गलवान के घायल सैनिकों के लिए 900 साल पुराने गोम्पा में पूजा हो रही है, लामा कहते हैं- हमारी दुआओं से वो जल्दी ठीक होंगे

Posted By: Himmat Jaithwar
6/23/2020

लेह के स्पीतुक गोम्पा से. लेह एयरबेस के ठीक सामने बना है स्पीतुक गोम्पा। वहां पहुंचते ही जिस पर सबसे पहले नजर गई वो था वहां चस्पा किया एक पर्चा। इस पर लिखा था- फोटोग्राफी एंड वीडियोग्राफी ऑफ एयरबेस इज स्ट्रिक्ली प्रॉहीबीटेड।

10 हजार फीट की ऊंचाई पर बने इस गोम्पा में 100 से ज्यादा लामा रहते हैं। ये दलाई लामा को अपना गुरू मानते हैं। गोन्बी लामा कहते हैं, चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया और बाकी पड़ोसी देशों के साथ भी अच्छा सुलूक नहीं किया।

दो दिन पहले यानी 20 जून को यहां 25 लामाओं ने एक साथ गलवान में शहीद हुए सैनिकों की आत्मा की शांति के लिए खास पूजा की है। इस पूजा में उन सैनिकों के भी जल्दी ठीक होने क लिए प्रार्थना की गई, जो फिलहाल अस्पताल में हैं। इसके लिए बकायदा 2 घंटे तक गोम्पा में गलवान के भारतीय सैनिकों के लिए बौद्ध मंत्रोच्चार किए गए।

तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद 1959 में दलाई लामा ने भारत में शरण ली थी। ये आज भी भारत में ही रहते हैं।

कहा जाता है कि घंटो तक मंत्रोच्चार कर लामा जो तंत्र पूजा करते हैं, उन्हें उससे इतनी ताकत मिल जाती है कि वो कई बार हवा में उड़ भी सकते हैं। 21 तारादेवियां लामाओं को शक्ति देती हैं। लामाओं का कहना है कि इस शक्ति को वो घायल सैनिकों तक भिजवाएंगे और उनके जख्म जल्दी ठीक हो जाएंगे।  

ऐसा भी कहा जाता है कि अपनी तंत्र साधना के बल पर ये लामा मौत के बाद भी 40 दिनों तक जिंदा रह सकते हैं। यही नहीं ये अपने अगले दलाई लामा को दिव्य शक्ति से मिले संकेतों के आधार पर चुनते हैं जो कि एक बच्चा होता है।

दलाई लामा चुने गए बच्चे को 6 साल की उम्र तक परीक्षा देनी होती है और फिर उसकी ट्रेनिंग होती है।

बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने जब भारत में शरण ली तो चीन भड़का था। फुंशी लामा कहते हैं कि वो अपनी शक्ति का इस्तेमाल भारतीय सेना को ताकत देने और चीन सेना को परास्त करने के लिए करते हैं। यही वजह है कि चीन कभी भारत को हरा नहीं पाएगा।



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