हो गई। पिता अस्पताल के बाहर ही था। दूर खड़ा देखता रहा। उसकी आंखों में आंसू तक नहीं थे। बस डर था। खुद की जान का। उसने मासूम का अंतिम संस्कार करना तो दूर, पास जाने तक से मना कर दिया। बहुत समझाने के बाद वो साथ चलने को राजी हुआ। किसी तरह उसे बच्ची का अंतिम संस्कार करने के लिए मनाया।
दूसरी कहानी: डर ऐसा कि किसी ने गलत मोबाइल नंबर दिए, तो किसी ने फोन बंद कर लिया
हॉस्पिटल आने वाले कई मरीजों की हालत गंभीर होती थी। उनके परिजन हॉस्पिटल रिकॉर्ड में अपना मोबाइल नंबर तक गलत लिखा जाते। मरीज के मौत के बाद उनके परिवार को ढूंढने में कई दिन लग जाते। पता लग भी जाए तो कहते कि हम अंतिम संस्कार नहीं करेंगे। कुछ लोगों ने नंबर तो सही दिए, पर मरीज की मौत के बाद नंबर तक बंद कर लेते थे। ऐसे दर्जनों मरीजों का अंतिम संस्कार मैं और मेरे साथी किया करते थे।
तीसरी कहानी: मौत के 9 दिन बाद पिता को खोजा, वो आ नहीं सके तो खुद किया अंतिम संस्कार
अरुणाचल प्रदेश के 20 साल का युवक साजन 6 जून को आईसीयू में भर्ती हुआ। 7 को ही उसकी मौत हो गई। 11 जून तक परिजन का पता नहीं चला। मोबाइल फोन से उसकी पहचान हुई तो हमने 12 जून को साजन की मां को फोन किया। उसके पिता से बात की तो उन्होंने लॉकडाउन की वजह से जयपुर आने में असमर्थता जताई। पिता ने कहा कि विधि-विधान से बेटे का अंतिम संस्कार करा दो। 9 दिन बाद 15 जून को हमने साजन का अंतिम संस्कार किया और वीडियो कॉल करके परिवार को बेटे के अंतिम दर्शन कराए।
चौथी कहानी: पत्नी को एनिवर्सरी पर गिफ्ट भेजकर आए सुर्खियों में
मेरी पत्नी भी सब इंस्पेक्टर हैं। लेकिन डर ऐसा कि जब उनसे बात होती और मैं छुट्टी लेकर आने को कहता तो वो बोलतीं कि आप वहीं रहिए। बीच में आकर नहीं जाइएगा। जब आइएगा तो पूरी छुट्टी लेकर आइएगा। 20 अप्रैल को शादी की सालगिरह पर पत्नी से मिल तक नहीं सका। उनको गिफ्ट में मास्क, सैनिटाइजर, गिलोय, एलोवेरा जूस भेजा तो मीडिया में सुर्खियां बन गईं।
सुंदरलाल की पत्नी मंजू भी एसआई हैं। 20 अप्रैल को दोनों की शादी की सालगिरह थी। सुंदरलाल कोविड हॉस्पिटल में ड्यूटी के कारण अपनी पत्नी से भी नहीं मिल सके थे।
पांचवीं कहानी: मां अस्पताल में अकेली नहीं रहे, इसलिए परिवार का कोई न कोई 24 घंटे साथ रहता था
एक 63 साल की महिला कोरोना पॉजिटिव थी। मां को अकेले परेशानी न हो इसलिए वकील बेटा कोरोना निगेटिव होने के बाद भी 24 घंटे मां के साथ वॉर्ड में ही रहता था। जब तक मां ठीक नहीं हो गई, बेटा वहीं रहा। मां के ठीक होने के बाद दोनों साथ घर गए। ऐसी ही एक और कहानी है। एक महिला जब अस्पताल आई तो उसके साथ तीन लोग थे। महिला की बहू, बेटी और बेटा। जब तक महिला ठीक नहीं हुई तीनों में से कोई न कोई हर वक्त उसके साथ रहता था। तीनों सदस्यों ने शिफ्ट सी बांट ली थी। जब तक दूसरा नहीं आता, पहला नहीं जाता। इसे देखकर लगा कि कोरोना भी हमारे देश में रिश्ते खत्म नहीं कर सकता।