रेटिंग एजेंसी की सोच पर जरूरत से ज्यादा ध्यान न दे सरकार, आर्थिक जरूरतों के हिसाब से फैसला ले

Posted By: Himmat Jaithwar
8/6/2020

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने गुरुवार को कहा कि सरकार को सॉवरेन रेटिंग एजेंसी की सोच पर जरूरत से ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए। इससे वह आर्थिक जरूरतों के हिसाब से फैसला लेने में असफल रह सकती है। राजन 4 सितंबर 2013 से लेकर 4 सितंबर 2016 तक आरबीआई के गवर्नर थे।

राजन ने ग्लोबल मार्केट्स फोरम में कहा कि घरेलू और विदेशी निवेशकों को यह विश्वास दिलाना भी जरूरी है कि कोरोनावायरस महामारी का संकट खत्म होते ही सरकार मीडियम टर्म में वित्तीय जवाबदेही के रास्ते पर वापस लौट आएगी। उन्होंने कहा कि सरकार को यह विश्वास दिलाने के लिए ज्यादा से ज्यादा कोशिश करनी चाहिए। आरबीआई का गवर्नर बनने से पहले राजन केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार भी थे।

वायरस संक्रमण में बढ़ोतरी से आर्थिक रिकवरी की उम्मीद घटी

भारत ने कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए मार्च के अंत में दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन लगाया था, जो दो महीने से ज्यादा समय तक चला। हालांकि जून में पाबंदियों में ढील दिए जाने के बाद से संक्रमण का फैलना जारी है। इससे आर्थिक रिकवरी की उम्मीद सीमित हो गई है।

रेटिंग घटने के डर से सरकार राहत पर ज्यादा खर्च नहीं कर रही

राजन ने कहा कि सरकार ने गरीबों और छोटे मझोले उद्यमों को मदद करने के लिए कई राहत कार्यक्रमों की घोषणा की है। लेकिन इन कार्यक्रमों में वास्तविक खर्च जीडीपी के करीब 1 फीसदी के बराबर ही हो रहा है। कई लोगों का कहना है कि रेटिंग एजेंसी द्वारा रेटिंग घटाए जाने के डर से सरकार ने यह किफायत अपनाई है।

कुछ रेटिंग एजेंसियों ने देश की रेटिंग और आउटलुक को घटाया

जून के शुरू में वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने देश की रेटिंग और आउटलुक को घटा दिया था। इसके बाद एक अन्य वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने भी भारत के आउटलुक को घटा दिया। राजन 2003 से 2007 तक अंतरराष्ट्र्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के 7वें मुख्य अर्थशास्त्री रहे थे।

कर्ज उन्हीं कंपनियों तक पहुंचे, जिनमें कारोबार में टिके रहने की क्षमता हो

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लिए राजन ने सलाह दी कि उसे यह सुनिश्चित करने की कोशिश करनी चाहिए कि कर्ज अर्थव्यवस्था के तनावग्रस्त हिस्से में पहुंचे। आरबीआाई को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्ज उन्हीं कंपिनयों तक पहुंचे, जो बाजार में टिक सकती हैं, न कि उन कंपनियों तक जो कारोबार में नहीं टिक सकती हैं। आईएमएफ के अर्थशास्त्री रहते राजन ने 2008 के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट की पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी।



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