कश्मीर पर सऊदी अरब से झटका खाने के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी अपनी एक दिवसीय चीन यात्रा पर हेनान पहुंच गए हैं। कुरैशी ने इसे 'बेहद महत्वपू्र्ण' यात्रा करार दिया है जिसका उद्देश्य 'आयरन ब्रदर्स' के बीच रणनीतिक भागीदारी को और ज्यादा मजबूत करना है। इस यात्रा के दौरान कुरैशी चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ मुलाकात करेंगे। हेनान वही जगह है जहां पर चीन ने सबमरीन का विशाल बेस बना रखा है। कुरैशी ने कहा, 'इस यात्रा का मकसद पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व के लक्ष्य को दिखाना है।' हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी विदेश मंत्री सैन्य सहयोग समेत तीन सूत्री योजना को लेकर चीन पहुंचे हैं। इससे पहले पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने पिछले साल अगस्त महीने में पाकिस्तान की सेना के साथ रक्षा सहयोग और क्षमता निर्माण संबंधी समझौता किया था। पाकिस्तानी और चीनी सेना को एक साथ लाने का प्रयास पाकिस्तानी सेना पीएलए के साथ अपने रिश्तों को और ज्यादा मजबूती देना चाहती है और वह एक संयुक्त सैन्य आयोग बनाना चाहती है। पाकिस्तानी सेना के इस प्लान के पीछे उद्देश्य यह है कि दोनों ही सेनाओं के बीच रणनीतिक फैसले लिए जा सके। इससे पीएलए और पाकिस्तानी सेना एक साथ आ जाएगी। इसके अलावा इमरान खान सरकार चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के दूसरे चरण को और तेज करने के लिए चर्चा करेगी। इस पूरे मामले से जुड़े लोगों का कहना है कि कुरैशी चाहते हैं कि चीन सिंध, पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में आधारभूत ढांचे सुधारने में मदद करे। पीओके और गिलगित दोनों ही पर पाकिस्तान का कब्जा है लेकिन भारत इस पर दावा करता है। चीन करीब 60 अरब डॉलर का निवेश करके पाकिस्तान से चीन तक सड़क और रेलवे लिंक बना रहा है। इसके जरिए पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से चीन के शिनजियांग प्रांत को जोड़ा जाएगा। भारत पर होगी पाकिस्तान-चीन में प्रमुखता से चर्चा माना जा रहा है चीन और पाकिस्तान की इस चर्चा में भारत का मुद्दा प्रमुखता से उठ सकता है। दोनों देशों के विदेश मंत्री ऐसे समय पर मिल रहे हैं जब दोनों का ही भारत के साथ संबंध एलओसी और कश्मीर को लेकर अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है। बताया जा रहा है कि चीन ने पाकिस्तान को आश्वासन दिया है कि कश्मीर के मुद्दे पर पूरा समन्वय इस्लामाबाद के साथ किया जाएगा। इमरान खान सरकार चाहती है कि चीन एक कदम और आगे बढ़ते हुए अगले महीने होने वाले संयुक्त राष्ट्र आमसभा के सत्र में उठाए। अब तक केवल तुर्की और मलेशिया ने ही ऐसा किया है।